किसान फिर से वार्ता करने को तैयार हुए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसान यूनियनों ने 29 दिसंबर को वार्ता फिर से शुरू करने की घोषणा की है। किसानों के प्रदर्शन का एक महीना से ज़्यादा वक़्त हो चुका है और सरकार की तरफ़ से बातचीत से हल निकालने का प्रयास अब तक विफल रहा है। किसान नये कृषि क़ानूनों को रद्द कराने पर अड़े हैं और उससे कम उन्हें मंजूर नहीं है। लेकिन सरकार अलग-अलग संशोधनों जैसे प्रस्ताव लेकर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद कई योजनाओं की घोषणा कर किसानों को विश्वास में लेने की कोशिश में हैं।
सरकार की नीति है कि वह नये कृषि क़ानूनों को हटाना भी नहीं चाहती और किसानों को मनाना भी चाहती है। किसान भी क़रीब-क़रीब इसी राह पर चल रहे हैं। कृषि क़ानूनों को रद्द नहीं करने तक अपने आंदोलन को तेज़ भी करते जा रहे हैं और सरकार की वार्ता के प्रस्ताव को स्वीकारते भी जा रहे हैं। 29 दिसंबर को वार्ता का नतीजा अनुकूल नहीं होने पर किसानों ने आंदोलन तेज़ करने की चेतावनी दी है।
किसानों का वार्ता का यह ताज़ा प्रस्ताव शनिवार को तब आया जब एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ 'मुद्दों, तर्क और तथ्यों' पर बातचीत करने के लिए तैयार है। किसानों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘किसानों को फसल बेचने के लिए बाज़ार मिलना चाहिए। सरकार ने मंडियों को ऑनलाइन किया है। आज देश में 10 हज़ार से ज़्यादा किसान उत्पादक संघ को मदद दी जा रही है। देश भर में कोल्ड स्टोरेज बनाने के लिए सरकार करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है।’ इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार किसानों से हर मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी एक समाधान सुझाया। उन्होंने दिल्ली के द्वारका में आयोजित कार्यक्रम में आंदोलनकारी किसानों से कहा कि नए कृषि क़ानूनों को एक साल के लिए लागू होने दें, अगर ये किसानों के लिए फ़ायदेमंद नहीं होते हैं तो हम इनमें संशोधन के लिए तैयार हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने भी इन क़ानूनों को किसानों के हक में बताया।
संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसान यूनियनों ने बातचीत के लिए सरकार की पेशकश पर विचार-विमर्श के बाद शनिवार को सिंघू सीमा पर प्रेस से कहा कि प्रदर्शन को एक माह हो चुका है, सरकार के साथ वार्ता मंगलवार सुबह 11 बजे होगी।
यूनियनों के अनुसार, बैठक का एजेंडा होगा- तीन केंद्रीय कृषि क़ानूनों को निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीक़े; लाभकारी एमएसपी बनाने के लिए अपनाए जाने वाले तंत्र, राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा अनुशंसा की गई, सभी किसानों और सभी कृषि जिंसों के लिए क़ानूनी रूप से गारंटीकृत हक; किसानों को पराली जलाने पर दंडित करने के अध्यादेश के प्रावधानों से बाहर रखा जाए और, किसान हितों की रक्षा के लिए मसौदा बिजली (संशोधन) विधेयक, 2020 में किए जाने वाले बदलाव।
बता दें कि कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल की ओर से 24 दिसंबर को किसानों को पत्र भेजा गया था और आंदोलनकारी किसानों से अगले दौर की बातचीत के लिए तारीख़ और वक़्त तय करने का अनुरोध किया गया था।
अग्रवाल के पत्र का जवाब देते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा, ‘हम हर दौर की बातचीत में सरकार से लगातार मांग करते रहे हैं कि वह इन कृषि क़ानूनों को वापस ले। जबकि सरकार इसे इस तरह पेश कर रही है कि जैसे हम इन क़ानूनों में संशोधन की मांग कर रहे हैं।’
किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो
किसान यूनियनों ने चेतावनी दी है कि यदि वार्ता का नतीजा एक ठोस समाधान के रूप में नहीं निकलता है तो वे दिल्ली एनसीआर के राजमार्गों पर अवरोधक बढ़ाकर अपना आंदोलन तेज़ करेंगे।
बीकेयू (उग्राहन) और किसान मज़दूर संघर्ष समिति (केएमएससी) से जुड़े लगभग 30,000 लोग बरनाला, लुधियाना, संगरूर, पटियाला और गुरदासपुर से दिल्ली की ओर आ रहे हैं।
सुखदेव सिंह कोकरीकलां, बीकेयू (उग्राहन) के महासचिव ने कहा कि पंजाब के 100 से अधिक गाँवों के लगभग 16,000 किसानों को लेकर 3,000 से अधिक वाहन शनिवार दोपहर को नरवाना में प्रवेश कर गए। उन्होंने कहा कि काफिले का हरियाणा के किसानों ने जोरदार स्वागत किया।