धूर्तों के कब्जे में भारतीय खेल, महिला खिलाड़ी चारागाह बनीं

09:05 pm Jan 21, 2023 | सत्य ब्यूरो

भारत में विभिन्न खेलों की एसोसिएशन नेताओं और नौकरशाहों के यौन संतुष्टि का केंद्र बन गए हैं। इतने गंभीर आरोप कभी नहीं लगे। हाल की दो घटनाओं से बीजेपी के नेता जुड़े हैं। भारत के स्टार एथलीट जंतर मंतर पर दो दिन तक भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ धरने पर बैठे। सरकार ने अभी तक बीजेपी सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। बस, यही कहा कि एक जांच समिति गठित की गई है, उसकी रिपोर्ट आने तक ब्रजभूषण शरण सिंह कामकाज से बेदखल रहेंगे। रिपोर्ट एक महीने में आएगी। 

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब हरियाणा के खेल मंत्री और पूर्व स्टार हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। बीजेपी विधायक संदीप सिंह पर एक महिला कोच ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। न जाने कितनी जांच रिपोर्ट आई और आरोपी मजे से आजाद घूमते रहे। भारतीय पहलवानों के प्रदर्शन को फिलहाल कोरे आश्वास पर खत्म तो करा दिया गया है लेकिन क्या बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह से भारतीय कुश्ती महासंघ को हमेशा के लिए छुटकारा मिलेगा। देश को एक महीने तक इंतजार करना होगा। 

ब्रजभूषण शरण सिंह और संदीप सिंह की घटनाएं ताजा हैं। लेकिन ऐसी घटनाएं तो ढेरों हैं। विनेश फोगाट ने तो 20 महिला खिलाड़ियों के उत्पीड़न का आरोप लगाया है। लेकिन अब बात जो सामने आ रही है कि विनेश ने एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के दौरान खुदकुशी तक का फैसला इसी ब्रजभूषण शरण सिंह की वजह से किया था। यह मामूली बात नहीं है।

खेलों में यौन उत्पीड़न इस समय चरम पर है।घटनाएं पहले भी होती थीं लेकिन नेता और नौकरशाहों के संरक्षण में यह सब होने लगेगा तो किसी विनेश फोगाट को तो उठना ही होगा।

जून 2022 में एक भारतीय साइकिलिस्ट ने भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) में शिकायत दर्ज कराई थी। साइकिल चालक ने अपने कोच आर. के. शर्मा पर मई 2022 में स्लोवेनिया में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। शिकायत में कोच द्वारा की गई यौन प्रगति और अपमानजनक टिप्पणियों का विवरण है।

शिकायत के अनुसार, कोच ने खुद को साइकिल चालक के कमरे में "मजबूर" किया, उसे "ट्रेनिंग के बाद की मालिश" करने का सुझाव दिया, उसे "उसके साथ सोने" और उसकी पत्नी बनने की पेशकश की क्योंकि उसका खेलों में भविष्य नहीं था। SAI और साइक्लिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (CFI) दोनों ने आरोपों की जांच के लिए एक पैनल बनाया है। उस घटना के बाद आरके शर्मा को क्या सजा हुई या क्या कार्रवाई हुई, कोई नहीं जानता है।अलबत्ता साइकिलिंग चैंपियन डेबोरा हेरोल्ड ने आरोप लगाया कि जब उन्होंने राष्ट्रीय कोच आरके शर्मा के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें भारतीय टीम से हटा दिया गया था।

ये सारी घटनाएं भारतीय खेल में शिकारी व्यवहार और महिलाओं से द्वेष की घटनाओं के दावों का समर्थन करती है। इससे यह भी पता चलता है कि कैसे प्रशिक्षकों और संरक्षकों के लिबास में नेताओं और नौकरशाहों ने खिलाड़ियों को भयभीत कर रखा है। भारत में खेलों में यौन उत्पीड़न के आंकड़े डराने वाले हैं। 

यौन उत्पीड़न का डेटाः द इंडियन एक्सप्रेस ने 2020 तक प्राप्त आंकड़ों को जमा किया है। एक्सप्रेस के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में यौन उत्पीड़न की 45 शिकायतें दर्ज की गई हैं। इनमें से 29 शिकायतें कोचों के खिलाफ दर्ज कराई गई हैं। फरवरी 2019 में, महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए गठित एक संसदीय समिति ने संकेत दिया था कि खेलों में यौन उत्पीड़न की घटनाएं अधिक हो सकती हैं क्योंकि वे अक्सर रिपोर्ट नहीं की जाती हैं।

जनवरी 2020 में एक महिला क्रिकेटर को कथित रूप से परेशान करने के आरोप में एक कोच के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जुलाई 2021 में सात खिलाड़ियों ने जाने-माने कोच पी नागराजन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उनके खिलाफ पहले से ही एक शिकायत दर्ज थी और कथित तौर पर वह वर्षों से एथलीटों को गाली दे रहे थे। उन्होंने एथलीटों को ट्रेनिंग बंद करने की धमकी भी दी थी। हालाँकि, ये घटनाएं महिला खिलाड़ियों को परेशान करने की एक व्यापक और गहरी जड़ वाले सिस्टम का हिस्सा हैं।

खेल संस्थानों की हालत

खेलों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं को झेलने के लिए महिला एथलीट टॉप पर हैं यानी सबसे ज्यादा जोखिम में महिला एथलीट हैं। कोचिंग विधियों को बिना कुछ कहे उन्हें माने जाने को कहा जाता है और इस बहाने उनके शरीर को टच किया जाता है। सार्वजनिक जांच से दूर लंबी प्रशिक्षण अवधि, और व्यक्तिगत और स्वतंत्र निर्णय को हतोत्साहित करने वाले फैसले भी महिला एथलीटों के जोखिम को बढ़ा रहे हैं। महिला एथलीट तमाम खिलाड़ियों के बीच एक कमजोर अल्पसंख्यक बन गई हैं।

हालांकि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) (पीओएसएच) अधिनियम, 2013 बहुत कड़ा है। 'कार्यस्थल' शब्द को परिभाषित किया गया है। जिसमें अधिनियम की धारा 2 (ओ) (iv) के अनुसार, कोई भी खेल संस्थान, स्टेडियम, खेल परिसर या प्रतियोगिता या खेल स्थल, चाहे आवासीय हो या प्रशिक्षण, खेल या अन्य संबंधित गतिविधियों के लिए उपयोग किया गया हो एक कार्यस्थल है।

भारत के तमाम खेल महासंघ, संगठन, क्लब, स्टेडियम आदि एथलीटों और खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच और पूछताछ के लिए जांच कराने को बाध्य हैं। लेकिन जांच का आदेश उन महासंघ के नेतानुमा अधिकारियों और नौकरशाहों के हाथ में है तो वे जांच का आदेश देने में आनाकानी करते हैं।

खेलों में यौन उत्पीड़न क्यों?

इस शर्मनाक समस्या को लेकर अधिकारी अभी भी निष्क्रिय हैं। उत्पीड़न की घटनाओं को रिपोर्ट किए जाने के बाद भी जांच का आदेश नहीं होता। इससे आरोपियों के हौसले बढ़ जाते हैं। यौन उत्पीड़न का कारण बनने वाले मूलभूत कारणों को दूर करने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। कई बार महिला खिलाड़ियों की महत्वाकांक्षा भी ऐसे भेड़ियों के हाथों में फंसा देती है। खेल महासंघों के नेता और अय्याश नौकरशाह ऐसी महिला एथलीटों को ताड़ लेते हैं जो खेल में आगे बढ़ने का हौसला रखती हैं, उनके जबरन हमदर्द और सलाहकार बनकर ऐसे तत्व महिला एथलीटों की इज्जत से खेलते हैं।

जेंडर पावर की असमानता भी महिला एथलीटों को जोखिम में डाल देती है क्योंकि, अधिकांश स्थानों पर ट्रेनर या कोच वृद्ध पुरुष होते हैं जो अपनी प्रतिष्ठा और विशेषज्ञता के नाम पर अपना बचाव करते हैं। ऐसी आवाज उठाने वाली महिला एथलीटों को नीचा देखना पड़ता है। कोई उनकी सुनने वाला नहीं होता है। ऐसी शिकायतों की जांच में देरी से इस तरह के दुरुपयोग के आरोपियों को नाममात्र की सजा मिलती है और उनके गंदे हौसले बुलंद रहते हैं।

2014 की घटना

जनवरी 2014 में, एक कोच पर एक प्रशिक्षण केंद्र में लड़कियों को चूमने और छूने का आरोप लगाया गया था। जब तीन साल बाद SAI ने उसे दोषी पाया, तब तक वह पहले ही रिटायर हो चुका था। उसे एक वर्ष के लिए उनकी पेंशन से 10% कटौती के साथ दंडित किया गया था।

आमतौर पर, आरोपी कोचों को उनके वेतन में छोटी कटौती के लिए तबादलों से दंडित किया जाता है। अन्य मामलों में अभी जांच बाकी है। जिसकी रिपोर्ट कभी नहीं आती। एथलीटों के यौन उत्पीड़न में भी जेंडर की सबसे बड़ी भूमिका है। महिला एथलीट अपनी शराफत में अपनी शिकायतों को वापस लेने के लिए मजबूर महसूस करती हैं।