पत्रकार प्रिया रमानी आपराधिक अवमानना के आरोपों से बरी हो गई हैं। इस फ़ैसले से #MeToo मामले में फँसे पूर्व केंद्रीय मंत्री एम जे अकबर को झटका लगा है। उन्होंने रमानी के ख़िलाफ़ यह केस तब दर्ज कराया था जब 2018 में उछले #MeToo अभियान के दौरान उन्होंने अकबर के ख़िलाफ़ सेक्सुअल मिसकंडक्ट के आरोप लगाए थे।
दिल्ली की अदालत ने सुनवाई करते हुए कहा कि महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है। अदालत ने कहा, 'महिलाओं को यौन शोषण के मामलों को उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।' इसके साथ ही अदालत ने यह भी साफ़ किया कि 'भारतीय संविधान महिलाओं को किसी भी मंच और किसी भी समय अपनी शिकायतों को उठाने की अनुमति देता है।'
कोर्ट की यह टिप्पणी काफ़ी अहम है कि किसी भी मंच पर और किसी भी वक़्त महिला यौन शोषण की शिकायत को उठा सकता है। यह इसलिए कि पत्रकार रमानी एक अख़बार के लेख में कहा था कि कथित यौन दुराचार क़रीब 20 साल पहले हुआ था, जब अकबर 'एशियान एज' के प्रमुख थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्होंने नौकरी के लिए रमानी को अपने होटल के बेडरूम में बुलाया था और अनुचित व्यवहार किया था।
कोर्ट ने यह भी कहा, 'इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि ज़्यादातर बार यौन उत्पीड़न बंद दरवाजे के पीछे किया जाता है... ज़्यादातर महिलाएँ जो दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं, वे कलंक और अपने चरित्र पर हमला किए जाने के डर से नहीं बोल सकती हैं।'
इस फ़ैसले के #MeToo अभियान पर असर के बारे में रमानी ने संवाददाताओं से कहा, 'यह लड़ाई महिलाओं के बारे में रही है, मेरे बारे में नहीं रही है। मैंने सिर्फ़ उन सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया, जिन्होंने आवाज़ उठाई, जिन महिलाओं ने मेरे सामने आवाज़ उठाई और जिन्होंने मेरे पीछे आवाज़ उठाई। मैंने सोचा कि यह एक बहुत उपयुक्त निर्णय था। मेरी जीत निश्चित रूप से अधिक महिलाओं को बोलने के लिए प्रोत्साहित करेगी और इससे ताक़तवर पुरुषों को भी पीड़ितों को अदालत में घसीटने से पहले दो बार सोचना पड़ेगा। यह न भूलें कि मैं इस मामले में आरोपी थी। मुझ पर सिर्फ़ बोलने के लिए आरोप लगाया गया।'
#MeToo कैंपेन में विदेश राज्य मंत्री एम.जे. अकबर पर कई महिला पत्रकारों ने यौन दुर्व्यवहार और छेड़खानी के आरोप लगाए हैं। अकबर कई अख़बारों के संपादक रह चुके हैं।
क्योंकि प्रिया रमानी ने अकबर के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था इसलिए अकबर ने उसी समय यानी अक्टूबर 2018 में रमानी पर अवमानना का केस दायर किया था।
अवमानना का केस दर्ज कराने के दा दिन बाद ही 17 अक्टूबर को यौन उत्पीड़न का सामना कर रहे एम. जे. अकबर को विदेश राज्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
जब मीटू आंदोलन चल रहा था तब 20 से ज़्यादा महिलाओं ने अकबर पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। अकबर पर प्रिया रमानी के अलावा प्रेरणा सिंह बिंद्रा, शुमा राहा, हरिन्दर बावेजा, अंजू भारती, सुतापा पॉल, कनिका गहलोत, ग़जाला वहाब, सुपर्णा शर्मा, दो विदेशी महिला पत्रकारों व अन्य ने भी आरोप लगाए।
ग़ज़ाला वहाब
पत्रकार ग़ज़ाला वहाब ने प्रिया रमानी के केस में गवाह के रूप में कोर्ट में पेश हुई थीं तो उन्होंने भी आप बीती सुनाई थी। प्रिया रमानी से पहले ग़ज़ाला वहाब ने 2018 में भी एम. जे. अकबर के ख़िलाफ़ ट्वीट किया था- मुझे संदेह है कि एम. जे. अकबर के बारे में खुलासे कब होंगे।' मीटू आंदोलन में अकबर के फँसने के बाद ग़ज़ाला ने ' द वायर' के लिए इस पर एक लेख लिखा था जिसमें अकबर के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों के सिलसिले में घटनाओं का सिलसिलेवार ज़िक्र किया गया था। इन्हीं घटनाओं का ज़िक्र उन्होंने कोर्ट में भी किया जब वह प्रिया रमानी के गवाह के रूप में पेश हुईं। कोर्ट में अपनी गवाही के दौरान ग़जाला ने कहा कि 'द एशियन एज' अख़बर में, जहाँ तब एम. जे. अकबर संपादक थे, मेरी डेस्क अकबर के केबिन के ठीक बाहर रखी गई थी ताकि जब दरवाज़ा थोड़ा सा भी खुला हो तो वह मुझे देख सकें।
'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़ाला ने कथित तौर पर अदालत में कहा था, ‘कई बार जब मैं अपने पीसी पर काम कर रही होती थी और मैंने अपनी स्क्रीन से देखा, तो मैंने अकबर को मुझे देखते हुए पाया।’ उन्होंने कहा कि इसके बाद उन्हें ‘द एशियन एज’ की इंट्रानेट मैसेजिंग सर्विस पर व्यक्तिगत संदेश मिलने शुरू हो गए।
उन्होंने यह भी कहा कि अगस्त 1997 में, एम.जे. अकबर ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया, उन्हें दरवाज़ा बंद करने के लिए कहा और उन्हें शब्दकोश में एक शब्द देखने के लिए कहा, जिसे उसकी डेस्क पर एक स्टूल पर रखा गया था। उन्होंने कहा, ‘यह (पुस्तक) इतने नीचे रखी गई थी कि किसी को झुकना पड़े। जब मैं नीचे झुकी, एम.जे. अकबर पीछे से आए और उन्होंने मेरी कमर पकड़ ली। वह अपने हाथों को मेरे ब्रेस्ट से लेकर हिप्स तक ले गये। मैंने उनके हाथों को दूर करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी कमर मज़बूती से पकड़ी हुई थी।’ उन्होंने इस घटना को और विस्तार से कोर्ट को बताया।
हालाँकि, यह एकमात्र घटना नहीं थी। 'द न्यूज़ मिनट' के अनुसार, ग़ज़ाला ने अगले दिन हुई घटना के बारे में भी सुनाया, जिसके बारे में उन्होंने ‘द वायर’ में भी लिखा था। उन्होंने कहा, ‘अगली शाम, उन्होंने मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं वहाँ गई तो वह दरवाजे के बगल में खड़े थे और इससे पहले कि मैं प्रतिक्रिया दे पाती उन्होंने दरवाज़ा बंद कर दिया, मुझे उन्होंने अपने शरीर और दरवाज़े के बीच फँसा दिया… बाद में मैं बाहर भाग गयी।’
अदालत में उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में जब उन्होंने ब्यूरो चीफ़ को बताया कि क्या हुआ था, तो उन्होंने कथित तौर पर कहा कि यह ग़ज़ाला पर निर्भर है कि उन्हें क्या करना है। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि ‘1997 में कार्यस्थल अब के कार्यस्थलों से बहुत अलग थे। महिलाओं को पुरुष सहयोगियों के ख़िलाफ़ बोलने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता था।