राज्यसभा से 8 सांसदों के निलंबन का मुद्दा बढ़ता जा रहा है। राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश ने मंगलवार को महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें कुछ सांसदों के व्यवहार से पीड़ा हुई है और इसके ख़िलाफ़ वह एक दिन का उपवास रखेंगे। लेकिन राजनीति के पुराने खिलाड़ी और एनसीपी के प्रमुख शरद पवार ने इसे लेकर सियासी दांव चला है और कहा है कि वह निलंबित 8 सांसदों के समर्थन में उपवास रखेंगे। शरद पवार ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा, ‘मैं प्रदर्शन कर रहे सांसदों के समर्थन में आज दिन भर कुछ नहीं खाऊंगा।’
मोदी का मिला समर्थन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरिवंश के पत्र को लेकर प्रतिक्रिया दी है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया- ‘हरिवंश जी के पत्र के एक-एक शब्द ने लोकतंत्र के प्रति हमारी आस्था को नया विश्वास दिया है। इस पत्र में सच्चाई भी है और संवेदनाएं भी। मेरा आग्रह है, सभी देशवासी इसे ज़रूर पढ़ें।’
‘आसन की मर्यादा को क्षति पहुंची’
हरिवंश ने पत्र में लिखा है, ‘20 सितंबर को उच्च सदन में जो हुआ, उससे सदन, आसन की मर्यादा को अकल्पनीय क्षति पहुंची है। सदन के सदस्यों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ। आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिशें हुईं। सदस्यों ने रूल बुक फाड़ी और मेरे ऊपर फेंकी। भद्दे और असंसदीय नारे लगाए गए, इससे मैं रात भर सो नहीं सका।’
पत्रकार से सांसद और सांसद से उप सभापति पद तक का सफर तय करने वाले हरिवंश ने आगे लिखा है, ‘उच्च सदन की मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास रखना चाहिए। शायद मेरे इस उपवास से सदन में इस तरह का आचरण करने वाले माननीय सदस्यों के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो।’
कैसे ख़त्म होगा गतिरोध
निलंबित सांसदों को लेकर हरिवंश के इस पत्र और शरद पवार जैसे अनुभवी नेता के सांसदों के समर्थन में उतरने के बाद भी सवाल वही का वही है कि यह गतिरोध कैसे ख़त्म होगा। क्योंकि विपक्ष ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ जोरदार मोर्चा खोल दिया है। मंगलवार को विपक्ष ने एलान किया कि जब तक उसकी तीन मांगें नहीं मानी जातीं, वह राज्यसभा का बहिष्कार जारी रखेगा।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने उग्र तेवर अपनाते हुए मंगलवार को सदन की कार्यवाही शुरू होने के थोड़ी ही देर बाद सदन से वॉक आउट कर दिया। इसके बाद आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों के सांसद भी कांग्रेस का साथ देते हुए सदन से बाहर चले गए।
किसान आंदोलन को समझिए इस चर्चा के जरिये-
ये हैं तीन मांगें
सदन में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा है कि तीन मांगों में सबसे प्रमुख मांग 8 सांसदों का निलंबन वापस लेने की है। शून्यकाल के दौरान ग़ुलाम नबी आज़ाद ने यह मांग भी रखी कि सरकार जो विधेयक ला रही है, उसमें इस बात को तय किया जाना चाहिए कि निजी क्षेत्र के कारोबारी सरकार द्वारा निर्धारित किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम पर अनाज की ख़रीद न कर सकें। उन्होंने सरकार से मांग कि एमएसपी को स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए।
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अहमद पटेल ने कहा कि विपक्ष को बोलने का मौक़ा नहीं दिया गया और सिर्फ़ एकतरफ़ा रवैया अपनाया गया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा लाए जा रहे ये विधेयक किसान, ग़रीब और मजूदर के हित में नहीं हैं।
कृषि विधेयकों को लेकर संसद के दोनों सदनों के अलावा सड़क पर भी जोरदार विरोध हो रहा है। किसानों का कहना है कि वे इन विधेयकों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे।
इससे पहले कृषि विधेयकों का पुरजोर विरोध कर रहे विपक्षी दलों के 8 सांसदों ने सोमवार रात को संसद के लॉन में ही धरना दिया। ये वे सांसद हैं, जिन्हें रविवार को राज्यसभा में हुए हंगामे के बाद एक हफ़्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने सोमवार को यह कार्रवाई की थी।
नायडू का कहना था कि सांसदों ने जिस तरह का व्यवहार किया, वह बेहद ख़राब था। इन सांसदों में डेरेक ओ ब्रायन, संजय सिंह, राजीव साटव, केके रागेश, रिपुन बोरा, डोला सेन, सैयद नाज़िर हुसैन और एलामारान करीम शामिल हैं। राज्यसभा में किसानों से जुड़े विधेयकों के पारित होने के बाद रविवार को काफी देर तक हंगामा हुआ था और विपक्षी दलों के सांसदों ने इसके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की थी। इन सांसदों ने अपने हाथ में पोस्टर लिए हुए थे जिनमें लिखा था कि वे किसानों की लड़ाई लड़ेंगे और संसद की हत्या की गई है। सोमवार शाम को 18 विपक्षी दलों के सांसदों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखकर उनसे इन विधेयकों पर दस्तख़त नहीं करने की अपील की थी।