मनुस्मृति की चर्चा देश में अक्सर होती रहती है। अभी जब दिल्ली हाईकोर्ट की जज प्रतिभा सिंह ने मनुस्मृति की तारीफ की तो यह सवाल उठा कि मनुस्मृति में महिला विरोधी क्या क्या लिखा है। आरएसएस और बीजेपी इसे धार्मिक ग्रंथ मानते हैं और इसके तमाम नेता इसके समर्थकों में से हैं। हालांकि जेएनयू में जब छात्र-छात्राओं ने मनुस्मृति को पैरों तले रौंदा और जलाया तो आरएसएस से जुड़े छात्र संगठन एबीवीपी ने मनुस्मृति को धार्मिक ग्रंथ बताते हुए इसका विरोध किया था।
आइए जानते हैं कि मनुस्मृति में महिला विरोधी क्या क्या लिखा है, जिसके आधार पर तमाम महिला संगठन इसका विरोध करते हैं। मनुस्मृति चूंकि संस्कृत में है, इसलिए उसमें लिखी महिलाविरोधी बातों को अनुवाद के रूप में पेश किया जा रहा हैः
- हिंदू धर्म के अनुसार, सभी महिलाओं को भगवान ने वेश्या के रूप में बनाया है। वे हिंदू धर्म के अनुसार वेश्या हैं ... मनु धर्म। सभी महिलाओं की स्थिति पुरुष से कम है।
- इस दुनिया में पुरुषों को बहकाना महिलाओं का स्वभाव है। इस कारण से, बुद्धिमान कभी भी महिलाओं की संगति में असुरक्षित नहीं होते हैं।
- महिलाएं, अपने वर्ग चरित्र के प्रति सच्ची हैं, इस दुनिया में पुरुषों को गुमराह करने में सक्षम हैं, न सिर्फ मूर्ख बल्कि विद्वान और बुद्धिमान व्यक्ति को भी गुमराह कर सकती है। दोनों उसकी इच्छा के दास बन जाते हैं।
- बुद्धिमान लोगों को अपनी मां, बेटी या बहन के साथ अकेले बैठने से बचना चाहिए। चूँकि शारीरिक इच्छा हमेशा प्रबल होती है, यह प्रलोभन को जन्म दे सकती है।
-जो महिला अपने पति की बेइज्जती करे, बीमार हो, व्यभिचार में लिप्त हो, शराबी हो उसे तीन महीने के लिए अकेला छोड़ देना चाहिए। उससे उसकी ज्वैलरी और सारी सुख सुविधाएं छीन लेना चाहिए।
- रजस्वला (पीरियड या मासिक धर्म) वाली महिलाओं के बारे में भी मनुस्मृति की धारणा बहुत गलत है। इसके तीसरे अध्याय में कहा गया है कि जब कोई ब्राह्मण भोजन कर रहा हो तो उसे रजस्वला महिला, सुअर, मुर्गे, कुत्ते और हिजड़े (थर्ड जेंडर) को नहीं देखना चाहिए। यही वजह है कि पीरियड को लेकर आज भी भारतीय हिन्दू समाज उदार नहीं है। तमाम घरों में उनका बहिष्कार तक कुछ दिनों के लिए रहता है, वो रसोई में नहीं जा सकती हैं।
आमतौर पर मनुस्मृति का विरोध दलित और आदिवासी संगठनों की ओर से इसकी वर्ण व्यवस्था और उनको बांटे गए काम की वजह से होता है। लेकिन हाल ही के वर्षों में तमाम महिला संगठन आगे आए हैं और वे खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं। मनुस्मृति का शुरुआती विरोध डॉ आम्बेडकर, पेरियार शास्त्री, महात्मा फुले और तमाम प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने किया है। इस संबंध में तमाम दलित चिन्तकों का कहना है कि आज तक कभी किसी शंकराचार्य, सनातन धर्म या आरएसएस के सर संघ चालक ने मनुस्मृति को खारिज नहीं किया।