इंदौर के शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय के अब इस्तीफा दे चुके प्रिंसिपल डॉ इनामुर रहमान की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछा कि आप प्रिंसिपल की गिरफ्तारी को लेकर सच में गंभीर हैं? शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय की लाइब्रेरी में मिली किताब के ‘हिंदूफोबिक’ होने पर दर्ज कराई गई एफआईआर में लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल को दी गई अग्रिम जमानत को चुनौती देने की मध्य प्रदेश सरकार पर मंशा पर आश्चर्य व्यक्त किया।
बीते साल दिसंबर में मध्य प्रदेश के इंदौर में शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय में एक विवादित किताब ‘सामूहिक हिंसा और आपराधिक न्याय प्रणाली’ पढ़ाए जाने को लेकर विवाद हुआ था। विवाद की शुरुआत अखिल विद्यार्थी परिषद द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के बाद शुरु हुआ था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े संगठन का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने आरोप लगाया था कि कानून के विद्यार्थियों को पढ़ाई जा रही इस किताब में हिंदू समुदाय और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक बातें लिखी गई हैं, जिनसे धार्मिक कट्टरता को बल मिलता है।
एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय में विवादित किताब के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी भी की थी। एबीवीपी के प्रदर्शन के दौरान कॉलेज परिसर में पुलिस बल भी तैनात किया गया था। इस मसले पर एबीवीपी ने किताब की लेखक प्रकाशक के साथ संस्थान के प्रिंसिपल और एक प्रोफेसर के खिलाफ शनिवार को एफआईआर दर्ज की गई थी।
संबंधित मसले पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा 16 दिसंबर 2022 को उन्हें अग्रिम अंतरिम जमानत दिए जाने के इंकार के बाद, कोर्ट ने उन्हें जमानत प्रदान की थी। सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील अल्जो के जोसेफ ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ को बताया कि उन्हें 22 दिसंबर, 2022 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत दी गई थी।
राज्य को कुछ और गंभीर चीजें करनी चाहिए। वह एक कॉलेज प्रिंसिपल हैं। पुस्तकालय में मिली एक किताब की वजह से आप उन्हें क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार ‘बेंच उच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर याचिका को निपटा रही थी, तभी राज्य सरकार के वकील ने बेंच से यह रिकॉर्ड करने का आग्रह किया कि राज्य सरकार अग्रिम जमानत के आदेश को चुनौती देना चाहता है। इससे हैरान होते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने राज्य सरकार के वकील से कहा कि- "राज्य को कुछ और गंभीर चीजें करनी चाहिए। वह एक कॉलेज प्रिंसिपल हैं। पुस्तकालय में मिली एक किताब की वजह से आप उन्हें क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं? कहा गया है कि किताब में कुछ सांप्रदायिक संकेत हैं। इसलिए उन्हें गिरफ्तार करने की मांग की गई है? किताब 2014 में खरीदी गई थी और उन्हें गिरफ्तार करने की मांग की जा रही है? क्या आप गंभीर हैं?"
चीफ जस्टिस की टिप्पणी पर जवाब देते हुए राज्य सरकार के वकील ने कहा कि छात्रों ने शिकायत की है वह (याचिकाकर्ता) इस किताब से पढ़ा रहे थे, जबकि उनका कहना है कि उन्हें इस किताब के होने की जानकारी नहीं है। यह विरोधाभास पैदा कर रहा है।
राज्य सरकार के वकील के जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि आप आदेश को चैलेंज करना चाहते हैं करिए, हम इससे निपट लेंगे।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय के एलएलएम के एक छात्र द्वारा डॉ.फरहत खान (आरोपी 1) द्वारा लिखी और अमर लॉ पब्लिकेशंस (आरोपी 4) द्वारा प्रकाशित किताब "सामूहिक हिंसा और आपराधिक न्याय प्रणाली" नाम की किताब को लेकर एक एफआईआऱ दर्ज कराई गई थी। शिकायतकर्ता का आरोप है कि किताब झूठे और निराधार तथ्यों पर आधारित है। यह किताब राष्ट्र-विरोधी है और भारत की सार्वजनिक शांति, अखंडता और धार्मिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकती है।
याचिकाकर्ता ने अपने बचाव में तर्क दिया कि किताब 2014 में छपी थी और कॉलेज द्वारा 2014 में ही खरीदी गई थी उस समय वह कॉलेज में केवल प्रोफेसर थे, कॉलेज के प्रिंसिपल नहीं। उन्होंने कहा कि मामला राजनीतिक कारणों से दर्ज कराया गया था। मैं पुस्तक के प्रकाशन या वितरण में शामिल नहीं था। मुझे इस मामले में अनावश्यक रूप से घसीटा गया है। प्रोफेसर रहने के दौरान मैं कॉलेज की लाइब्रेरी के लिए होने वाली किताबों को खरीदने की प्रक्रिया में शामिल नहीं था। एबीवीपी के विरोध के बाद ड़ा. इनामुर रहमान ने इस्तीफा दे दिया था।