पेगासस स्पाइवेयर मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज से कराए जाने की मांग को लेकर वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने यह याचिका तब दायर की है जब पेगासस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, कुछ मंत्रियों, क़रीब 40 पत्रकारों सहित दूसरे लोगों की जासूसी कराए जाने की रिपोर्टें आ रही हैं।
इस मामले में अब तक कम से कम तीन याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं। दो दिन पहले ही सीपीएम के एक सांसद और इससे भी पहले एक वकील ने अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी। प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठन भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराए जाने की मांग पहले ही कर चुके हैं। विपक्षी दल के नेता भी संयुक्त संसदीय कमेटी यानी जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग लगातार कर रहे हैं।
अब एन राम और शशि कुमार की ताज़ा याचिका में कहा गया है कि दुनिया भर के कई प्रमुख प्रकाशनों से जुड़ी वैश्विक जाँच से पता चला है कि भारत में 142 से अधिक व्यक्तियों को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में पहचाना गया था। याचिका में यह भी कहा गया है कि उस स्पाइवेयर के संभावित टार्गेट किए गए कुछ मोबाइल फ़ोन की फ़ोरेंसिक जाँच में भी पेगासस के हमले के निशान मिले हैं। इसमें कहा गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब ने फ़ोरेंसिक जाँच की है।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट को सरकार को यह खुलासा करने का निर्देश देना चाहिए कि क्या उसने स्पाइवेयर के लिए लाइसेंस प्राप्त किया है या इसका इस्तेमाल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी तरह की निगरानी के लिए किया है।
ऐसी मांग तब से उठ रही है जब इजराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर का विवाद आया है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके माध्यम से दुनिया भर में लोगों पर जासूसी कराई गई। 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'द वायर' सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। 'द वायर' के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं।
जो नंबर पेगासस के निशाने पर थे वे विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।
इस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर केरल के सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास याचिका दायर कर चुके हैं। उन्होंने द वायर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि उन नंबरों में से एक नंबर सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम पर पंजीकृत है और यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के बराबर है और यह अभूतपूर्व व चौंकाने वाला है।
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था।
पिछले हफ़्ते ही एक वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कथित पेगासस जासूसी मामले की जाँच के लिए याचिका दायर की थी।
मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, 'पेगासस घोटाला गंभीर चिंता का विषय है और भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। निगरानी का व्यापक और ग़ैर-जवाबदेह उपयोग नैतिक रूप से भ्रष्ट है।'
प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया यानी पीसीआई के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड, दिल्ली पत्रकार संघ, इंडियन वीमेंस प्रेस कोर, वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन, आईजेयू और विभिन्न मीडिया संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग की थी।
पत्रकारों के संगठनों ने गुरुवार को बयान जारी कर चेताया था कि भारतीय नागरिकों की पेगासस स्पाइवेयर से जासूसी कराना भारतीय संप्रभुता को ख़तरे में डालेगा और इसलिए यह ज़रूरी है कि भारत सरकार इसमें दखल दे और साफ़ करे कि यह कैसे और क्यों हुआ। बयान में साफ़ तौर पर कहा कहा गया है, 'हम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जासूसी की जाँच किए जाने की मांग करते हैं। मीडिया संस्थान लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक विकल्प का उपाए भी तलाशेंगे।'
बयान में कहा गया है कि पत्रकारों के संगठन मानते हैं कि पत्रकारों, नागरिक समाज, मंत्रियों, सांसदों और न्यायपालिका पर ऐसी निगरानी सत्ता का पूरी तरह दुरुपयोग है और इसे तुरत रोका जाना चाहिए। इसने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में ऐसी नियंत्रित निगरानी नहीं की जा सकती है।