लद्दाख में तैनात सैनिकों के लिए भारत खरीद रहा है जाड़े के उपकरण

01:06 pm Oct 18, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

क्या भारत को चीन से युद्ध करना ही पड़ेगा क्या आने वाले ठंड में भारत के लगभग 50 हज़ार सैनिक 15-20 हज़ार फीट की ऊँचाई पर शून्य से 30 डिग्री नीचे के तापमान पर डटे रहने को मजबूर हैं

ये सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं कि भारतीय सेना ने अमेरिका से ठंड के उपकरण खरीदने का फ़ैसला किया है। इसमें कपड़े वगैरह के अलावा ठंड में और ऊँचाई पर लड़ने वाले हथियार भी खरीदे जाएंगे। ऐसे में यह साफ हो गया है कि भारतीय सेना को ठंड में भी लद्दाख में अपने सैनिकों तैनात करना होंगे।

लाइव मिंट' के अनुसार, सेना के दूसरे नंबर के अफ़सर जनरल एस. के. सैनी जल्द ही अमेरिकी सेना के हिंद-  प्रशांत कमांड का दौरा करेंगे और अमेरिकी अफसरों से बात करेंगे।

ठंड की दस्तक

भारतीय सेना की यह कोशिश ऐसे समय हो रही है जब ठंड दस्तक दे चुकी है और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के तकरीबन एक लाख सैनिक जमे हुए हैं। कई दौर की भारत-चीन बातचीत नाकाम हो चुकी है और पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने सैनिकों को मौजूदा फ्रंट लाइन से वापस बुलाने से साफ इनकार कर दिया है।

भारतीय और चीनी सेना के लेफ़्टीनेंट जनरल स्तर की बातचीत बीते दिनों नाकाम रही। दोनों सेनाओं के बीच सातवें दौर की बातचीत में चीन ने साफ शब्दों में कह दिया कि पहले भारत पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट से अपने सैनिक वापस बुलाए, उसके बाद ही अप्रैल की यथास्थिति बहाल करने पर बातचीत हो सकती है। 

लॉजिस्टिक्स क़रार

भारत का कहना है कि पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी दोनों ही इलाक़ों से सेनाओं की वापसी एक साथ हो, यानी दोनों देश अपने-अपने सैनिकों को एक साथ वापस बुलाएं। यह जिच बरक़रार है और दोनों सेनाएं बिल्कुल आमने-सामने डटी हुई हैं।

भारत ने अमेरिका से मदद लेने का फ़ैसला किया है। भारतीय और अमेरिकी सेना के बीच सैनिक साजो सामान (लॉजिस्टिक्स) की मदद का क़रार है। इसके तहत दोनों एक-दूसरे को ईंधन, हवाई जहाज़ों और नौसेना के लड़ाकू जहाज़ों के कल-पुर्जे और दूसरे ज़रूरी उपकरण दे सकते हैं।

क्वाड

लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरंडम एग्रीमेंट पर दोनों देशों ने अगस्त 2016 में दस्तख़त किए थे। ये उपकरण इसी क़रार के तहत दिए जा सकते हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि बीते दिनों क्वाडिलैटरल स्ट्रैटेजिक डायलॉग यानी 'क्वाड' की बैठक जापान की राजधानी तोक्यो में हुई थी। इसमें अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने खुले आम हिेंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता की बात कही थी और संकेत दिया था कि भारत इसमें अहम भूमिका निभा सकता है।

चार देशों -भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के इस समूह को 'एशिया का नाटो' कहा जाता है। हालांकि उस बैठक में किसी सैन्य संधि की बात नहीं हुई, लेकिन समझा जाता है कि अमेरिका चीन को रोकने में भारत की मदद करना चाहता है।

ऐसे में अमेरिका भारत की मदद करे, यह बहुत ही स्वाभाविक है। लेकिन सवाल यह उठता है कि सैनिकों को उस ऊंचाई पर टिकाए रखने में भारत को बहुत ज़्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा है। चीन की स्थिति इससे अलग नहीं है। दोनों देश जब कोरोना और उसकी वजह से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, क्यों इस फिज़ूल के खर्च में फंसते जा रहे हैं, सवाल यह है। मुमकिन है चीन और भारत के रक्षा से जुड़े विशेषज्ञ बीच का रास्ता निकालें और सैनिकों की वापस हो जाए।