भारत और चीन के सैनिकों के बीच 15 जून को हुई झड़प और उसमें 20 भारतीय सैनिकों की मौत के बाद से गलवान घाटी सुखियों में है। चीनी नियंत्रण वाले क्षेत्र अक्साइ चिन और भारतीय इलाक़े लद्दाख के बीच की यह घाटी मोटे तौर पर शांत रही है।
विवाद की जड़ कहाँ है
इसके पश्चिम में श्योक नदी और दार्बुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी है तो पश्चिम में शिनजियांग तिब्बत सड़क। अक्साइ चिन शिनजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है।
चीन ने पूरी गलवान घाटी पर पहली बार दावा किया और उसने उस इलाक़े तक कब्जा कर लिया है, जहाँ श्योक नदी पर भारत ने पुल बनाया है। विवाद इस जगह को लेकर है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा गलवान और श्योक के संगम के पूर्व में है, भारत और चीन दोनों ही इस इलाक़े में गश्त लगाते रहे हैं। दोनों की सेनाएं गश्त लगा कर लौट जाती थीं। इस बार चीन का दावा पूरी घाटी पर है, उसका कहना है कि पूरी गलवान घाटी ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी इलाक़े में है।
चीनी दावा खारिज
इस बार उसके सैनिक गश्त लगा कर इस इलाक़े से लौट नहीं गए, जमे रहे। भारत ने पूरी गलवान घाटी पर चीन के नियंत्रण के दावे के 'बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया हुआ' कहा और उसे 'अस्वीकार्य' बता कर खारिज कर दिया।चीन के पुराने और ज़्यादातर नक्शों में गलवान घाटी को वास्तविक नियंत्रण रेखा के उस पार, पर श्योक-गलवान संगम से दूर दिखाया गया है।
विशेषज्ञ की राय
'द हिन्दू' अख़बार के अनुसार, मैसाच्युसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में प्रोफेसर टेलर फ्रैवल का कहना है, 'मैंने जो चीनी नक्शे देखे हैं, उनमें पूरी गलवान नदी को चीनी दावेदारी वाले हिस्से में दिखाया गया है।' वे इसके आगे कहते हैं,
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'लेकिन इन नक्शों में जो एक बदलाव है, वह यह है कि पश्चिमी छोर, जहाँ गलवान नदी श्योक में गिरती है, उसे चीनी सीमा से बाहर दिखाया गया है, यब बस कुछ किलोमीटर का मामला है।'
टेलर फ्रैवल, प्रोफेसर, मैसाच्युसेट्स इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी
पुराने चीनी नक्शे
ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के मनोज जोशी ने 'द हिन्दू' से कहा कि चीनी प्रधानमंत्री चाउ एनलाई ने 1956 में जो नक्शा जारी किया था, उसमें पूरी गलवान घाटी को भारत के हिस्से के रूप में माना गया था। लेकिन 1960 में चीन ने जो नक्शा जारी किया, उसमें उसने गलवान घाटी पर अपना दावा ठोंका। इसके बाद 1962 के चीनी नक्शे में भी गलवान घाटी को चीन का हिस्सा दिखाया गया था। पर उसके बाद के नक्शे में गलवान नदी के पश्चिमी छोर को चीन की सीमा में नहीं दिखाया गया।यह भी महत्वपूर्ण है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दावा क्षेत्र पर दावे से कई बार अलग होता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा का अर्थ उस इलाक़े से है, जिस पर भारत या चीन का सचमुच नियंत्रण है, यह वास्तविक नियंत्रण नक्शे पर उनके दावे से अलग भी हो सकता है।
एलएसी की हक़ीकत
इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि भारत का दावा पूरे 38 हज़ार किलोमीटर के इलाक़े पर है, जिसमें अक्साइ चिन तक शामिल है। पर वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति उससे अलग है।इस उलझन की वजह यह है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के अलग-अलग दावे हैं, यह बहुत स्पष्ट नहीं है।
इस बार चीन ने पूरी गलवान घाटी पर दावा किया है, जिसमें गलवान-श्योक संगम का पश्चिमी इलाक़ा तक है। इस तरह चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदल कर रख दिया है।
समझौतों का उल्लंघन
दोनों देशों के बीच 1993 में हुई बॉर्डर पीस एंड ट्रैंक्विलिटी एग्रीमेंट (बीपीटीए) के तहत भारत और चीन में यह सहमति बनी थी कि दोनों देश एलएसी का पूरी सिद्दत से सम्मान करेंगे।इसके बाद दोनों देशों के बीच 1996 में आपसी विश्वास बढ़ाने की कोशिशों के तहत एलएसी को चिन्हित किया गया था। लेकिन चीन ने पश्चिमी हिस्से को दिखाने वाला नक्शा देने से इनकार कर दिया था।
इससे यह साफ़ है कि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को न सिर्फ बदला है, बल्कि उसका वास्तविक कब्जा भी उस बदले हुए इलाक़े पर है। गलवान घाटी पर उसका कब्जा यह साफ़ दिखाता है कि वह अपने पहले के वायदों से मुकर रहा है।
पर्यवेक्षकों का मानना है कि इसकी वजह यह है कि चीन अक्साइ चिन पर अपनी पकड़ पहले से अधिक मजबूत करना चाहता है। पूरी घाटी पर उसका कब्जा होने से भारत के लिए अक्साइ चिन की ओर मुड़ना बेहद मुश्किल होगा। दरअसल, लड़ाई अक्साइ चिन की है।