सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जांच एजेंसी ईडी के खिलाफ दायर सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के सभी कड़े प्रावधानों जिसमें जांच करना, तलाशी लेना, संपत्तियों की कुर्की करना, गिरफ्तार करना और जमानत आदि के प्रावधान हैं, इन्हें बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हुई तमाम सुनवाइयों के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इन मामलों में ईडी के अधिकारों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि बिना सुबूत के या सूचना दिए बिना, किसी को भी गिरफ्तार करने की जो ताकत ईडी के पास है वह पूरी तरह असंवैधानिक है।
इस मामले में कांग्रेस नेता और सांसद कार्ति चिदंबरम, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सहित कई अन्य लोगों ने याचिकाएं दायर की थी।
- अपने फैसले में बेंच ने कहा कि जांच एजेंसियां जैसे ईडी, सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस एसएफआइओ और डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस यानी डीआरआई ‘पुलिस’ नहीं हैं और इसलिए पूछताछ के दौरान इनके द्वारा रिकॉर्ड किए गए बयान सुबूतों की तरह ही वैध हैं।
- अदालत ने यह भी साफ किया कि ईडी के अफसरों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में किसी अभियुक्त को हिरासत में लेते वक्त इसके पीछे क्या आधार है, इसे बताएं।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह जरूरी नहीं है कि ईडी के अफसर शिकायत की कॉपी अभियुक्त को दिखाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए की धारा 5, 8(4), 15, 17 और 19 के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखा। ये प्रावधान ईडी की गिरफ्तारी, कुर्की और तलाशी, जब्ती करने के अधिकारों से संबंधित हैं। अदालत ने पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत देने के लिए "दोहरी शर्तों" को भी बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि जमानत के लिए "दोहरी शर्तों" का प्रावधान कानूनी है और मनमाना नहीं है। जबकि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि जमानत देने की ये शर्तें बेहद सख्त हैं।
याचिकाकर्ताओं की दलील
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 100 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा था कि जांच एजेंसियां पुलिस की ताकत का इस्तेमाल करती हैं इसलिए उन्हें जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। क्योंकि ईडी कोई पुलिस एजेंसी नहीं है इसलिए जांच के दौरान किसी अभियुक्त के द्वारा दिए गए बयानों को उसके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया में इस्तेमाल किया जा सकता है और यह किसी भी अभियुक्त को मिले कानूनी अधिकारों के खिलाफ है।
याचिकाओं में कहा गया था कि किसी भी जांच को शुरू करने, गवाह या अभियुक्तों को समन करने, बयानों को दर्ज करने, संपत्तियों को कुर्क करना आदि आजादी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
मोदी सरकार में बढ़ी छापेमारी
याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलील में कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में ईडी के द्वारा छापेमारी मोदी सरकार में 26 गुना बढ़ गई है जबकि इसमें अपराध साबित होने की दर कम है। वित्त मंत्रालय ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले 8 सालों में मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में 3010 बार छापेमारी की गई है और इसमें सिर्फ 23 अभियुक्त दोषी पाए गए हैं।याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा था कि ईडी के अफसरों को पीएमएलए की धारा 50 के तहत किसी को भी समन करने, उनका बयान दर्ज करने और उन्हें अपने बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करने की जो ताकत दी गई है, वह प्रतिवादी की सुरक्षा को कम करती है और यह संविधान का घोर उल्लंघन है।
इस मामले में हुई सुनवाइयों के दौरान केंद्र सरकार ने पीएमएलए एक्ट का बचाव किया था और कहा था कि यह एक विशेष एक्ट है और इसकी अपनी प्रक्रियाएं हैं। केंद्र सरकार ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग देश की आर्थिक मजबूती के लिए बेहद गंभीर खतरा है और इससे निपटने के लिए सख्त व्यवस्था होनी जरूरी है।
ईडी को लेकर हंगामा
बता दें कि इन दिनों जांच एजेंसी ईडी को लेकर देशभर में जबरदस्त हंगामा चल रहा है। तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने आरोप लगाया है कि ईडी मोदी सरकार के इशारे पर उनके नेताओं को परेशान कर रही है। बीते कुछ सालों में विपक्ष के कई नेताओं को ईडी के साथ ही दूसरी जांच एजेंसियां भी समन भेज चुकी हैं और कई बड़े नेताओं की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
इन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से नेशनल हेराल्ड मामले में हुई कथित गड़बड़ियों के बारे में ईडी की पूछताछ को लेकर देशभर का सियासी माहौल बेहद गर्म है। कांग्रेस ने भी ईडी को सरकार की कठपुतली बताया है।