किसानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, ज़रा, उसका रुख देखिये
किसानों के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 2 जनवरी को केंद्र सरकार से मौखिक रूप से कहा कि वो किसानों की शिकायतों पर विचार करने के लिए तेजी से काम क्यों नहीं कर रही। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने कहा: "सरकार यह बयान क्यों नहीं दे सकती कि हम वास्तविक मांगों पर विचार करेंगे और उसके दरवाजे किसानों की वास्तविक शिकायतों के लिए खुले हैं?" दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दो याचिकाओं पर सुनवाई हुई। किसानों की एमएसपी और अन्य मांगों को लेकर अदालत ने किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल की ओर से गुरिंदर कौर गिल याचिका पर सुनवाई की। दूसरी तरफ इसी बेंच ने दल्लेवाल की गिरती सेहत को लेकर दायर याचिका पर भी सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से कहा है कि वो 6 जनवरी तक दल्लेवाल को किसी अस्पताल या घटनास्थल पर ही अस्पताल बनाकर उसमें शिफ्ट करे। दल्लेवाल 26 नवंबर से खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं, उनकी हालत चिन्ताजनक बनी हुई है।
लाइव लॉ के मुताबिक किसानों के मुद्दों पर जब सुनवाई शुरू हुई तो केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इस बात की "कोई जानकारी नहीं" है कि यह याचिका क्या है। इस पर जस्टिस भुइयां ने सवाल किया: "मिस्टर मेहता, आप इतने दिनों से वहां हैं, आपका मुवक्किल यह बयान क्यों नहीं दे सकता कि हम वास्तविक शिकायतों पर विचार करेंगे और हमारे दरवाजें खुले हैं।
लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता (गिल) को कोर्ट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति से संपर्क करना चाहिए, जिसे प्रदर्शनकारी किसानों के साथ बातचीत के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किया गया था।
- जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता गुरिंदर कौर गिल से कहा, "कुछ सोचिये। हमें टकराव की स्थिति में नहीं जाना चाहिए। मैडम गिल, आप बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उस समिति के बारे में सोचें जिसमें पूर्व जज शामिल हैं, जिनकी जड़ें कृषि क्षेत्र में हैं और समिति के सदस्य दोनों राज्यों (पंजाब-हरियाणा) से संबंधित हैं। अब, वह समिति वहां है, आप इस मंच का उपयोग क्यों कर रहे हैं क्योंकि हम (सुप्रीम कोर्ट) किसानों से सीधे बातचीत नहीं कर सकते..."
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यहां यह बताना जरूरी है कि किसान संगठनों ने कोर्ट की समिति से बातचीत करने से मना कर दिया है। यह बैठक 3 जनवरी को चंडीगढ़ के पास पंचकुला में रखी गई है। संयुक्त किसान मोर्चा, संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) ने कहा सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने बैठक का जो एजेंडा भेजा है, उसमें किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी और अन्य का कोई जिक्र नहीं है। ऐसे में हम कोर्ट की कमेटी से क्यों बात करे।
तुषार मेहता ने कहा इस याचिका में "कई कारण" ऐसे शामिल हैं जिनसे अदालत अनभिज्ञ है। उन्होंने कहा, "अभी, हम केवल एक व्यक्ति (जगजीत सिंह दल्लेवाल, जो भूख हड़ताल पर हैं) के स्वास्थ्य तक ही सीमित हैं, जबकि केंद्र सरकार हर किसान के बारे में चिंतित है।"
जब जस्टिस कांत ने दोहराया कि अदालत इस पर नोटिस जारी कर रही है, तो मेहता ने इसका विरोध किया और कहा, "मैं अनुरोध कर रहा हूं कि नोटिस जारी करने के बजाय, मुझे एक कॉपी दी जा सकती है।" अदालत ने फौरन ही याचिका की प्रति सौंपने का निर्देश देते हुए उनसे 10 दिनों के भीतर इस मामले पर केंद्र सरकार से निर्देश मांगने को कहा। जस्टिस सूर्यकांत ने वकील मित्र से यह भी कहा कि वे मीडिया या अखबार में "न जाएं।"
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सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जो हुआ वो काबिलेगौर है। सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ एक टिप्पणी भर केंद्र को लेकर की। लेकिन उसने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से बात करने और मीडिया में न जाने को कहा।
दल्लेवाल की सेहतः सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को फिर समय दिया
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से गुरुवार को कहा कि वो 6 जनवरी तक किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल के इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती कराये। अदालत ने कहा कि पंजाब सरकार उसके 20 दिसंबर के आदेश का पालन हर हालत में करे। अदालत ने कहा कि दल्लेवाल के इलाज का बंदोबस्त फौरन किया जाना चाहिए।सुप्रीम अदालत ने पंजाब के मुख्य सचिव को अपने निर्देश के पालन की पुष्टि करते हुए सोमवार तक एक हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया है। दल्लेवाल की गंभीर हालत को देखते हुए अदालत ने कहा कि इसे फौरन गंभीरता से लेने की जरूरत है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी गंभीरता दिखा चुका है। पंजाब के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक तक सुप्रीम कोर्ट में पेश हो चुके हैं लेकिन दल्लेवाल को अस्पताल में नहीं भर्ती कराया जा सका है।