कड़ाके की इस ठंड में जब राजधानी का पारा गिरकर रात के वक़्त 2-3 डिग्री तक पहुंच गया है, ऐसे में भी किसान बुलंद हौसलों के साथ दिल्ली के बॉर्डर्स पर डेरा डाले हुए हैं। किसानों के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं, बच्चे भी शामिल हैं और आंदोलन को 24 दिन हो चुके हैं। किसान संगठनों का कहना है कि आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक 22 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। दूसरी ओर, बीजेपी और मोदी सरकार लगातार नए कृषि क़ानूनों को किसानों के हित में बता रही है और विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रही है।
नए कृषि क़ानूनों को लेकर मोदी सरकार से जंग का एलान कर चुके किसान टिकरी से लेकर सिंघू और ग़ाज़ीपुर से लेकर रेवाड़ी बॉर्डर तक जमे हुए हैं। अब किसान सिर्फ़ इन तीन क़ानूनों के रद्द होने पर नहीं, एमएसपी पर क़ानूनी गारंटी, पराली और बिजली को लेकर आए अध्यादेशों को रद्द करने का भरोसा भी चाहते हैं।
मोदी सरकार के लिए परेशानी की बात ये भी है कि सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से आने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। यही हाल ग़ाजीपुर बॉर्डर का है, जहां पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से लगातार किसान आ रहे हैं।
विपक्ष पर हमलावर मोदी
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि किसानों को सिर्फ मंडियों से बांधकर बीते दशकों में जो पाप किया गया है, कृषि सुधार कानून उसका प्रायश्चित कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि नए कानून के बाद से देश में एक भी मंडी बंद नहीं हुई तो फिर क्यों झूठ फैलाया जा रहा है मोदी ने कहा कि केंद्र सरकार मंडियों के आधुनिकीकरण पर 500 करोड़ से ज़्यादा रुपये ख़र्च कर रही है तो फिर ये बात कहां से आ गयी कि मंडियां बंद हो जाएंगी।
खाप पंचायतों का मिला साथ
मोदी सरकार की मुश्किलों को बढ़ाने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतें भी मैदान में आ गई हैं। दिल्ली-यूपी के ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर डटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के किसानों को खाप पंचायतों का समर्थन मिलने से इनका आंदोलन और बढ़ा हो गया है।
किसानों के भीतर इस बात को लेकर नाराज़गी है कि कई दौर की बातचीत के बाद भी केंद्र सरकार उनकी मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में किसान नेता आंदोलन को तेज़ करना चाहते हैं। इससे पहले वे भूख हड़ताल से लेकर भारत बंद का कार्यक्रम कर चुके हैं।
हरियाणा की ही तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी खाप पंचायतों का खासा असर है। हरियाणा में भी कई खाप पंचायतें किसानों के आंदोलन का खुलकर समर्थन कर रही हैं और अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतें भी जब किसानों के समर्थन में मैदान में उतर आई हैं तो सरकार के लिए आंदोलन से निपटना बेहद मुश्किल हो गया है।
किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो-
बीरेंद्र सिंह के क़दम से परेशानी
एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार के मंत्री, बीजेपी के तमाम आला नेता कृषि क़ानूनों के समर्थन में कूदे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के समर्थन में धरने पर बैठ रहे हैं। चौधरी बीरेंद्र सिंह शुक्रवार को सांपला में छोटूराम पार्क में चल रहे धरने में पहुंचे और किसानों को समर्थन दिया।
चौधरी बीरेंद्र सिंह का कहना है कि जो किसान धरने पर बैठे हैं, उनके साथ लगातार बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन लगातार चलना देश और किसानी दोनों के हित में नहीं हैं और किसानों ने किसी भी राजनीतिक दल को अपने आंदोलन से दूर रखा है। उन्होंने कहा कि ये मेरा नैतिक कर्तव्य बनता है कि मैं किसानों के साथ खड़ा रहूं।
हरियाणा बीजेपी के कई सांसद इस बात को कह चुके हैं कि किसानों के इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए। अगर चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ कुछ और बीजेपी नेता इस आंदोलन से जुड़ते हैं तो निश्चित रूप से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेंगी। इसके अलावा जेजेपी भी इस मुद्दे पर किसानों के हमलों से घिरी हुई है।
बीजेपी पूरी कोशिश कर रही है कि वह किसानों के दबाव में न आए। उसने तमाम बड़े नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों को देश भर में इस मसले पर रैलियां करने, प्रेस कॉन्फ्रेन्स करने के काम में लगाया हुआ है। दूसरी ओर, किसानों को समझाने की उसकी सारी कोशिशें फ़ेल हो चुकी हैं।
जल्द हल निकालना ज़रूरी
मोदी सरकार को तुरंत कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए जिससे किसानों का आंदोलन ख़त्म हो। किसान सरकार से उनकी मांग पूरी होने का आश्वासन चाहते हैं लेकिन लगातार हो रही देर के कारण उनमें चिंता बढ़ती जा रही है और ऐसे में वे आत्महत्या जैसे आत्मघाती क़दम भी उठा रहे हैं।
किसानों के इस ठंड के मौसम में आंदोलन पर बैठने के वीडियो, फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। ये दुनिया भर के लोगों तक पहुंच रहे हैं और किसान आंदोलन की गूंज पूरी दुनिया में पहुंच रही है। ऐसे हालात में मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के उस सुझाव को मान लेना चाहिए कि वह इन कृषि क़ानूनों को रोक क्यों नहीं लेती।
मोदी सरकार के आला मंत्रियों और बीजेपी के रणनीतिकारों की चिंता यह भी है कि अगर किसान आंदोलन इसी तरह चलता रहा तो आने वाले कुछ महीनों में कई राज्यों में होने जा रहे चुनावों में पार्टी को ख़ासा नुक़सान हो सकता है। ऐसे में सरकार के सामने इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है कि वह कृषि क़ानूनों को वापस ले ले।