विपक्षी दलों के नेताओं ने इज़राइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर सरकार की साफ़ नीति नहीं होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि सरकार भ्रमित है। उनकी ऐसी प्रतिक्रिया तब आई है जब इज़राइल-हमास युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र में आए प्रस्ताव से भारत ने खुद को अलग कर लिया है। प्रस्ताव में इज़राइल-हमास संघर्ष में तत्काल मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था। सरकार के इस फ़ैसले के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और आरजेडी नेता लालू यादव जैसे नेताओं ने सरकार के रुख की आलोचना की है।
शरद पवार ने शनिवार को कहा कि फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत सरकार में भ्रम की स्थिति है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पिछली सरकारों में ऐसा भ्रम कभी नहीं देखा और देश के इतिहास में भारत की नीति हमेशा फिलिस्तीन का समर्थन करने की रही है, न कि इज़राइल का। शरद पवार ने सरकार के भीतर अलग-अलग राय का भी हवाला दिया और कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज़राइल के साथ एकजुटता व्यक्त की थी तो बाद में विदेश मंत्रालय ने कुछ अलग राह पकड़ी।
बता दें कि 7 अक्टूबर को इज़राइल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद से भारत की नीति को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। ऐसा इसलिए कि हमले के तुरंत बाद पीएम मोदी ने ट्वीट कर इज़राइल के साथ खड़े होने का संकेत दिया था। जबकि 13 अक्टूबर को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान में कहा था, 'इस संबंध में हमारी नीति लंबे समय से और लगातार वही रही है। भारत ने हमेशा सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना और इजराइल के साथ शांति से रहने के लिए सीधी बातचीत बहाल करने की वकालत की है।'
शरद पवार ने फिलिस्तीन मुद्दे के प्रति भारत की नीति में बदलाव की आलोचना की और कहा कि भारत ने कभी भी इजराइली मुद्दे का समर्थन नहीं किया है। उनकी यह टिप्पणी तब आई जब उनसे संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पर मतदान से भारत के दूर रहने पर उनकी राय पूछी गई।
आरजेडी नेता लालू यादव ने भी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा, 'यह पहली बार है जब भारत ने मानवता, युद्ध विराम और विश्व शांति के विषय पर सबसे आगे रहने के बजाय ढुलमुल रवैया अपनाया। केंद्र सरकार भारत की विदेश नीति के साथ खिलवाड़ बंद करे। मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील नीति हमारी विदेश नीति का ध्वज होना चाहिए।'
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा कि मुद्दा 'मानवीय है, राजनीतिक नहीं'। ओवैसी ने सरकार के कदम को चौंकाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव पर इस रुख से भारत ग्लोबल साउथ, दक्षिण एशिया और ब्रिक्स में अकेला पड़ गया है।
उन्होंने ट्वीट किया, 'नरेंद्र मोदी ने हमास के हमले की निंदा की, लेकिन वह संघर्ष विराम की मांग करने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर सहमत नहीं हो सके। उन्होंने कुछ दिन पहले जॉर्डन के राजा से बात की थी, लेकिन जॉर्डन द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव से दूर रहे। यह एक असंगत विदेश नीति है।'
उन्होंने ट्वीट में कहा, 'इजराइल ने ग़ज़ा में 7028 लोगों की हत्या कर दी है। उनमें से 3000 से अधिक बच्चे और 1700 महिलाएं हैं। ग़ज़ा में कम से कम 45% आवास नष्ट हो गए हैं। 14 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। शांतिकाल में भी, गज़ावासियों को पूर्ण नाकाबंदी का सामना करना पड़ता है और उन्हें मानवीय सहायता पर निर्भर रहना पड़ता है। युद्ध शुरू होने के बाद से हालात और भी खराब हो गए हैं।'
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित एक प्रस्ताव पर भारत द्वारा मतदान में भाग नहीं लेने से वह स्तब्ध और शर्मिंदा हैं।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा यानी यूएनजीए के 193 सदस्य 10वें आपातकालीन विशेष सत्र में फिर से जुटे थे। जॉर्डन द्वारा पेश तत्काल मानवीय संघर्ष विराम के मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया गया। इस प्रस्ताव को बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, रूस और दक्षिण अफ्रीका सहित 40 से अधिक देशों के सहयोग से लाया गया। इस प्रस्ताव को भारी बहुमत से अपनाया गया। 120 देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया, 14 ने इसके खिलाफ और 45 देशों ने मतदान नहीं किया। मतदान नहीं करने वालों में भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और यूके आदि शामिल रहे।