कोर्ट ने पूछा- क्या कृषि क़ानूनों को रोक सकते हैं, केंद्र का इनकार

02:32 pm Dec 17, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

दिल्ली में कड़ाके की ठंड के बीच हज़ारों किसान सिंघू, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं। इनकी एक ही मांग है कि मोदी सरकार अपने नए कृषि क़ानूनों को वापस ले ले। हरियाणा-राजस्थान के रेवाड़ी बॉर्डर पर भी किसान डटे हैं और हरियाणा की पुलिस उन्हें आगे नहीं बढ़ने दे रही है। इस सब के बीच, आज सुप्रीम कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई होनी है। 

कमेटी बनाने का प्रस्ताव 

दिल्ली के बॉर्डर्स पर बैठे किसानों को हटाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई थी। सुनवाई के बाद अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। 

सुनवाई के दौरान सीजेआई एसए बोबडे ने केंद्र सरकार से कहा कि अगर आप खुले मन से बातचीत नहीं करेंगे तो यह फिर से फ़ेल हो जाएगी। 

सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जो किसानों के ख़िलाफ़ हो। उन्होंने कहा कि किसान सरकार के साथ बैठें और हर क्लॉज पर चर्चा करें, तभी खुले मन से बात हो सकती है। 

खुले मन से हो चर्चा

अदालत ने कहा था कि हम इस मसले को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव रख रहे हैं जिसमें देश भर के किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, सरकार के अलावा बाक़ी संबंधित लोगों को भी शामिल किया जा सकता है। 

इस पर सीजेआई ने कहा कि ऐसा लगता है कि आपकी बातचीत से बात नहीं बन पा रही है, आप हमें किसानों की यूनियन का नाम दीजिए। जस्टिस बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन की बेंच ने इस मामले में किसान संगठनों को पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी थी। 

आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि किसी तरह की कमेटी बनाने से इस मसले का हल नहीं निकलेगा और वे चाहते हैं कि इन क़ानूनों को बिना देर किए वापस ले लिया जाए। किसानों ने कहा है कि सरकार को क़ानून बनाने से पहले किसानों और अन्य लोगों की कमेटी बनानी चाहिए थी। 

खारिज किया सरकार का प्रस्ताव 

बुधवार को किसानों ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। किसानों ने कहा था कि इसमें वही सारी बातें हैं, जो पिछले दौर की बातचीत में हो चुकी हैं। किसान नेताओं ने कहा है कि वे बातचीत के दौरान सरकार को अपने मुद्दों के बारे में पहले ही बता चुके हैं, इसलिए वे इस प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। 

दूसरी ओर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से बड़ी संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान भी बड़ी संख्या में डटे हुए हैं। 

सुनिए, किसान आंदोलन पर चर्चा- 

सिख धर्मगुरू ने की आत्महत्या 

सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसानों के आंदोलन में बुधवार शाम को उस वक़्त बड़ी घटना हो गई जब सिख धर्म गुरू संत बाबा राम सिंह ने ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। संत बाबा राम सिंह हरियाणा के करनाल के रहने वाले थे। उन्होंने सुसाइड नोट भी छोड़ा है। जिसमें लिखा है कि वह किसानों की बेहद ख़राब हालत के कारण यह आत्मघाती क़दम उठा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग संत बाबा राम सिंह के कीर्तन को सुनते थे। 

उन्होंने आगे लिखा है, ‘मैं अपने हक़ के लिए लड़ रहे किसानों का दर्द समझता हूं और सरकार उन्हें इंसाफ़ दिलाने के लिए कुछ नहीं कर रही है। जुल्म करना पाप है तो जुल्म सहना भी पाप है। मैंने ख़ुद की क़ुर्बानी देने का फ़ैसला किया है।’ 

सोनीपत के डीसीपी श्याम लाल पूनिया ने कहा है कि घटना के बाद संत बाबा राम सिंह को पानीपत के पार्क अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 65 साल के संत बाबा राम सिंह इन दिनों किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए सिंघु और टिकरी बॉर्डर जाते थे। 

दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि संत बाबा राम सिंह की आत्मा को शांति मिले। उन्होंने सभी से संयम बनाए रखने की विनती की है। 

किसानों ने सरकार को चेताया

दिल्ली-यूपी के तमाम बॉर्डर्स पर डेरा डालकर बैठे किसानों ने मोदी सरकार को चेताया है कि वह उनके आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश बंद करे। 

किसानों के तमाम संगठनों की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल को भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि वे सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह किसानों के सभी संगठनों को बराबर अहमियत दे और सभी से बात करे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, कृषि मंत्रालय ने किसानों की ओर से पत्र मिलने की पुष्टि की है।