लखीमपुर हिंसा मामले की लोकल कोर्ट में सुनवाई को कम से कम पांच साल लगेंगे। यह जानकारी आज 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने खुद दोनों पक्षों के वकीलों को दी। इस मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा आरोपी है। आशीष मिश्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत अर्जी नामंजूर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। बुधवार को जब यह मामला सामने आया तो सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी कोर्ट से आई रिपोर्ट की जानकारी दी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट में कहा गया है कि आज बुधवार को अदालत की कार्यवाही शुरू होने पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस वी. रामसुब्रह्मण्यम की बेंच ने बताया कि लखीमपुर के एडिशनल सेशन जज ने सूचित किया है कि 208 गवाहों, 171 दस्तावेजों, 27 एफएसएल रिपोर्ट को देखने, सुनने में कम से कम पांच साल लगेंगे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट बेंच ने टिप्पणी की क्या इतने दिनों तक आरोपी जेल में रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने 12 दिसंबर को लखीमपुर खीरी कोर्ट से कहा था कि वो इस मामले की सुनवाई की समय सीमा तय करे। उसके बाद वहां से ये जवाब सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने आज इस टिप्पणी के बाद यूपी की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद से पूछा कि इस मामले में दो एफआईआर है। क्या दूसरी एफआईआर में नामजद सभी आरोपी पकड़े गए। दूसरे केस की स्टेटस रिपोर्ट क्या है। दरअसल, हमारे दिमाग में कुछ और है। इस मामले में क्रॉस एफआईआर कराई गई थी। अदालत उसी के बारे में जानना चाहता था।
इसी दौरान लखीमपुर खीरी कोर्ट की रिपोर्ट पर पीड़ित किसानों के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले को लोकल कोर्ट को रोजाना सुनना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा अन्य मुकदमों की सुनवाई की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए।
प्रशांत भूषण की दलील का आरोपी आशीष मिश्रा के वकील मुकुल रोहतगी ने विरोध किया। रोहतगी ने कहा कि यहां हम आशीष मिश्रा की जमानत की अर्जी लेकर आए हैं। इस पर प्रशांत भूषण ने अदालत से कहा कि सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे आज बुधवार को बीमार हैं। इसलिए आज सुनवाई को टाल दिया जाए। बाद में अदालत ने 19 जनवरी की अगली तारीख इस मामले में लगा दी।
3 अक्टूबर, 2021 को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में हिंसा भड़कने के बाद चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी। उस मामले में आशीष मिश्रा व अन्य आरोपी हैं। किसान संगठनों और विपक्ष ने आरोप लगाया था कि आशीष मिश्रा का वाहन प्रदर्शनकारी किसानों पर चढ़ाया गया था। बुधवार की सुनवाई में, पीड़ितों के परिवारों की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने स्थगन की मांग की, क्योंकि मुख्य वकील दुष्यंत दवे अस्वस्थ थे।
क्यों हो प्रतिदिन सुनवाईः लोकल कोर्ट की रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मामले में गवाहों पर बहुत क्रूरता से हमला किया गया। इसलिए इस मामले की सुनवाई रोजाना हो। बता दें कि गवाह प्रभजीत सिंह के भाई सर्वजीत सिंह पर कथित तौर पर दिसंबर में हमला किया गया था, जबकि भारतीय किसान यूनियन के नेता दिलबाग सिंह को जून में गोली मार दी गई थी। हालांकि किसान नेता को कोई चोट नहीं आई।
प्रशांत भूषण ने बुधवार को तर्क दिया कि आशीष मिश्रा एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और जमानत पर रिहा होने पर गवाहों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
क्या है मामला
आशीष मिश्रा को पहली बार 9 अक्टूबर, 2021 को मामले में गिरफ्तार किया गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दिए जाने के पांच दिन बाद 15 फरवरी, 2022 को वह जेल से बाहर आए। हालांकि, हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों ने जमानत के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और 18 अप्रैल को मिश्रा की जमानत रद्द कर दी। वह वर्तमान में लखीमपुर जेल में बंद है।6 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने मिश्रा सहित 14 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए थे। मिश्रा पर हत्या, हत्या के प्रयास, दंगा और आपराधिक साजिश सहित कई अपराधों का आरोप लगाया गया है।