पूर्व जदयू सांसद पवन वर्मा तृणमूल कांग्रेस में शामिल

05:26 pm Nov 23, 2021 | सत्य ब्यूरो

जनता दल यूनाइटेड के पूर्व नेता व पूर्व राज्यसभा सदस्य पवन वर्मा तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। उन्होंने मंगलवार को दिल्ली में टीएमसी सुप्रीमो व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।

पवन पूर्व राजनयिक हैं और वे राष्ट्रीय मीडिया में जनता दल यूनाइटेड का पक्ष रखते हुए देखे जाते रहे हैं। 

ममता बनर्जी ने औपचारिक रूप से पवन वर्मा का पार्टी में स्वागत किया। टीएमसी ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। 

पवन वर्मा विदेश सेवा में काम करते हुए कई देशों में भारत का राजदूत रह चुके हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मामलों पर कई किताबें लिखी हैं। उन्हें भूटान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ड्रुक थुकसी अवार्ड भी मिल चुका है। 

क्या कहा वर्मा ने?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सलाहकार रह चुके वर्मा ने तृणमूल में शामिल होने की वजह बताई। उन्होंने कहा, "तृणमूल कांग्रेस तेज़ी से देश की बड़ी ताक़त के रूप में उभर रही है और यह जल्दी ही विपक्ष की बड़ी पार्टी बन जाएगी, इस कारण ही मैं इसमें शामिल हुआ।" 

बिहार में पैर पसारने की कोशिश

एक ही दिन में पहले कीर्ति आज़ाद और उसके बाद पवन वर्मा के टीएमसी में शामिल होने से साफ संकेत जाता है कि पश्चिम बंगाल की यह पार्टी बिहार में पैर पसारने की कोशश कर रही है। ये दोनों ही नेता बिहार के हैं। 

पवन वर्मा की बातों से तो यह बिल्कुल साफ हो गया। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "जहाँ तक बिहार की बात है, निश्चित रूप से बहुत कुछ होने को है।" 

समान नागरिकता क़ानून का समर्थन करने के मुद्दे पर पवन वर्मा ने जदयू की आलोचना की थी। इसके बाद उन्हें जनवरी 2020 में पार्टी से निकाल दिया गया था। कुछ दिनों तक किसी पार्टी से बगैर जुड़े रहने के बाद इस पूर्व राजनयिक ने ममता बनर्जी की पार्टी का दामन थामना सही समझा। 

वर्मा के शामिल होने के मायने

समझा जाता है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के ज़बरदस्त अभियान के बावजूद विधानसभा चुनाव जीतने के बाद तृणमूल कांग्रेस अब राष्ट्रीय पहचान बनाना चाहती है। इस कोशिश के तहत ही उसने पहले असम, त्रिपुरा और गोवा में कई लोगों को पार्टी में शामिल किया और अब वह यही काम बिहार में करने जा रही है। 

क्रिकेटर से राजनेता बने कीर्ति आज़ाद की बिहार में कोई बहुत बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं है, वे पिछले चुनाव में अपनी सीट तक नहीं बचा पाए थे। लेकिन उनके जुड़ने से टीएमसी कम से कम यह संकेत दे पाएगी कि वह बिहार को लेकर गंभीर है। मुमकिन है कि आज़ाद और वर्मा के बाद कुछ दूसरे नेता भी टीएमसी में शामिल हों।