मुंबई में नहीं, राष्ट्रपति भवन में इंदिरा से मिला था 'अंडरवर्ल्ड डॉन' करीम लाला!

10:05 am Jan 17, 2020 | संजय राय - सत्य हिन्दी

छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जाने वाली किताब को लेकर अभी मामला शांत ही नहीं हुआ कि अंडरवर्ल्ड और नेताओं के रिश्ते पर बहस छिड़ गयी। और यह बहस भी शिवसेना नेता संजय राउत के एक समाचार पत्र के कार्यक्रम में दिए गए बयान से उपजी। एक जमाने में साप्ताहिक 'लोकप्रभा' पत्रिका में क्राइम रिपोर्टर रहे राउत ने कहा, ‘मुंबई के अंडरवर्ल्ड को क़रीब से देखा था और उसको लेकर ख़बरें भी बनायी थीं। तब मुंबई का अंडरवर्ल्ड इतना मज़बूत था कि बड़े-बड़े नेता उनसे मिलने आते थे, इंदिरा गाँधी मुंबई में करीम लाला से मिलने आती थीं, अंडरवर्ल्ड के इशारे पर मुंबई का पुलिस आयुक्त तय होता था…’  संजय राउत के इस बयान के बाद सियासी घमासान मच गया। जब तक उनकी सफ़ाई आती तब तक करीम लाला और हाजी मस्तान के परिवार से जुड़े लोगों ने दावे किए कि करीम लाला तो शरद पवार, बालासाहब ठाकरे, राजीव गाँधी से भी मिलते रहे हैं। 

हालाँकि कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया पर कुछ ही घंटों बाद राउत ने इस मामले में सफ़ाई दी और कहा कि जिस तरह से उनके बयान को लिया जा रहा है वैसा उन्होंने नहीं कहा। वह कांग्रेस नेता पंडित नेहरू, इंदिरा और राजीव गाँधी का हमेशा से सम्मान करते रहे हैं और समय-समय पर उन्होंने जो लेख लिखे हैं उनमें भी यह बात साफ़ दिखाई देती है। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मौक़े को नहीं छोड़ा और कांग्रेस से पूछा है कि क्या कांग्रेस उस समय अंडरवर्ल्ड के भरोसे चुनाव जीतती थी, क्या कांग्रेस को अंडरवर्ल्ड से फ़ाइनेंस मिलता था 

करीम लाला ने इंटरव्यू में क्या कहा था

उस जमाने के एक और क्राइम रिपोर्टर का बयान भी सामने आया है जिन्होंने करीम लाला के इंदिरा गाँधी के साथ उस फ़ोटो की कहानी को बताया जिसको लेकर यह पूरा विवाद उठा। बलबीर परमार नामक इन पत्रकार ने कहा कि जब उन्होंने 1983 में करीम लाला का इंटरव्यू किया था तब उसमें उनका पहला सवाल ही यही था कि आपकी इंदिरा गाँधी से पहचान है क्या परमार ने बताया कि उन्हें इंदिरा गाँधी के साथ करीम लाला का फ़ोटो मिला था और इसी आधार पर यह सवाल किया। इस सवाल के जवाब में करीम लाला ने कहा कि मैं मैडम से मिला था। 

बलजीत परमार ने बताया कि करीम लाला ने जिस मुलाक़ात के बारे में बताया वह एक महज संयोग की बात है। वह इंदिरा गाँधी से मिलने के लिए दिल्ली नहीं गए थे। जिस फ़ोटो में करीम लाला इंदिरा जी के साथ हैं वह फ़ोटो साल 1973 का है। डॉ. हरिंद्रनाथ चटोपाध्याय जो प्रसिद्ध गीतकारऔर स्क्रिप्ट लेखक थे उन्हें 1973 में पद्मभूषण पुरस्कार मिला था। चटोपाध्याय करीम लाला के मित्र थे। जिस व्यक्ति को पुरस्कार मिलता है वह अपने साथ दो साथियों को ले जा सकता है। चटोपाध्याय के साथ इस कार्यक्रम को देखने करीम लाला भी राष्ट्रपति भवन पहुँचे थे। पुरस्कार वितरण कार्यक्रम समाप्त होने के बाद दरबार हॉल से निकलते समय दूसरे कक्ष से कुछ लोगों के साथ इंदिरा गाँधी बाहर निकल रही थीं। चटोपाध्याय की इंदिरा गाँधी से पहचान थी और उन्होंने उस समय करीम लाला की पहचान 'पख्तुन-ए-हिंद' के अध्यक्ष के रूप में उनसे कराई थी। इंदिरा जी को नमस्कार करते हुए तब करीम लाला ने उन्हें कहा था कि 'आप मुंबई आएँ तो हमसे मिलियेगा। इसके जवाब में इंदिरा जी ने कहा था कि आप भी दिल्ली आएँ तो मिलिएगा। उसी समय राष्ट्रपति भवन के फ़ोटोग्राफर ने वह फोटो खींचा। राष्ट्रपति भवन के फ़ोटोग्राफ़र से मिले इंदिरा गाँधी के साथ के उस फ़ोटो को करीम लाला ने अपने एलबम में लगा रखा था। परमार के अनुसार उन्होंने अपने उस लेख में वह फ़ोटो प्रकाशित भी किया था। 

करीम लाला के पोते का दावा

इसी संबंध में पूर्व माफिया डॉन करीम लाला के पोते सलीम ख़ान का भी बयान आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके दादा बालासाहब ठाकरे, शरद पवार और राजीव गाँधी जैसे राजनीतिक दिग्गजों से मिलते थे। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। उनके दादा मुंबई और दिल्ली में इन नेताओं से मिलते थे। सलीम ने कहा, 'यह कहना तो ग़लत है कि इंदिरा गाँधी मेरे दादा से मिलने पाइधोनी (दक्षिण मुंबई) स्थित उनके आवास पर आई थीं, लेकिन यह सभी जानते हैं कि उनकी दिल्ली में मुलाक़ात हुई थी। उन्होंने कहा कि करीम लाला तत्कालीन नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (आज पाकिस्तान का खैबर-पख्तूनख्वा) के मुंबई और अन्य जगहों के पठानों के नेता थे और फ्रंटियर गाँधी ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान के क़रीबी थे। जब कभी समुदाय के लोगों को परेशानी होती थी तो वे नेताओं की मदद से इसका हल निकालने की कोशिश करते थे। 

सलीम ने बीजेपी नेता देंवेद्र फडणवीस के इस बयान को ग़लत बताया कि कांग्रेस चुनाव जीतने के लिए अंडरवर्ल्ड की मदद लेती थी या पैसे लेती थी।

सलीम ने कहा, 'मेरे दादा एक व्यापारी थे। उनके दिल में पठान समुदाय के सरोकार थे। वह कभी भी राजनीति के लिए इच्छुक नहीं थे। उनके पास इतना था ही नहीं कि वह किसी नेता या पार्टी को धन देते।'

अंडरवर्ल्ड छोड़कर राजनीति में शामिल होने वाले हाजी मस्तान के गोद लिए पुत्र सुंदर शेखर का भी इसी सिलसिले में बयान आया और उन्होंने कहा कि हाजी मस्तान की राजनेताओं और फ़िल्मी सितारों में बहुत माँग थी। शेखर ने कहा, 'हाजी मस्तान और शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे के बीच भी मुलाक़ातें होती थीं। हाजी मस्तान तब राजनीति में आ चुके थे और उनकी पार्टी ने कई बार चुनाव भी लड़े थे।’ 

कौन था करीम लाला

बताया जाता है कि अब्दुल करीम शेर ख़ान (करीम लाला) का परिवार 1920 के दशक में मुंबई आया था, और दक्षिणी मुंबई के भिंडी बाज़ार इलाक़े में रहता था। 40 के दशक में करीम लाला मुंबई बंदरगाह पर मज़दूर के तौर पर काम करता था और शीघ्र ही वह पठानों की गैंग में शामिल हो गया था, जो उस समय तक गुजराती ज़ायदाद मालिकों और व्यापारियों के लिए देनदारों से वसूली का काम किया करता थे। वह कुछ दिनों में ही पठान गैंग का सरगना बन गया, जो सुपारी लेकर जबरन घर खाली करवाने, अगवा और जबरन वसूली तक के काम करने लगा था। आरोप हैं कि करीम लाला ने इन धंधों के अलावा ग़ैर-क़ानूनी शराब और सट्टे का धंधा भी चलाया। जिस दौर में करीम लाला का काम जोरों पर था बताया जाता है कि उन दिनों वह बॉलीवुड की जानी-मानी हस्तियों को अपनी दावतों और ईद पर आयोजित कार्यक्रमों में बुलाया करता था। कई हिन्दी फ़िल्मों में करीम लाला से मिलते-जुलते किरदार भी रखे गए। यह भी कहा जाता है कि वर्ष 1973 में आई सुपरहिट फिल्म 'ज़ंजीर' में प्राण द्वारा निभाए गए 'शेर खान' के हावभाव करीम लाला से मिलते-जुलते थे। करीम लाला की मौत 90 साल की उम्र में 19 फरवरी, 2002 को हुई।

मुंबई के अंडरवर्ल्ड नेताओं से रिश्तों की कहानियाँ बहुत अलग-अलग हैं। लेकिन ये रिश्ते कैसे थे इनके सच से ज़्यादा इन पर कयास ही लगाए जाते रहे हैं। और ये कयास कभी-कभी ऐसे संकेत देने लगते हैं कि क्या 'बॉलीवुड की फ़िल्मों की पटकथाओं में दिखाए जाने वाले नेताओं-अपराधियों के रिश्ते की तरह इनमें भी कोई सच्चाई है