ऐसे समय जब कई इसलामी देशों और भारत के मुसलिम धर्म गुरुओं से लेकर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव तक ने कोरोना वायरस के टीके पर सवाल उठाए हैं, जमात-ए-इसलामी (हिंद) ने इसे हरी झंडी दे दी है।
मुसलिम समुदाय के एक हिस्से में यह कह कर कोरोना टीके के विरोध किया जा रहा था कि इसमें इस्तेमाल की गई चीजों में कुछ 'हराम' (इसलाम में वर्जित) हैं। लेकिन जमात-ए-इसलामी ने 'हराम' के मुद्दे पर धार्मिक स्थिति साफ करते हुए कहा कि जान बचाने के लिए यदि दूसरी कोई चीज उपलब्ध न हो तो हराम का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसलाम में मनुष्य की जान को सबसे महत्वपूर्ण मानते हुए कुछ स्थितियों में 'हराम' के प्रयोग की भी छूट दी गई है।
जान बचाने के लिए हराम में छूट
जमात के शरिया परिषद के सचिव रज़ी-उल-इसलाम नदवी ने इसका दूसरे पहलू भी बताया। उन्होंने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, "यदि किसी हराम चीज को भी बिल्कुल नई वस्तु में तब्दील कर दिया जाए, जिसके गुण व विशेषताएँ मूल हराम की चीज से अलग हो तो उसे साफ माना जा सकता है और उसके इस्तेमाल की अनुमति दी जा सकती है।"
उन्होंने इसके आगे कहा, "इस आधार पर ही एक हराम जानवर के अंग से बनाए गए जिलेटिन को इसलामी विद्वानों ने जायज़ माना है।" नदवी ने कहा,
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"शरिया के विद्वान इससे सहमत नहीं हैं, वे भी यह मानते हैं कि किसी हलाल (स्वीकार्य) टीका न मिलने से जान बचाने के लिए हराम टीके का प्रयोग किया जा सकता है।"
रज़ी-उल-इसलाम नदवी, सचिव, शरिया परिषद, जमात-ए-इसलामी
जमात के इस इस विद्वान ने यह भी कहा कि "दूसरे टीके में इस्तेमाल की गई चीजों के बारे में पक्के तौर पर कुछ पता नहीं है, उनके बारे में जब पक्की जानकारी मिल जाएगी तो अगला दिशा निर्देश जारी किया जाएगा।"
क्या है विवाद?
इस पूरे विवाद की शुरुआत इस अफ़वाह से हुई कि कोरोना टीके में सूअर की चर्बी से बने जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है। इसके बाद इंडोनेशिया और संयुक्त अरब अमीरात ने इस टीके का विरोध किया।
दुनिया की सबसे अधिक मुसलिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया कुछ साल पहले तक उदार इसलाम के लिए जाना जाता है, पर वहाँ भी अब वहाबी इसलाम ने पैर पसारना शुरू कर दिया है। इसलिए इंडोनेशिया में भी अब इसलाम की अनुदार व कट्टरपंथी व्याख्या ज़्यादा होने लगी है।
इसका दूसरा पहलू यह है कि दूसरे इसलामी देशों, यहाँ तक कि वहाबी इसलाम के स्रोत सऊदी अरब तक ने कोरोना वैक्सीन का विरोध नहीं किया।
जमीअत का फ़तवा
जहाँ तक भारत की बात है, ऑल इंडिया सुन्नी जमीअत-उल-उलेमा परिषद और मुंबई की रज़ा अकेडेमी ने कोरोना वैक्सीन को 'हराम' क़रार देते हुए मुसलमानों से कहा वे इसे न लें।
'इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, ऑक्सफ़ोर्ड के कोरोना वैक्सीन में चिंपैंजी का अडीनोवायरल वेक्टर का इस्तेमाल किया जाता है जबकि भारत बायोटेक निष्क्रिय पड़े सार्स सीओवी-2 वायरस का प्रयोग करता है।
क्या कहना है कंपनियों का?
फ़ाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्राज़ेनेका ने स्पष्ट किया है कि कोरोना वैक्सी में सूअर से जुड़े किसी उत्पाद का इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन वैक्सीन सुरक्षित रहे, इसलिए सूअर का जिलेटिन उसमें मिलाया गया है।
बता दें कि शुक्रवार को कोविशील्ड को मंजूरी मिलने के बाद शनिवार को भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को भी सरकार की ओर से गठित पैनल ने मंजूरी दे दी है। इन दोनों वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को लेकर ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की मंजूरी जरूरी होगी।
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद सरकार ने शनिवार को ड्राई रन यानी टीकाकरण का पूर्वाभ्यास किया। देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह ड्राई रन किया गया। केंद्र सरकार की ओर से सभी से कहा गया था कि वे अपनी राजधानी में कम से कम तीन जगहों पर प्रक्रिया को करें। कुछ राज्यों ने राजधानी से बाहर के जिलों में भी इस प्रक्रिया को किया।
मुसलमान कोरोना वैक्सीन लगवाएं या नहीं, सुनिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का क्या कहना है।