+
सरकार ने क्या एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों की स्कॉलरशिप रोक ली है?

सरकार ने क्या एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों की स्कॉलरशिप रोक ली है?

अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के युवा छात्रों को मिलने वाली कई सारी स्कॉलरशिप को मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंगलवार को आंकड़ों के साथ इस आरोप को पेश किया है। ये आंकड़े राज्यसभा और बजट दस्तावेजों से लिये गये हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंगलवार को आरोप लगाया कि सरकार ने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के युवा छात्रों की छात्रवृत्ति "छीन" ली है। उन्होंने दावा किया कि "सबका साथ, सबका विकास" का नारा कमजोर वर्गों की आकांक्षाओं का मजाक उड़ा रहा है। खड़गे ने पूछा कि जब तक देश के कमजोर वर्गों के छात्रों को अवसर नहीं मिलेंगे और उनके कौशल को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा, तब तक युवाओं के लिए रोजगार कैसे बढ़ेगा।

खड़गे ने एक्स पर पीएम मोगी को टैग करते हुए कहा- ये शर्मनाक सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि मोदी सरकार ने न केवल सभी छात्रवृत्तियों में लाभार्थियों की संख्या में भारी कमी की है, बल्कि हर साल औसतन 25 प्रतिशत कम फंड खर्च किया है। उन्होंने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए "घटती" छात्रवृत्ति के आंकड़े साझा किए।

खड़गे के मुताबिक अनुसूचित जाति के छात्रों की प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप पिछले 9 वर्षों में 57% तक कम कर दी गई है। यानी आधे से ज्यादा छात्रवृत्ति खत्म कर दी गई। इसी तरह ओबीसी वर्ग की प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति 77% कमी कर दी गई। मैट्रिक के बाद पढ़ने वाले एससी छात्रों की स्कॉलरशिप 9 वर्षों में 13%, एसटी की 21%, ओबीसी-ओबीसी-डीएनटी की छात्रवृत्ति पिछले 10 वर्षों में 58% तक गिरावट आई है।

  • पिछले दस वर्षों में अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र-छात्राएं सरकारी छात्रवृत्ति और अन्य स्कीमों से सबसे ज्यादा वंचित किये जा रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष ने जो आंकड़ा पेश किया है, उसके मुताबिक प्री मैट्रिक वाले अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं की स्कॉलरशिप में पिछले चार वर्षों में 94% की गिरावट दर्ज की गई है। यानी अब अल्पसंख्यक युवा छात्रों को न के बराबर स्कॉलरशिप मिलती है। इसी तरह पोस्ट मैट्रिक अल्पसंख्यक छात्रों की छात्रवृत्ति में पिछले चार वर्षों में 83% की गिरावट आई है। सबका साथ सबका विकास नारे की हकीकत यहीं पर पता चलती है।

कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का आंकड़ा दरअसल जरा देर से आया है। मोदी सरकार ने 2022 में ही कक्षा 1 से 8 तक के एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों की छात्रवृत्ति बंद कर दी थी। सरकार ने इसे नजरिये के साथ बंद किया था कि जब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जा रही है तो ऐसे में स्कॉलरशिप देने का क्या औचित्य है। लेकिन सरकार ने यह नहीं सोचा कि बहुत सारे गरीब मां-बाप अपने बच्चों को स्कूलों में स्कॉलरशिप की वजह से भी पढ़ा रहे थे। ऐसे में उस वर्ग के छात्र स्कूल छोड़ सकते हैं। लेकिन मोदी सरकार ने इन तर्कों की कोई परवाह नहीं की।

उस समय सरकार ने अपने फैसले को उचित ठहराते हुए कहा था कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 सरकार को हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा (कक्षा I से VIII) प्रदान करने के लिए बाध्य करता है। इसलिए सिर्फ कक्षा IX और X में पढ़ने वाले छात्रों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय की पूर्व-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत कवर किया जाएगा। इसी तरह 2022-23 से, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की पूर्व-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत कवरेज भी केवल कक्षा IX और X के लिए होगी।

राजनीतिक दल चाहते तो 2022 में ही इसे मुद्दा बना सकते थे। लेकिन उन्होंने सिर्फ बयान देकर चुप्पी साध ली। राजनीतिक दल आम लोगों तक इस संदेश को नहीं पहुंचा सके कि किस तरह सरकार ने स्कॉलरशिप बंद कर दी है। उस समय कांग्रेस, बसपा, सपा, आरजेडी आदि ने सरकार के फैसले की आलोचना की थी लेकिन इस पर वो आंदोलन नहीं छेड़ सके।

स्कूल ड्रॉपआउट की स्थिति

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत में स्कूल छोड़ने की कुल दर लगभग 12.6% है, जिसमें सबसे अधिक स्कूल छोड़ने की दर माध्यमिक स्तर (कक्षा 9-12) पर है। जहां यह दर प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर की तुलना में बहुत अधिक है।

आधे से अधिक भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ड्रॉपआउट में गिरावट देखी गई। 2023-24 में 30 लाख 70 हजार कम छात्र स्कूल में नामांकित हुए। यह आंकड़ा सरकार के शिक्षा के लिए एकीकृत सूचना प्रणाली पोर्टल से 2024 में आया था।

स्कूल ड्रॉपआउट में गिरावट वाले 21 राज्यों में से बिहार सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है।


राजस्थान में 2024 में प्राइमरी स्कूल छोड़ने वालों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई, जो 3.2 प्रतिशत थी। इस स्तर पर ड्रॉपआउट पहले के 4.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.6 प्रतिशत हो गये। लेकिन बिहार में सबसे अधिक ड्रॉपआउट 8.9 प्रतिशत था, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग चार गुना अधिक था। उच्च प्राथमिक स्तर पर स्थिति बहुत खराब थी, क्योंकि बिहार में कक्षा 6-8 के बीच एक चौथाई से अधिक छात्र स्कूल छोड़ देते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 4.9 प्रतिशत है। बिहार में एक वर्ष में ड्रॉपआउट में 10.9 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई। 3.8 प्रतिशत अंकों की गिरावट के बावजूद माध्यमिक विद्यालय छोड़ने वालों में भी बिहार देश में सबसे आगे रहा, क्योंकि कक्षा 9-10 में चार में से एक छात्र ने पढ़ाई छोड़ दी।

(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें