जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति चुनाव जीता, 528 वोट मिले, अल्वा को 182 वोट

02:26 pm Aug 07, 2022 | सत्य ब्यूरो

उप राष्ट्रपति चुनाव में भी एनडीए ने बाजी मार ली है। उन्हें आज शाम घोषित नतीजों में 582 वोट मिले, विपक्ष की प्रत्याशी मार्गेट अल्वा को 182 वोट मिले। 15 वोट अमान्य घोषित किए गए। चुनाव में कुल 725 सांसदों ने वोट डाला। कुल 92.94 फीसदी मतदान हुआ। इस जीत का राजस्थान का खासा महत्व है। नए उपराष्ट्रपति झुंझुनू के रहने वाले हैं। वहां जश्न मनाया जा रहा हैं। धनखड़ 11 अगस्त को शपथ लेंगे। चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने धनखड़ के आवास पर जाकर उन्हें बधाई दी।

उप राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यसभा के 245 सांसदों के साथ ही लोकसभा के 543 सांसद मतदाता होते हैं। राज्यसभा में 8 सीटें खाली हैं। 

इस चुनाव में एनडीए की ओर से जगदीप धनखड़ और विपक्षी दलों की ओर से मार्गेट अल्वा उम्मीदवार हैं। 

नतीजा घोषित होने के बाद मार्गेट अल्वा ने जगदीप धनखड़ को ट्वीट करके बधाई दी। अल्वा ने अपने ट्वीट में इस बात पर अफसोस जताया कि इस चुनाव में विपक्ष की कुछ पार्टियों ने बीजेपी की मदद की। विपक्ष के पास एकजुटता दिखाने का मौका था, लेकिन उसने खुद ही अपनी विश्वसनीयता खो दी है। अलवा ने लिखा - यह चुनाव खत्म हो गया है। हमारे संविधान की रक्षा, हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने और संसद की गरिमा को बहाल करने की लड़ाई जारी रहेगी।

बता दें कि इस चुनाव में टीएमसी, समाजवादी पार्टी ने मतदान नहीं किया। बीएसपी ने जगदीप धनखड़ को समर्थन दिया था।

मतदान सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक चला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस सांसद डॉ. मनमोहन सिंह, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, वी. मुरलीधरन, जितेंद्र सिंह और अश्विनी वैष्णव, कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम, डीएमके सांसद दयानिधि मारन आदि नेताओं ने वोट डाला। 

2017 में हुए उप राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के रूप में एम. वैंकेया नायडू ने विपक्षी उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी को हराया था। उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं।

फिर बंटा विपक्ष

राष्ट्रपति के चुनाव की तरह ही उप राष्ट्रपति के चुनाव में भी विपक्षी खेमा बुरी तरह बंटा हुआ दिखाई दिया। विपक्ष के बड़े राजनीतिक दल तृणमूल कांग्रेस ने मतदान से गैरहाजिर रहने का फैसला किया तो ओडिशा में सरकार चला रहे बीजू जनता दल के साथ ही आंध्र प्रदेश में सरकार चला रही वाईएसआर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, अकाली दल और शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट ने जगदीप धनखड़ को अपना समर्थन दिया। जबकि विपक्षी उम्मीदवार अल्वा को कांग्रेस, एनसीपी, आरजेडी, सपा के साथ ही आम आदमी पार्टी, टीआरएस, एआईएमआईएम, वाम दलों, शिवसेना के उद्धव गुट, झारखंड मुक्ति मोर्चा सहित कई अन्य दलों ने अपना समर्थन दिया। 

राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को भारी मतों से जीत मिली थी। राष्ट्रपति के चुनाव में कुल 748 सांसदों ने वोट डाला था और इसमें से द्रौपदी मुर्मू को 540 वोट मिले थे जबकि विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को सिर्फ 208 वोट मिले थे।

नए उप राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह 11 अगस्त को होगा। 10 अगस्त को वर्तमान उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। 

कौन हैं जगदीप धनखड़?

राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाणा गांव में 1951 में जन्मे जगदीप धनखड़ प्रभावशाली जाट बिरादरी से आते हैं। राजस्थान के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बाहरी इलाकों में जाट समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। पंजाब में सिख जाट ताकतवर हैं। माना जा रहा है कि जाट मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए ही बीजेपी ने जगदीप धनखड़ को चुनाव मैदान में उतारा है। पेशे से वकील रहे जगदीप धनखड़ बीजेपी, आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों को कानूनी सलाह और सहायता देते रहे हैं।

जगदीप धनखड़ 1989 में राजनीति में आए। धनखड़ 1989 से 91 तक जनता दल के टिकट पर राजस्थान की झुंझुनू सीट से सांसद रहे हैं और 1990 में केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। धनखड़ राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं और उन्होंने लंबे वक्त तक सुप्रीम कोर्ट में भी वकालत की है। वह 1993 से 98 तक किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक भी रहे।

कौन हैं अल्वा?

कुछ विपक्षी दलों की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा राज्यसभा की उपसभापति रही हैं व कांग्रेस की वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं। 

अल्वा ने कर्नाटक में कांग्रेस के लिए काफी काम किया है और वह 1972 में कर्नाटक महिला कांग्रेस की संयोजक चुनी गई थीं। अल्वा ने अपना संसदीय जीवन 1974 में शुरू किया था जब वह पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। अल्वा 1999 में लोकसभा की सांसद बनीं।

अल्वा एक नामी वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता होने के साथ ही ट्रेड यूनियन की नेता भी रही हैं। वह चार बार राज्यसभा और एक बार लोकसभा की सांसद रही हैं। अल्वा 1984 से 85 तक केंद्र सरकार में युवा और खेल मंत्रालय के राज्यमंत्री के रूप में काम कर चुकी हैं। 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में भी वह मंत्री रह चुकी हैं। वह कांग्रेस की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय संयोजक भी रही हैं और महिला अध्यक्ष अधिकारों की वकालत करती रही हैं। उनके सास और ससुर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।

टिकट बेचने का लगाया था आरोप

अल्वा के कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के साथ रिश्ते तब खराब हुए थे जब साल 2008 में उन्होंने कर्नाटक कांग्रेस पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों को चुनने के बजाय सबसे अधिक बोली लगाने वालों को चुनावी टिकट बेचा गया। इसके बाद उन पर कार्रवाई की गई थी और उन्हें पार्टी के पदों से हटा दिया गया था। हालांकि इसके बाद वह राजस्थान, गुजरात और गोवा में राज्यपाल रहीं और बीते कुछ वर्षों से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। उनके बेटे निवेदित अल्वा उत्तर कन्नड़ इलाके में राजनीति में सक्रिय हैं।