टीआरपी बटोरने वाले न्यूज़ चैनलों ने दोषी क़रार दिया: दिशा रवि

07:14 am Mar 14, 2021 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

किसान आन्दोलन से जुड़े टूलकिट शेयर करने के मामले में गिरफ़्तार और उसके बाद रिहा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि ने सोशल मीडिया पर अपना अनुभव साझा किया है। उन्होंने शनिवार को अपने पोस्ट में कहा कि उनकी स्वायत्तता का उल्लंघन किया गया और उन्होंने इसके लिए टीआरपी चाहने वाले न्यूज़ चैनलों को ज़िम्मेदार ठहराया है। 

बता दें कि दिशा रवि को स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट से जुड़े टूलकिट को एडिट करने और दूसरों को भेजने के आरोप में बेंगलुरू से गिरफ़्तार कर लिया गया था। बाद में अदालत ने उन्हें रिहा करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी और कहा था कि उसके पास इस मामले से जुड़े पर्याप्त सबूत नहीं हैं। 

दिशा ने ख़ुद को कैसे समझाया

दिशा रवि ने 13 मार्च को ट्वीट कर अपना अनुभव बताया। उन्होंने कहा, "मैंने खुद को यह विश्वास करने पर मजबूर किया कि इस सबसे गुजरने का सिर्फ एक ही तरीका है कि मैं यह सोच लूँ कि मेरे साथ यह नहीं हो रहा है, पुलिस ने 13 फरवरी 2021 को मेरा दरवाजा नहीं खटखटाया, उन्होंने मेरा फ़ोन और लैपटॉप नहीं ज़ब्त किया और गिरफ़्तार नहीं किया, उन्होंने मुझे पटियाला हाउस कोर्ट में पेश नहीं किया।"

उन्होंने अदालत में गुजारे समय को याद करते हुए कहा, "जब मैं कोर्ट में खड़ी थी और अपने वकीलों को ढूँढ रही थी तो मुझे यह बात समझनी पड़ी कि मुझे अपना बचाव खुद ही करना होगा। मुझे नहीं पता था कि क़ानूनी मदद मिलती है इसलिए जब जज ने पूछा कि क्या मुझे कुछ कहना है तो मैंने अपने मन की बात कहने का फैसला किया। इससे पहले मैं कुछ समझ पाती, मुझे पाँच दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया।"

सुर्खियों में छाई इस पर्यावरण कार्यकर्ता ने दिल्ली के तिहाड़ जेल में बिताए समय को याद करते हुए लिखा है, "पाँच दिन खत्म होने पर मुझे और तीन दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। तिहाड़ में मुझे हर दिन के हर घंटे के हर मिनट के हर एक सेकंड का पता था।" 

उन्होंने इसके आगे लिखा, 

"अपनी कोठरी में तालाबंद होकर मैं सोच रही थी कि इस धरती की जीविका के मूल तत्वों के बारे में सोचना कब से अपराध बन गया।"


दिशा रवि, पर्यावरण कार्यकर्ता

दिशा रवि ने कहा कि अपने दादा-दादी से प्रभावित होकर ही उन्होंने पर्यावरण संरक्षा का रास्ता चुना और उससे जुड़ गईं। उन्होंने लिखा है, "मैं इस बात की साक्षी हूँ कि कैसे पानी का संकट उन्हें प्रभावित करता है, लेकिन मेरा काम सिर्फ वृक्षारोपण अभियान और साफ़-सफ़ाई तक सीमित था, जो ज़रूरी तो था, लेकिन अस्तित्व के लिए संघर्ष जैसा भी नहीं था।"

क्या कहा था अदालत ने?

याद दिला दें कि दिल्ली के सत्र न्यायालय के जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा रवि को जमानत देते हुए कहा था, "किसी भी लोकतांत्रिक देश में नागरिक सरकार की अंतरात्मा की आवाज़ के रक्षक होते हैं। उन्हें जेल में सिर्फ इस आधार पर नहीं डाला जा सकता है कि वे सरकार की नीतियों से इत्तेफाक़ नहीं रखते...राजद्रोह सरकारों की घायल अहं की तुष्टि के लिये नहीं लगाया जा सकता है। एक जाग्रत और मज़बूती से अपनी बातों को रखने वाला नागरिक समाज एक स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है।”

जज ने निहारेन्दु दत्त मजुमदार बनाम एम्परर एआईआर मामले के फ़ैसले के हवाले से कहा,

“विचारों की भिन्नता, अलग-अलग राय, असहमति यहाँ तक अनुपात से अधिक असहमति भी सरकार की नीतियों में वैचारिकता बढ़ाती है।”


धर्मेंद्र राणा, जज, सत्र न्यायालय, दिल्ली

असहमति का अधिकार

न्यायाधीश राणा ने कहा कि यहाँ तक कि हमारे पूर्वजों ने बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक सम्मानजनक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और अलग-अलग विचारों को सम्मान दिया। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत असहमति का अधिकार दृढ़ता से निहित है।

22 साल की दिशा रवि पर्यावरण कार्यकर्ता हैं और किसानों के आंदोलन की समर्थक। अंतराष्ट्रीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने एक ट्वीट कर किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था। साथ ही उसने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिये एक टूलकिट भी टैग किया था। दिशा पर आरोप है कि उसने इस टूलकिट को ग्रेटा को भेजा था और उसने इस में एडिटिंग की थी। उस पर ये भी आरोप लगाया गया था कि वो खालिस्तान समर्थक मो धीलीवाल के संपर्क में थी। 

दिल्ली पुलिस ने दिशा पर राजद्रोह की धारा के तहत भी केस दर्ज किया था। अदालत ने लिखा, “अभियोग झूठा, बढ़ा- चढ़ा कर लगाया गया या ग़लत नीयत से भी लगाया हुआ हो सकता है, पर उसे तब तक राजद्रोह कह कर कलंकित नहीं किया जा सकता जब तक उसका चरित्र सचमुच में हिंसा पैदा नहीं कर रहा हो।”