इजारायली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने पर जहाँ सरकार की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं वहीं अब ख़बर आई है कि फ़ोरेंसिक जांच में कई फ़ोन इन्फ़ेक्टेड पाए गए हैं। यानी उन फ़ोन में इसके सबूत हैं कि पेगासस से निशाना बनाया गया है। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। पहले जो ख़बरें आई थीं उसमें कहा गया था कि जिन फ़ोन की फ़ोरेंसिंक जाँच की गई उनमें से 10 को पेगासस से निशाना बनाया गया।
'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 22 स्मार्टफ़ोन की फोरेंसिंक जाँच की गई। जाँच में पता चला कि 10 को एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाया गया। इनमें से 7 फ़ोन इन्फ़ेक्टेड पाए गए। यानी उन फ़ोन में स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने के सबूत मौजूद थे। 12 मामलों में परिणाम साफ़ नहीं आए क्योंकि हैकिंग के बाद इन्फ़ेक्शन का पता लगाने के लिए जो लॉग यानी आँकड़े या डाटा चाहिए होते हैं वे नहीं मिले। इन 12 में से 8 फ़ोन तो एंड्राइड थे।
इससे पहले 'द वायर' की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि कुछ फ़ोन नंबरों की फ़ोरेंसिक जाँच से ऐसे साफ़ संकेत मिले हैं कि भारत में फ़ोन को निशाना बनाया गया। इसकी रिपोर्ट कहती है कि एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। ये नंबर मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं। वेबसाइट ने कहा कि द वायर और 16 मीडिया संस्थानों की जांच के बाद यह निष्कर्ष निकला है।
यह रिपोर्ट 'फोरबिडेन स्टोरीज' की पड़ताल पर आधारित है और इसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब ने फ़ोरेंसिक जाँच और तकनीकी सहायता में मदद की है।
'द वायर' ने दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट में कहा है कि इन नंबरों से जुड़े कुछ फ़ोन पर किए गए फोरेंसिक परीक्षणों से पता चला कि 37 फोन में पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए जाने के साफ़ संकेत मिले थे इनमें से 10 भारतीय हैं।
यह साफ़ है कि इन मीडिया संस्थानों ने उन फ़ोन नंबरों को लीक हुए दस्तावेज के आधार पर छापा है। उनमें से किन फ़ोन नंबरों को निशाना बनाने में सफलता मिली, यह तकनीकी विश्लेषण के बाद ही पता चलेगा। इसका मतलब है कि संबंधित फ़ोन को फोरेंसिंक जाँच के लिए देने के बाद ही निर्णायक रूप से यह बताना संभव हो सकेगा कि फ़ोन को इन्फ़ेक्ट किया गया था या नहीं।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार भीमा कोरेगांव मामले के जिन 8 आरोपियों के नंबरों को निगरानी के लिए चुना गया था, उनके फ़ोन की भी पुष्टि नहीं हो पाई है कि उनके फोन इन्फेक्टेड हैं या नहीं। गिरफ़्तार किए गए आरोपी एक्टिविस्टों में से किसी का भी फ़ोन विश्लेषण के लिए उपलब्ध नहीं था क्योंकि अधिकारियों ने उनके फ़ोन को जब्त कर लिया है।
लेकिन भारत में जो एक फ़ोन स्पाइवेयर से इन्फ़ेक्टेड था वह एस ए आर गिलानी का था। गिलानी उस संस्था के प्रमुख थे जिसमें रोना विल्सन और हैनी बाबू काम करते थे। गिलानी की 2019 में मौत हो गई थी और उनके बेटे ने उस फ़ोन को जाँच के लिए मुहैया करवाया। रोना विल्सन और हैनी बाबू दोनों भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी हैं।