जगदीप धनखड़ भारत के नए उप राष्ट्रपति चुने गए हैं। ओबीसी समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को बड़े अंतर से जीत मिली है। बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने जब जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था तब पहला सवाल यही उठा था कि आखिर जगदीप धनखड़ का ही चुनाव क्यों किया गया।
याद दिलाना होगा कि जब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जगदीप धनखड़ के नाम का एलान किया था तो उन्होंने धनखड़ को किसान पुत्र बताया था।
कृषि क़ानूनों के खिलाफ आंदोलन
राजस्थान के ताकतवर जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को किसान पुत्र बताने से सीधा मतलब यही था कि बीजेपी जाट राजनीति के साथ ही किसानों को भी साधना चाहती है। क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली के बाहरी इलाकों, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में उसे जोरदार विरोध झेलना पड़ा था और अंत में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनावी हार के डर से उसे कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था।
2024 लोकसभा चुनाव
2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी और संघ परिवार के सामने यह चिंता बनी हुई थी कि किसानों में भी ताकतवर समुदाय यानी जाट समुदाय की नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। क्योंकि किसान आंदोलन के दौरान हुई पुलिस कार्रवाई आदि वजहों से जाट और किसान नेताओं की नाराजगी सामने आई थी। ऐसे में जब मौका उप राष्ट्रपति के चुनाव का आया तो बीजेपी और संघ परिवार ने इस समुदाय के जगदीप धनखड़ पर दांव लगाना सही समझा।
अपने जीवन का लंबा वक्त अदालतों-कचहरियों में गुजार चुके जगदीप धनखड़ के उप राष्ट्रपति बनने से बीजेपी और केंद्र सरकार को राज्यसभा में भी मदद मिलेगी क्योंकि धनखड़ उप राष्ट्रपति बनने के बाद स्वत: ही राज्यसभा के सभापति होंगे। ऐसा माना जाता है कि वेंकैया नायडू के राज्यसभा सभापति रहते हुए केंद्र सरकार सदन से जुड़े तमाम कामों को लेकर उतनी सहज नहीं थी जितनी वह जगदीप धनखड़ के सभापति बनने के बाद होगी। इसलिए एक विशेष रणनीति के तहत ही बीजेपी ने जगदीप धनखड़ को चुनाव मैदान में उतारा।
जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाने के पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि जगदीप धनखड़ जिस जाट समुदाय से आते हैं, उसकी बीजेपी को 2024 के लोकसभा चुनाव में सख्त जरूरत है और यह समुदाय कई राज्यों में ताक़तवर है।
किसान राजनीति में दबदबा
किसान राजनीति में भी इस समुदाय के नेताओं का ही दबदबा है। यह दबदबा किसान आंदोलन के दौरान साफ दिखाई दिया था। पंजाब में भी जाट राजनीति बहुत ताकतवर है और वहां के किसान नेताओं ने भी कृषि आंदोलन के दौरान मोदी सरकार की नाक में दम कर दिया था।
लेकिन यह समझना जरूरी होगा कि जाट समुदाय का असर उपरोक्त राज्यों में कितना है और बीजेपी को इसका क्या फायदा मिल सकता है। यह भी देखना होगा कि जाटों की राजनीतिक ताकत क्या है।
चौधरी साहब का तमगा
जाटों की बड़ी ताकत इनके पास जमीन होना है। इस वजह से इन्हें जमींदार कहा जाता है। ये फसल उगाते हैं और इनका सम्मान चौधरी साहब के रूप में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के बाहरी इलाकों में किया जाता है। चौधरी साहब का मतलब ऐसे शख्स से है जिसकी गांव और अपने इलाके में धाक है।
भारत के तमाम बड़े किसान और जाट नेताओं में महेंद्र सिंह टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से थे और पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल हरियाणा से थे। किसान आंदोलन में भी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश और नरेश टिकैत ने कमान संभाली थी।
किस राज्य में कितनी ताकत?
राजस्थान में जाट सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है यहां जाटों की आबादी 10 फीसद से ज्यादा है और 200 विधानसभा सीटों में से 80 से 90 सीटों पर इनका असर है। राजस्थान में अगले साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। ऐसे में बीजेपी को उम्मीद होगी कि वह धनखड़ के जरिये जाटों का वोट अपनी ओर खींच सकेगी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह, चौधरी अजीत सिंह उनके बेटे जयंत चौधरी, केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान जाट सियासत के बड़े नाम हैं। यहां जाट समुदाय की आबादी 18 फीसद है।
दिल्ली में द्वारका से लेकर पालम, महरौली,नजफगढ़, बिजवासन, मुंडका, नांगलोई, नरेला, बवाना, मुनिरका आदि इलाकों में जाटों के गांव हैं। साहिब सिंह वर्मा जाट बिरादरी से थे और अब उनके बेटे प्रवेश वर्मा जाट चेहरे के तौर पर बीजेपी के सांसद हैं। राजधानी में जाट 6 फीसद के आसपास हैं।
हरियाणा को तो जाटों का गढ़ कहा जाता है और यहां अधिकतर मुख्यमंत्री जाट बिरादरी से ही रहे हैं। लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनाव में हरियाणा में बीजेपी ने गैर जाट मुख्यमंत्री का दांव खेला। इसे लेकर जाट समुदाय की नाराजगी खुलकर भी सामने आई। हरियाणा में जाटों की आबादी 25 फीसद है।
पंजाब में सिख जाटों की आबादी 22 से 25 फीसदी है। अधिकतर मुख्यमंत्री वहां जाट समुदाय से ही रहे हैं।
ओबीसी और किसान कार्ड
जाट समुदाय ओबीसी वर्ग में आता है इसलिए बीजेपी ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है। बीजेपी ने जगदीप धनखड़ को ओबीसी चेहरे और किसान पुत्र के रूप में पेश किया है। धनखड़ के उप राष्ट्रपति बनने से अगले साल होने वाले राजस्थान के विधानसभा चुनाव में और उसके कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 तक बीजेपी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े हुए संगठन जाट नौजवानों, बुजुर्ग जाटों के बीच में यह मैसेज देने का काम करेंगे कि बीजेपी ने इस बिरादरी के नेता को बड़ा सम्मान दिया है।
बीजेपी के इस कदम के बाद जाट समुदाय की नाराजगी कितनी कम होगी यह राजस्थान, हरियाणा के चुनाव या फिर लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों से पता चलेगा।
लेकिन इतना तय है कि बीजेपी ने धनखड़ को आगे करके जाट और किसान समुदाय को मनाने की कोशिश की है और उसे इस क़दम से थोड़ा बहुत सियासी फायदा मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता।