देश में कोरोना से मौत के आँकड़े छुपाए जाने के लगाए जा रहे आरोपों के बीच अब अंतरराष्ट्रीय पत्रिका द इकॉनमिस्ट ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कोरोना से मौत का वास्तविक आँकड़ा 5-7 गुना ज़्यादा होगा। सरकार ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया। यह पहली बार नहीं है कि ऐसी रिपोर्ट आई और उसे खारिज कर दिया गया। न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी मौत के आँकड़ों के कहीं ज़्यादा होने की रिपोर्ट छापी थी लेकिन सरकार ने उसे खारिज कर दिया था।
ताज़ा मामला द इकॉनमिस्ट में प्रकाशित लेख का है। पत्रिका ने वर्जीनिया कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी के क्रिस्टोफर लेफ़लर के एक शोध का हवाला दिया है जिसमें यह सुझाव दिया गया कि भारत में मौत का वास्तविक आँकड़ा 20 लाख से अधिक हो सकता है। बता दें कि शनिवार तक भारत में कोरोना से आधिकारिक तौर पर 3,67,081 मौतें बताई गई हैं।
सरकार ने शनिवार को उस पत्रिका का नाम लिए बिना उस ख़बर का खंडन किया जिसमें दावा किया गया है कि देश में कोविड-19 संक्रमण से मरने वालों की संख्या '5 से 7 गुना' तक अधिक है। सरकार ने कहा है कि यह निष्कर्ष महामारी विज्ञान संबंधी सबूतों के बिना है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बयान जारी कर उस लेख को कयास पर आधारित, बिना किसी आधार के और भ्रामक बताया है। बयान में द इकॉनमिस्ट के लेख को अनुचित विश्लेषण और उसे महामारी विज्ञान के सबूतों के बिना केवल आँकड़ों के आकलन पर आधारित बताया गया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने उस पत्रिका की रिपोर्ट को खारिज करने के लिए उसके अध्ययन के तौर-तरक़ों पर सवाल उठाए हैं। इसने कहा है कि जिस शोध का इस्तेमाल मौतों का अनुमान लगाने के लिए किया गया है वह किसी भी देश या क्षेत्र के मृत्युदर का पता लगाने के लिए सही तरीक़ा नहीं है।
सरकार ने कहा है कि पत्रिका चुनाव का विश्लेषण करने वाले 'प्राशनम' और 'सी वोटर' पर विश्वास जताती है। इसने कहा है कि ये एजेंसियाँ चुनाव नतीजों का पूर्वानुमान और विश्लेषण के लिए जाने जाती हैं, वे कभी भी जन स्वास्थ्य अनुसंधान से जुड़े नहीं हैं।
सरकार ने कहा है कि इनके चुनाव विश्लेषण के पूर्वानुमान लगाने के लिए जिस पद्धति का इस्तेमाल होता है वे भी कई बार ग़लत साबित होते हैं।
बता दें कि देश में कोरोना से मौत के आँकड़ों पर सवाल उठते रहे हैं। मध्य प्रदेश में मौत के आँकड़ों को लेकर आलोचना की जा रही है। जन्म और मृत्यु की रिपोर्ट दर्ज करने वाले नागरिक पंजीकरण प्रणाली पर दर्ज मौत के आँकड़े काफ़ी ज़्यादा हैं। कोरोना प्रोटोकॉल से अंतिम संस्कार और कोरोना से मौत के दर्ज आँकड़े अलग-अलग हैं। कुछ दिनों पहले ही ख़बर आई थी कि पटना हाई कोर्ट की आलोचना के बाद बिहार सरकार ने मौत के आँकड़ों में संशोधन किया था और वह संख्या क़रीब 5500 से बढ़कर 9400 हो गई थी यानी 72 फ़ीसदी बढ़ गई थी।
हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी भारत में मौत के आँकड़ों को लेकर एक ख़बर छापी थी। इसने कई सर्वे और संक्रमण के दर्ज किए गए आँकड़ों के आकलन के आधार पर कहा कि भारत में आधिकारिक तौर पर जो क़रीब 3 लाख मौतें बताई जा रही हैं वह दरअसल 6 लाख से लेकर 42 लाख के बीच होंगी।
न्यूयॉर्क टाइम्स का आकलन भारत में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आँकड़ों का भी इस्तेमाल करता है। लेकिन सबसे प्रमुख तौर पर इसने सीरो सर्वे की रिपोर्ट को आधार बनाया है। इसने भारत में कराए गए तीन सीरो सर्वे यानी देशव्यापी एंटीबॉडी टेस्ट के नतीजों का इस्तेमाल किया।
इन सीरो सर्वे के हिसाब से ही तीन तरह के हालात बनते हैं।
- संक्रमण दर्ज संख्या से कम से कम 15 गुना भी ज़्यादा हुआ हो तो 4.04 करोड़ संक्रमित हो चुके होंगे और 0.15 फ़ीसदी की मृत्यु दर से क़रीब 6 लाख मौतें हुई होंगी।
- संक्रमण दर्ज संख्या से 20 गुना ज्यादा हुआ हो तो 5.39 करोड़ लोग संक्रमित हुए होंगे और 0.30 फ़ीसदी मृत्यु दर के हिसाब से 16 लाख मौतें हुई होंगी।
- संक्रमण दर्ज संख्या से 26 गुना हुआ होगा तो 7 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके होंगे और 0.60 फ़ीसदी की मृत्यु दर से 42 लाख लोगों की मौत हो चुकी होगी।
अख़बार का यह विश्लेषण 11 मई- 4 जून 2020, 18 अगस्त- 20 सितंबर 2020 और 18 दिसंबर 2020- 6 जनवरी 2021 के बीच कराए गए तीन सीरो सर्वे के आधार पर था। यानी यह आँकड़ा पहली लहर के दौरान का था। इस रिपोर्ट के बाद नीति आयोग के सदस्य और कोरोना पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. वीके पॉल ने कहा कि था न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में किसी तरह के सबूत नहीं हैं और यह सिर्फ़ बेसिर-पैर के अनुमानों पर आधारित है।