एनडीए से अलग हुए कुशवाहा थाम सकते हैं लालू की 'लालटेन' 

07:57 pm Dec 10, 2018 | यूसुफ़ अंसारी - सत्य हिन्दी

मोदी सरकार में पूरे सारे साढ़े 4 साल सत्ता का सुख भोगने के बाद राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने आखिरकार मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके साथ ही वे एनडीए छोड़कर विपक्षी खेमे में आ गए हैं। वे मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री थे। हालाँकि आज महागठबंधन को लेकर हुई विपक्षी दलों की बैठक में उन्होंने शिरकत नहीं की लेकिन उनके क़रीबी लोगों ने संकेत दिए हैं कि वह जल्द ही बिहार में आरजेडी का दामन थाम सकते हैं।

सोमवार को अपने घर बुलाई गई प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उपेंद्र कुशवाहा ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा और एनडीए छोड़ने का एलान किया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने के बाद से ही बीजेपी और जेडीयू उनकी पार्टी को कमज़ोर करने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं। एनडीए में उनकी अनदेखी हुई है। उन्होंने साफ़ किया कि अपनी उपेक्षा को सहने की भी एक हद होती है। पानी सर से ऊपर उतरने के बाद ही उन्होंने एनडीए से नाता तोड़ने का फ़ैसला किया है।

मोदी पर हमला

कुशवाहा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि मोदी ने पिछड़े वर्गों की अनदेखी की है। उन्होंने आगे जोड़ा कि पिछड़ा होने के नाते उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने में मदद की थी, पिछड़े वर्गों के लिए मोदी सरकार से काफ़ी उम्मीद थी लेकिन मोदी ने तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उनके अपने मंत्रालय में ही पिछड़े वर्गों की अनदेखी हुई और आरएसएस के लोगों को तवज्जो दी गई।

‘मंदिर-मसजिद पार्टी का काम नहीं’

उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले हफ़्ते ही एनडीए से नाता तोड़ने के संकेत दे दिए थे। हाल ही में 4 और 5 दिसंबर को बिहार के वाल्मीकि नगर में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अयोध्या मुद्दे पर एक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में बहुत सख़्त लहज़े में यह बात कही गई थी मंदिर-मसजिद बनाना किसी राजनीतिक दल का काम नहीं होता। लिहाज़ा बीजेपी और अन्य पार्टियों को मामले में नहीं पड़ना चाहिए। यह साफ़ संकेत था कि उपेंद्र कुशवाहा ज़ल्द ही बीजेपी से नाता तोड़ लेंगे और वही हुआ भी।

तो सीटों की सौदेबाज़ी क्यों हुई?

बीजेपी और जेडीयू के बीच हुए सीटों के समझौते के बाद से ही उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी से नाराज़ चल रहे थे। दरअसल, इस गठबंधन के बाद बीजेपी उपेंद्र कुशवाहा को पिछली बार दी गई 3 सीटों के मुक़ाबले 2 सीटें दे रही थी, जबकि वह चार सीटें माँग रहे थे। नाराज़गी जताने के बावजूद ना तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उपेंद्र कुशवाहा को बातचीत के लिए बुलाया और न ही प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें तवज्जो दी। 

आरजेडी से कैसा संबंध?

गौरतलब है कि जिस दिन बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों के बँटवारे को लेकर दिल्ली में नीतीश कुमार और अमित शाह की मुलाक़ात हुई थी उसी दिन कुशवाहा आरजेडी अध्यक्ष तेजस्वी यादव से उनके घर जाकर मिले थे। तभी से लग रहा था कि वे बीजेपी का दामन छोड़ के आरजेडी का दामन थाम सकते हैं। कुशवाहा के क़रीबी सूत्रों का कहना है कि आरजेडी उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में वापस लेना चाहते हैं और राज्य में पार्टी की ताक़त के हिसाब से लोकसभा की सीटें भी देने को तैयार हैं। सूत्रों के मुताबिक़ उपेंद्र कुशवाहा 5 सीटें माँग रहे हैं जबकि आरजेडी 4 सीटें देने को तैयार है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपेंद्र कुशवाहा ने साफ़ किया कि वह विपक्षी दलों की बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं लेकिन बीजेपी के ख़िलाफ़ जो भी मज़बूत मोर्चा बनेगा उसमें शामिल होने का विकल्प खुला है। कुशवाहा के लिए बिहार की राजनीति महत्वपूर्ण है उनके लिए आरजेडी के साथ जाना ज़्यादा फ़ायदे का सौदा है।

पार्टी के दो विधायकों ने किया विरोध

कुशवाहा की पार्टी के दो विधायकों ने एनडीए से अलग होने के उनके फ़ैसले का विरोध किया है। विधायक ललन पासवान ने कहा है कि वे पूरी तरह से एनडीए के साथ रहने के पक्ष में हैं। वहीं एक अन्य विधायक शुधांशु शेखर ने तो नीतिश कुमार की पार्टी जेडीयू में शामिल होने के संकेत दिए हैं।