उगाही में लगे नक्सली नेता, जड़ से उखड़ रहा है माओवादी आंदोलन?

03:08 pm Aug 10, 2019 | आलोक वर्मा - सत्य हिन्दी

नक्सलवाद कई मोर्चों पर ख़ुद से लड़ रहा है। ख़ुफ़िया एजेंसियों की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि लाल आतंक इस समय ख़ानाबदोशी की हालत में है। सरकारी विकास और कम हो रहा जन समर्थन लाल आतंक के अस्तित्व को लीलता जा रहा है। इसी बेचैनी की वजह से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से लगभग साफ़ हो जाने के बाद नक्सली संगठन अपने सारे ट्रेनिंग कैंप और ऑपरेशन महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ यानी एमएमसी ज़ोन में स्थापित करने की कोशिश में हैं। 

एक भी नक्सली तेलुगु नहीं

ख़ुफ़िया एजेंसियों के मुताबिक़, नक्सली संगठनों में सर्वोच्च स्तर के चार नेता आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हैं। लाल आतंक के ठेकेदार बने इन चारों में तेलंगाना के हरि भूषण और रमन्ना हैं, तो आंध्र प्रदेश के बासवराज और आर.के. हैं। लाल आतंक की पूरी बागडोर इन्हीं के पास है, लेकिन इनके पास नक्सली कैडर नहीं हैं। हैरानी की बात है कि इन चार नक्सल नेताओं को छोड़ दें तो बाकी सारे नक्सली छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,झारखंड, ओडिशा और दूसरे राज्यों के आदिवासी हैं, इनमें एक भी तेलुगु नहीं है। यहाँ तक कि 40 लाख का ईनामी नक्सली हिडमा भी छत्तीसगढ़ का मुरिया आदिवासी है। 

हिडमा जैसे लोग नक्सली संगठन में मध्य दर्जे के नेतृत्व की ताक़त रखते हैं औऱ उन्हें सिर्फ सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अशिक्षित होने के कारण ये नेतृत्व के सामने कभी आवाज़ भी नहीं उठा पाते हैं।

इसी भेदभाव की वजह से भडकम भीमा उर्फ अर्जुन जैसे मध्यम दर्जे के नक्सली नेताओं ने आत्मसमर्पण करने में अपनी भलाई समझी।

छोटे अपराधियों का सहारा

लाल आतंक को अपने वजूद का अहसास कराने के लिए सुरक्षा बलों पर हमला करना होता है, इसके लिए हिडमा जैसे मध्य श्रेणी के नेता काम आते हैं। लेकिन सुरक्षा बलों पर हमले के लिए उचित मौका जासूसी से मिलता है। इस जासूसी के लिए नक्सलियों ने छोटे स्थानीय बदमाशों का सहारा लेना शुरू किया है। ये छोटे-छोटे बदमाश जासूसी कर सुरक्षा बलों की सामान्य गतिविधियों के बारे में सूचना देते हैं और उसी सूचना के आधार पर हिडमा जैसे नक्सलियों को हमला करना होता है।   

स्थानीय मुद्दों पर ध्यान

एक समय था जब नक्सली गुटों के पास नेतृत्व होता था और वे नक्सल विचारधारा को फैलाने के लिए काम करते थे। लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों की पड़ताल में ये बात सामने आई है कि नक्सली अब स्थानीय मुद्दों पर खुद को केंद्रित कर रहे है। स्थानीय मुद्दों में बांध निर्माण और विस्थापन जैसी बातें हैं।

कैडर की कमी

नक्सली कैडर की भयंकर कमी भी झेल रहे हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए नज़दीकी गाँवों के ऐसे युवक-युवतियों और बच्चों के हाथों में सरकार के ख़िलाफ़ हथियार थमा दिया जाता है, जो पढ़े लिखे नहीं और जिन्हें सरकारी विभागों में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी भी ना मिले। 

मुफ़्त दवा और खाना मिलने की वजह से ये अनपढ़, ग़रीब लोग नक्सलवाद का दामन थाम लेते हैं, सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में ऐसे ही लोग मारे भी जाते हैं। ं

उगाही की रकम

लाल आतंक को फैलाने का ठेका लिए चंद नक्सल नेता उगाही के पैसे से जेब भी भरने लगे हैं। जाँच में यह बात भी सामने आई है कि नक्सली नेता कई जगहों पर बेनामी कारोबार कर रहे हैं, ख़ासकर ट्रांसपोर्ट, होटल औऱ रियल इस्टेट में इन्होंने भारी निवेश किया है। 

विकास पड़ रहा है भारी 

ख़फ़िया एजेंसियों का मानना है कि लाल आतंक पर सरकार और सुरक्षा बलों के विकास की बातें भारी पड़ रही हैं। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का असर पड़ रहा है। चाहे वह केंद्र हो या नक्सल प्रभावित राज्य, विकास की योजनाएँ कुछ इस तरह काम कर रही हैं कि लाल आतंक को फैलने का मौक़ा नहीं मिल रहा है। 

छत्तीसगढ़ में ज़िला रिजर्व फ़ोर्स या स्पेशल टास्क फ़ोर्स विकास के कामों की रक्षा करता है तो सीआरपीएफ़ ग्रामीण सड़कों के निर्माण को सुरक्षा देते हैं। छत्तीसगढ़ के सुकमा में द्रोनापाल-जगरगुंडा मार्ग और बीजापुर में भाईरामगढ़-केशकुटुल इसके प्रमाण हैं।

सीआरपीएफ़ की अनूठी पहल

स्थानीय ग्रामीण लाल आतंक की तरफ ना जाएँ इसके लिए सीआरपीएफ ने छत्तीससगढ़ में एक अनूठी पहल की है। बल स्थानीय ग्रामीणों को महुआ, तेंदू और सहजन के पौधे बड़ी संख्या में वितरित कर रही हैं, ताकि इन्हें एक नियत अवधि में आय मिल सके। वरिष्ठ आईपीएस और सीआरपीएफ में आईजी जी. एच. पी. राजू के मुताबिक़, सुरक्षा बलों की यह योजना भी नक्सलियों के ख़िलाफ़ की जा रही कार्रवाई का ही हिस्सा है। अगर एक बार स्थानीय नागरिक आर्थिक रूप से मजबूत हो जाएँ तो लाल आतंक का अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा।

बहरहाल, वरिष्ठ अधिकारियों का अनुमान है कि आने वाले भविष्य में नक्सली संगठन छोटे छोटे अपराधी गुटों में तब्दील हो जाएँगे। 50 साल पहले जब ग़रीबी, अन्याय और ज़मींदारी प्रथा थी, लोग नक्सल विचारधारा से प्रभावित होते थे। अब वो स्थिति नहीं रही है। उसके उपर से नक्सली नेताओं का लालच लाल आतंक को ख़ात्मे की ओर ख़ुद ले जाएगा।