किसानों की आमदनीः सरकारी आंकड़ों में मौसम गुलाबी, लेकिन हकीकत कुछ और

01:38 pm Aug 08, 2022 | सत्य ब्यूरो

किसानों की आमदनी बढ़ने के मुद्दे पर बीजेपी शासित राज्य अपनी पीठ ठोंक रहे हैं। नीति आयोग की बैठक में इस बार बीजेपी शासित राज्यों ने किसानों की जिन्दगी बदलने के लिए पीएम मोदी की तारीफों के पुल बांधे। दूसरी तरफ नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का आंकड़ा कह रहा है कि 2014 से लेकर 2020 तक 43000 से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की। अगर किसान की आमदनी बढ़ रही है तो किसान खुदकुशी क्यों कर रहे हैं। 

नीति आयोग की रविवार 7 अगस्त की बैठक इस बार कृषि पर फोकस रही लेकिन वो गुणगान तक सीमित रही। इसमें कोई शक नहीं कि पंजाब और हरियाणा दो सबसे बड़े कृषि प्रधान राज्य हैं, जहां खेती प्रमुख व्यवसाय है। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने दावा किया कि हमारी कृषि विकास दर लगभग 3.3% प्रति वर्ष है। राज्य में उत्पादकता ₹1.57 लाख प्रति हेक्टेयर है। राज्य की विकास दर लगभग 8.7% है, जबकि देश की श्रम उत्पादकता वृद्धि दर 3.3% है। उनके मुताबिक ये आंकड़े बताते हैं कि राज्य के किसान की आय में लगातार वृद्धि हो रही है। कृषि क्षेत्र में बागवानी और पशुपालन की हिस्सेदारी बढ़ रही है।

हरियाणा के सीएम के अलावा हिमाचल, यूपी, एमपी जैसे राज्यों के सीएम ने भी कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ रही है। ये सीएम ऐसा क्यों कह रहे हैं। इसकी खास वजह है।

नीति आयोग ने 2017 में रमेश चंद कमेटी बनाई। नीति आयोग की रमेश चंद रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मामलों में, उत्पादन में वृद्धि से किसानों की आय में वृद्धि हुई है, लेकिन कई मामलों में, उत्पादन में वृद्धि के साथ किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है।

पीएम मोदी का वादा

केंद्र सरकार चाहती है कि कम से कम बीजेपी शासित राज्य कृषि क्षेत्र को लेकर आंकड़ा देकर किसानों की आमदनी दुगुना होने का दावा करें। ऐसा पीएम मोदी उस बयान की वजह से हो रहा है, जो उन्होंने 2016 में दिया था। 2016 में, पीएम मोदी ने कहा कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी जब देश अपनी आजादी के 75 साल पूरे करेगा।

2022 खत्म होने में पांच महीने बचे हैं और किसानों की आमदनी सही मायने में दोगुना होने के संकेत नहीं मिल रहे हैं। छह साल पहले, एक किसान की औसत आय 8,000 रुपये प्रति माह से थोड़ी अधिक थी। इसे दोगुना करने का मतलब मासिक आय 16,000 रुपये से अधिक होगी। जब 2014और 2015 में इसका वादा किया गया था, तो किसानों की आय को दोगुना करने की कार्य योजना में कहा गया था कि सरकार का मतलब 2022 तक किसानों की खेती से आय को वास्तविक रूप से दोगुना करना है। महंगाई को ध्यान में रखते हुए, इसका मतलब यह हुआ कि किसानों की आमदनी अब लगभग 22,000 रुपये होगी। लेकिन क्या हरियाणा, यूपी, एमपी, उत्तराखंड का किसान वाकई 22 हजार रुपये हर महीने खेती करके कमा रहा है।

डेटा देखने और सरकारी फाइलों के लिए ज्यादा अच्छा होता है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और होती है। हर किसान की आय दोगुनी करने का मतलब अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होगा। 2016 में, पंजाब में एक किसान प्रति माह 19,000 रुपये थी, जबकि बिहार में एक किसान को लगभग 3,800 रुपये मिल रहे थे। यह खेत के आकार के आधार पर भी निर्भर करता है। 2016 में एक छोटे किसान ने 6,600 रुपये प्रति माह जबकि एक बड़े किसान ने 50,000 रुपये प्रति माह से अधिक की कमाई की। लेकिन 50 हजार प्रति माह की कमाई करने वाले चंद किसान पंजाब के अलावा और कहीं नहीं है।

खेत मजदूर बनते किसान

राष्ट्रीय कृषि सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, सभी स्रोतों से प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय 2012-13 में ₹6,426 की तुलना में ₹10,218 अनुमानित की गई थी। लेकिन हकीकत ये है कि खेत पर मजदूरी से उनकी कमाई बढ़ी है, फसल पैदा करने या बेचने से नहीं।

2012-13 में कृषि परिवारों की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी, जिसमें से 2,071 रुपये मजदूरी से (पंजाब, हरियाणा को छोड़कर), 3,081 रुपये फसल उत्पादन और खेती से, 763 रुपये पशुपालन और 512 गैर-कृषि काम से।

2018-19 के आंकड़ों से पता चला है कि औसत मासिक आय ₹10,218 हो गई है, जिसमें से सबसे अधिक आय मजदूरी (₹4,063) से आती है, इसके बाद फसल की खेती और उत्पादन से आय (₹3,798) होती है। पशु पालन से आय में वृद्धि ₹763 से बढ़कर 1,582 रुपये हो गई।

किसान गैर-कृषि व्यवसायों से तुलनात्मक रूप से अधिक आमदनी कर रहे हैं और जमीन पट्टे पर दे रहे हैं। किसानों का कहना है कि खेती की लागत लगभग दोगुनी हो गई है, और उनकी आय बढ़ती महंगाई के अनुरूप नहीं है। 2012-13 में मजदूरी से आय 32 फीसदी थी। 2018-19 में यह 40 फीसदी दर्ज की गई। इसका मतलब है कि किसान दिहाड़ी मजदूर बनते जा रहे हैं।

एमएसपी पर लीगल गारंटी

हताश और निराश किसान को फसल पर जब तक लीगल गारंटी नहीं मिलती है, तब तक न किसानों की आमदनी दोगुनी करने पर लफ्फाजी भरे आंकड़ों की जरुरत पड़ेगी और न ही किसान खुदकुशियां करेंगे।

कृषि सुधार कानूनों का विरोध करने वाले और दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए कानून की मांग की थी।

पंजाब के सीएम भगवंत मान ने 7 अगस्त को नीति आयोग की बैठक में फिर से उसी बात को रखा। पंजाब का कोई भी मुख्यमंत्री कृषि और किसान पर बहुत सोच समझकर बोलता है। इसकी वजह है कि पंजाब में बड़े और छोटे किसान दोनों हैं। खेती पंजाब का मुख्य व्यवसाय है।

फसलों पर एमएसपी को कानूनी गारंटी देना समय की मांग है ताकि किसानों के हितों की रक्षा की जा सके। यह एमएसपी लाभकारी होना चाहिए क्योंकि कृषि की लागत कई गुना बढ़ गई है और किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। एमएसपी पर बनी समिति को पंजाब नहीं मानता। इसे "असली किसान" के सदस्यों के रूप में नामित करने के साथ इसका पुनर्गठन किया जाना चाहिए। मौजूदा समिति में आर्म चेयर अर्थशास्त्रियों का वर्चस्व है, जिन्हें खेती-किसानी के बारे में कोई जानकारी नहीं है।


- भगवंत मान, सीएम पंजाब, रविवार को नीति आयोग की बैठक में

हरियाणा के सीएम खट्टर की तरह पंजाब के सीएम मान ने किसी भी तरह के बोझिल आंकड़े पेश करके अपनी पीठ नहीं ठोंकी। उन्होंने स्पष्ट रूप से किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए तमाम कदम उठाने की बात कही।

खेती पर लागत की जमीनी हकीकत

खेती को लेकर जमीनी हकीकत यही है कि चाहे वो पंजाब हो या यूपी या फिर बिहार सभी राज्यों में कृषि की लागत बढ़ी है। खाद, बिजली, डीजल के रेट को एकसाथ जोड़ें तो खेती पर लागत पहले के मुकाबले 8.9 फीसदी बढ़ी है। बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज ने खेती पर लागत बढ़ने की रिपोर्ट मई 2022 में जारी की थी। उसने कहा था कि 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में खेती पर लागत बीस फीसदी तक बढ़ गई। दरअसल, उसकी यह रिपोर्ट कंज्यूमर डिमांड पर थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि महंगाई बढ़ने से कंपनियों की आमदनी में इजाफा तो होगा लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों से प्रोडक्ट्स की डिमांड कम होगी, क्योंकि किसानों पर ऐसे उत्पाद खरीदने के लिए पैसा नहीं होगा। वजह यही है कि खेती से उनकी आमदनी इसलिए नहीं बढ़ पा रही है, क्योंकि खेती पर लागत बढ़ रही है।