क्या नरेंद्र मोदी सरकार डिजिटल मीडिया पर नकेल लगाना चाहती है क्या वह उसकी पहुँच, धार, बढ़ते जनाधार और तेज़ी से संदेश पहुँचाने की क्षमता से घबराई हुई है और इस कारण उस पर नियंत्रण करना चाहती है
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यदि मीडिया से जुड़े दिशा- निर्देश उसे जारी करने ही हैं तो सबसे पहले वह डिजिटल मीडिया की ओर ध्यान दे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े दिशा निर्देश तो पहले से ही हैं। उसने यह भी कहा है कि डिजिटल मीडिया पर ध्यान इसलिए भी देना चाहिए कि उसकी पहुँच ज़्यादा है और उसका प्रभाव भी अधिक है।
टीवी पर मेहरबान सरकार
सरकार ने सर्वोच्च न्यायाल से कहा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान और अदालत के फ़ैसले हमेशा ही रहे हैं। पहले के मामलों और फ़ैसलों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नियम होता है।बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पास सुदर्शन टीवी का मामला पड़ा हुआ है, जिसमें एक कार्यक्रम में यह कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में मुसलमान घुसते जा रहे हैं और यह एक तरह का जिहाद है। इसे 'यूपीएससी जिहाद' कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा था, 'आप किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बना सकते और उस पर एक ठप्पा नहीं लगा सकते।'
इसके पहले की सुनवाई में सु्प्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ चैनल टीआरपी के लिए सनसनीखेज फैलाते हैं। उसने यह भी कहा था कि पत्रकारीय स्वंतत्रता असीम नहीं है।
हालांकि अदालत ने इस पर विस्तार से नहीं कहा, पर समझा जाता है कि सुशांत सिंह राजपूत मामले में कुछ चैनलों के कवरेज की ओर संकेत किया गया था।