दो साल के अंतराल के बाद लालकिले में होने वाले लाइट एंड साउंड शो एक बार फिर से शुरु कर दिया गया है। इस बार के शो की खासियत यह है कि इसे लाल किले का रखरखाव करने वाले डालमिया समूह ने तैयार किया है, इससे पहले इस तरह के शो का निर्माण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता रहा है। डालमिया समूह द्वारा शुरु किये गये इस शो को “जय हिंद” नाम दिया गया है। इस शो को लेकर विवाद शुरु हो गया है। विवाद का कारण इस शो में गांधी और नेहरू के योगदान को कम करके दिखाया गया है। जबकि सुभाषचंद्र बोस और मराठाओं के योगदान को ज्यादा जगह दी गई है। लाइट एंड साउंड शो के अलावा प्रधानमंत्री संग्रहालय में भी इस तरह कोशिशें जारी हैं। प्रधानमंत्री संग्रहालय जिसे एक साल पहले तक तीन मूर्ति स्मारक(नेहरू संग्रहालय) के तौर पर जाना जाता था। वहां भी उनके कद से छेड़छाड़ के प्रयास जारी हैं ऐसी कोशिशों का एक हालिया प्रयास है लालकिले पर चलने वाले लाइट एंड साउंड पर उनके योगदान को कम करके दिखाना।
इंडिया टुडे की खबर के अनुसार लाल किले में चलने वाले पहले के शो में भूला भाई देसाई, और जवाहरलाल नेहरू को वकील के रूप में दिखाया गया जाता था। देसाई और नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के समय आईएनए के सैनिकों के खिलाफ चले मुकद्दमें इनका बचाव किया था। नए शो से इसको हटा दिया है।
इस शो में गांधीजी के योगदान को भी कम करके दिखाने की कोशिश की गई है, उनका जिक्र स्वतंत्रता सेनानियों की तरह साधारण रूप से किया गया है। जबकि पहले जो शो चलता था उसमें गांधी को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद क्रांति की दूसरी ज्वाला के तौर पर दिखाया जाता था। नई ज्वाला फूट निकली, जिसका नाम महात्मा गांधी के तौर पर वर्णन किया जाता था। दूसरी तऱफ लाल किला औऱ भारत के बड़े भाग में प्रचलित मराठाओं को एक घंटे से ज्यादा का समय दिया गया जिसे कई नृत्य समूहों द्वारा उनका प्रस्तुतिकरण किया जाता है।
गांधी और नेहरू के योगदान को कम करने के बारे में एएसआई के सूत्रों का कहना है कि पुराने शो की अवधारणा भारतीय पर्यटन विकास निगम द्वारा बनाई गई, और नए शो की अवधारणा डालमिया समूह द्वारा बनाई गई है। सटीक, उचित और कालक्रम के निर्देशों के बाद एएसआई ने इस शो को बनाया है। एएसआई के सीनियर अधिकारी ने कहा कि कुछ चीजों को शो की समय सीमा को ध्यान में रखकर भी हटाया गया है। 15 अगस्त 1947 को नेहरू द्वारा दिया गया भाषण और गांधी अभी भी शो का हिस्सा हैं। नया शो सत्रहवीं शताब्दी से लेकर अबतक भारत के इतिहास औऱ बहादुरी को दर्शाता है, जिसे तीन भागों में बांटा गया है।
इस शो को बनाने के लिए परफॉर्मेंस आर्ट की सभी विधियों प्रोजेक्शन मैपिंग, लाइव एक्शन फिल्में हल्के और इमर्सिव साउंड, अभिनेता, नर्तक और कठपुतलियों का प्रयोग कर भारत के इतिहास को जीवित किया गया है। जिसमें मराठों का उदय, 1857 की क्रांति, भारतीय सेना का उदय, ब्रिटिश सरकार द्वारा लालकिले पर चलाये गये मुकद्दमें, स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जैसे सभी विषयों को शामिल किया गया है।
तीन मूर्ति में संग्रहालय में भी इस तरह की कोशिशें जारीभाजपा सरकार नेहरू और गांधी के योगदान को कम करके दिखाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है। लालकिले का लाइट एंड साउंड शो या फिर तीन मूर्ति स्मारक से नेहरू को हटाने की कोशिश। तीन मूर्ति स्मारक नेहरू का प्रधानमंत्री काल में आधिकारिक आवास जिसे उनकी मृत्यू के बाद स्मारक के तौर संरक्षित कर दिया गया था। पिछले साल इसे नेहरू स्मारक से बदलकर प्रधानमंत्री स्मारक में परिवर्तित कर दिया गया था। जिसमें नेहरू के अलावा वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को शामिल किया गया है। तीन मूर्ति स्मारक में हुए बदलावों पर न्यूज लॉंड्री ने एक विस्तृत रिपोर्ट की है जो बताती है कि भाजपा नेहरू के योगदान को मिटाने के लिए कितनी बेचैन है।
संग्रहालय के बाहर एक शिलापट्ट पर नरेंद्र मोदी का एक कथन उकेरा गया है जो कहता है “यह संग्रहालय हमें हमारे इतिहास की एक आकर्षक यात्रा पर ले जाता है और भारत के विकास की नई दिशाओं और नए रूपों का एक विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है, जो नए भारत के स्वप्न को साकार कर रहे हैं.”
संग्रहालय का ब्लॉक-1 जो नेहरू को समर्पित किया गया है उसमें नेहरू के अलावा इतिहास की कई प्रमुख घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है। यहीं पर ही कई स्क्रीन के माध्यम से भारत के संविधान का निर्माण और देश के गणतंत्र के रुप में उदय को दिखाया गया है। यहीं पर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की एक बड़ी सी मूर्ति लगाई गई है जिसमें उन्हें संविधान की प्रति पर हस्ताक्षर करते हुए दिखाया गया है।
पहले गणतंत्र दिवस समारोह पर एक लघु फिल्म भी प्रदर्शन और संविधान निर्माण की यात्रा पर दिखाई जाने वाली फिल्म में नेहरू को बहुत कम जगह दी गई है। वह बीच-बीच में कहीं बहुत कम दिखाई देते हैं।
नेहरू गैलरी जिसे बॉल रूम के तौर पर जाना जाता है, वहां लगी एक स्क्रीन पर उनका संसद में दिया गया नियति से साक्षात्कार की क्लिप चलती रहती है, इसके साथ ही उस भाषण की मूक प्रति भी प्रदर्शित की गई है। इसको नेहरू द्वारा पटेल को लिखे एक पत्र के साथ दिखाया गया है। "पटेल को लिखे इस पत्र वह दिल्ली में मस्जिदों के विध्वंस पर चिंता व्यक्त करते हैं. नेहरू एक महत्वपूर्ण मस्जिद का हवाला देते हैं जिसे मंदिर में बदल दिया गया है और पटेल से कहते हैं कि “सरकार को इसके पुनर्निर्माण का कार्य करना चाहिए”।
गैलरी का एक कमरा 1962 के भारत चीन युद्ध के लिए समर्पित किया गया। इसी कमरे में नेहरू और चीनी नेताओं माओ जेडोंग और चाओ एनलाई के साथ उनके निजि सबंधों को दर्शाया गया है। यहीं पर लगी एक स्क्रीन चीन के साथ युद्धों को दिखाते हुए उसके वाइस ओवर में बताया गया है कि “चीनी आक्रमण वर्षों से तैयार हो रहा था. झड़पों की बढ़ती संख्या और सेना के अधिकारियों की चेतावनी के बावजूद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल और उनके रक्षा मंत्री वी के मेनन यह छवि बनाते रहे कि चीन कभी भी युद्ध का सहारा नहीं लेगा।