देश भर में ओबीसी की सामाजिक-आर्थिक हैसियत और उनकी संख्या जानने के लिए सरकार भले ही जाति जनगणना नहीं करा रही है, लेकिन सरकार की ही एक रिपोर्ट से ग्रामीण क्षेत्रों में ओबीसी की कुछ जानकारी मिलती है। उस रिपोर्ट के अनुसार देश के गाँवों में 17.24 करोड़ कुल परिवारों में से क़रीब 44.4 फ़ीसदी ओबीसी हैं। हालाँकि, यह संख्या देश के शहरी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। पूरे देश भर में इसके आधिकारिक आँकड़ों के लिए जाति आधारित जनगणना ज़रूरी है, लेकिन सरकार इससे सहमत नहीं है।
केंद्र सरकार ने पिछले हफ़्ते ही सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि जनगणना में एससी-एसटी के अलावा किसी भी अन्य जाति की जानकारी जारी नहीं करना एक समझदारी वाला नीतिगत निर्णय है। सत्ताधारी पार्टी से जुड़े कुछ लोग तर्क देते दिखते हैं कि जाति जनगणना से समाज में बिखराव आएगा।
लेकिन, इस बीच सरकार की ही एक सर्वे रिपोर्ट है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में ओबीसी, एससी, एसटी और दूसरे सामाजिक समूह के आँकड़े जारी किए गए हैं। यह आँकड़ा ग्रामीण भारत में 2018-2019 में कृषि परिवारों व उकी भूमि जोत की स्थिति के आकलन के लिए किए गए एक सर्वे का हिस्सा है। यह सर्वे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किया गया था।
आँकड़ों से पता चलता है कि अनुमानित 17.24 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 44.4 फ़ीसदी ओबीसी, 21.6% एससी, 12.3% एसटी और 21.7 फ़ीसदी अन्य सामाजिक समूह के परिवार शामिल हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें यह भी कहा गया है कि कुल ग्रामीण परिवारों में से 9.3 करोड़ यानी 54% कृषि परिवार हैं।
सर्वे के आँकड़े बताते हैं कि ओबीसी परिवार सात राज्यों-तमिलनाडु, बिहार, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, केरल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुसंख्यक में हैं। इन 7 राज्यों में कुल 235 लोकसभा सीटें हैं।
ग्रामीण ओबीसी परिवारों का सबसे ज़्यादा अनुपात तमिलनाडु (67.7%) में है। तमिलनाडु के अलावा छह राज्यों - बिहार में 58.1%, तेलंगाना में 57.4%, उत्तर प्रदेश में 56.3%, केरल में 55.2%, कर्नाटक में 51.6%, छत्तीसगढ़ में 51.4% ओबीसी परिवार हैं।
इसके अलावा चार राज्यों- राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात और सिक्किम में ग्रामीण ओबीसी परिवारों की हिस्सेदारी राष्ट्रीय औसत 44.4% से अधिक है। 17 राज्यों- मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, हरियाणा, असम, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में ओबीसी परिवारों का औसत राष्ट्रीय औसत से कम है।
सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय कृषि वर्ष 2018-19 के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर 10,218 रुपये थी। इसमें से ओबीसी कृषि परिवारों की आय 9,977 रुपये, अनुसूचित जाति परिवारों की आय 8,142 रुपये, एसटी परिवारों की आय 8,979 रुपये थी। हालाँकि अन्य सामाजिक समूहों के कृषि परिवारों की औसत मासिक आय 12,806 रुपये थी।
बता दें कि ओबीसी के आँकड़े पूरे देश यानी ग्रामीण के साथ शहरी क्षेत्रों के भी तभी आ पाएँगे जब जाति जनगणना हो। लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। विपक्षी दल इसके लिए लगातार दबाव बना रहे हैं। हाल ही में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने 33 नेताओं को चिट्ठी लिखी है।
जिन नेताओं को तेजस्वी ने यह ख़त लिखा है उनमें सोनिया गांधी, शरद पवार, अखिलेश यादव, मायावती, एमके स्टालिन, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, फारूक अब्दुल्ला, सीताराम येचुरी, डी राजा, महबूबा मुफ्ती, हेमंत सोरेन, पिनरई विजयन, अरविंद केजरीवाल, प्रकाश सिंह बादल, उद्धव ठाकरे, के चंद्रशेखर राव जैसे नेता शामिल हैं। उन्होंने जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को भी पत्र लिखा है जो एनडीए का हिस्सा हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इसी रविवार को देशव्यापी जाति जनगणना की अपनी मांग को दोहराया है। उन्होंने कहा कि यह वक़्त की ज़रूरत है और केंद्र को इसके ख़िलाफ़ अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। नीतीश ने कहा है कि जाति जनगणना देश के हित में है।