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दिल्ली दंगे में पुलिस ने 11 मुस्लिमों को आरोपी बनाया था, कोर्ट ने बरी किया

दिल्ली दंगे में पुलिस ने 11 मुस्लिमों को आरोपी बनाया था, कोर्ट ने बरी किया

2020 के दिल्ली दंगे में दिल्ली पुलिस को अदालतों में लगातार झटके मिल रहे हैं। अदालत ने सबूतों के अभाव में 11 मुस्लिमों को बरी कर दिया। दिल्ली पुलिस ने इन्हें आरोपी बनाया था। इस मामले की विस्तृत पड़ताल पर यह रिपोर्ट आधारित है। हालांकि इससे पहले भी दिल्ली पुलिस को कई मामले में झटके लग चुके हैं।  

दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान एक ऑटो-रिक्शा चालक की कथित हत्या के मामले में आठ लोगों के खिलाफ हत्या और अन्य अपराधों के आरोप तय किए हैं, जबकि 11 अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। यह फैसला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने सुनाया।

मामला उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दयालपुर इलाके में 25 फरवरी, 2020 को हुई घटना से संबंधित है, जिसमें 35 वर्षीय ऑटो-रिक्शा चालक दिलबर नेगी उर्फ बब्बू की दंगाइयों द्वारा कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, एक भीड़ ने एक इमारत में आग लगा दी थी, जिसमें नेगी फंस गए थे, और बाद में उनका जला हुआ शरीर बरामद किया गया था।

लाइव लॉ के मुताबिक अदालत ने कहा, "वीडियो से पता चलता है कि जब उस युवक को घायल अवस्था में सड़क पर छोड़ दिया गया, तो दूसरे समुदाय की भीड़ के लोग उसके पास आए और शायद उसे उस स्थान से दूर ले गए। इसलिए, किसी भी तरह से यह नहीं माना जा सकता कि मुस्लिम समुदाय की भीड़ का ऑटो ड्राइवर का बब्बू पर हमला करना उनका सामान्य उद्देश्य था।"

अदालत ने आगे कहा, "उनका सामान्य उद्देश्य उनके कृत्य से साफ है - दंगा करना और दूसरे समुदाय के लोगों पर हमला करना। बब्बू पर हमला इसी मकसद के तहत किया गया था। उन्हें यह पता ही होगा कि किसी युवक के सिर पर लाठी से प्रहार करना और बेरहमी से पीटना उसकी मौत का कारण बन सकता है।"

इस मामले में अदालत ने जिन आरोपियों को बरी किया है, उनमें शाहरुख, मोहम्मद फैसल, मोहम्मद रिजवान, राशिद, मोहम्मद शादाब, मोहम्मद साजिद, मोहम्मद अकीब, मोहम्मद सलमान, मोहम्मद साद, मोहम्मद अली, और मोहम्मद उस्मान हैं। इनके खिलाफ अदालत को सबूत नहीं मिले। अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता।

सरकारी पक्ष ने दावा किया था कि यह एक सांप्रदायिक दंगा था, जिसमें भीड़ ने सुनियोजित तरीके से हमला किया था। हालांकि, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपियों की पहचान पुख्ता नहीं हुई थी और सबूत पर्याप्त नहीं थे। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि बाकी आठ आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं, जिसके आधार पर मुकदमा चलाया जाएगा।

दिल्ली पुलिस ने 2020 के दंगों के विभिन्न मामलों में 758 एफआईआर दर्ज की थी। बीबीसी ने दंगों के संबंध में दर्ज सभी 758 मामलों की स्थिति की जांच की और उन 126 मामलों का विश्लेषण किया जिनमें दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने फैसले दिए थे।

इन 126 मामलों में से 80% से ज़्यादा मामलों में गवाहों के मुकर जाने या अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन न करने के कारण उन्हें बरी कर दिया गया या उन्हें बरी कर दिया गया। इनमें से सिर्फ़ 20 मामलों में ही दोष साबित हुआ।भारतीय कानून के अनुसार, किसी आरोपी को तब बरी कर दिया जाता है जब अदालत बिना सुनवाई के मामले को बंद कर देती है क्योंकि आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं होते। बरी तब होता है जब अदालत पूरी सुनवाई के बाद आरोपी को दोषी नहीं पाती।

भारत के सूचना के अधिकार कानून के तहत बीबीसी को प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि हत्या से संबंधित आरोपों पर दर्ज किए गए 758 मामलों में से केवल 62 में दोषसिद्धि हुई और चार मामलों में बरी किया गया।

  • 126 आदेशों के विस्तृत विश्लेषण से यह भी पता चला कि दर्जनों मामलों में अदालत ने जांच में चूक के लिए दिल्ली पुलिस की कड़ी आलोचना की। कुछ मामलों में, इसने पुलिस की "पूर्व निर्धारित चार्जशीट" दाखिल करने और आरोपियों को "गलत तरीके से फंसाने" के लिए आलोचना की। 126 मामलों में से अधिकांश में पुलिस अधिकारियों को घटनाओं के गवाह के रूप में पेश किया गया था। लेकिन विभिन्न कारणों से, अदालत ने उनकी गवाही को विश्वसनीय नहीं पाया।

दिल्ली दंगों को लेकर दिल्ली पुलिस की भूमिका पर अदालतों में लगातार सवाल उठ रहे हैं। ऊपर जिन 11 लोगों के छोड़ने के मामले का जिक्र किया गया है, उस मामले की जांच बहुत दिलचस्प थी। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी पड़ताल में पाया था कि नेगी मामले में 12 में 9 आरोपियों के बयान एक जैसे पाए गए हैं। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने इस मामले में दोबारा चार्जशीट दाखिल की थी। जिनके बयान एक समान हैं वे हैं-

आज़ाद का बयान

आज़ाद ने कहा, 'पिछले कुछ दिनों में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे; मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि जिनके पास सबूत नहीं है (नागरिकता साबित करने के लिए) उनको देश से निकाल दिया जाएगा। इसके आधार पर 24 फ़रवरी को सीलमपुर में दंगे शुरू हो गए थे; और धीरे-धीरे यह जमनापार तक फैल गया। लगभग 2-3 बजे शिव विहार तिराहा पर कई लोग इकट्ठा होने लगे और हिंदू घरों पर पथराव शुरू कर दिया। हिंदुओं ने भी हम पर पथराव शुरू कर दिया; यह काफ़ी लंबे समय तक चला।'

  • '…तब मुस्तफाबाद में बहुत से लोग इकट्ठा हुए थे और कहा गया था कि मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा और आज हमें उन्हें मुसलमानों की ताक़त दिखानी होगी। पूरी भीड़ के साथ-साथ मैं भी चला गया, जो भीड़ कह रही थी... शिव विहार में भीड़ जमा हो गई, जहाँ हिंदूओं ने हम पर पथराव किया, हमने उन पर पत्थर फेंके। हमारी तरफ़ से, भीड़ नारे लगा रही थी: उन्हें मार डालो, हम आज काफिरों को नहीं छोड़ेंगे। मैं उनकी बातों में आ गया और मैंने पथराव शुरू कर दिया। मैं बहुत देर तक पथराव करता रहा।'

'... इसके बाद, भीड़ ने अनिल स्वीट शॉप और राजधानी स्कूल के गोदाम पर चढ़ना शुरू कर दिया और पथराव कर दिया। मैं रात में अपने घर लौट आया और वहीं रहा। मुझसे ग़लती हो गई, कृपया मुझे माफ़ कर दें।'

मोनू का बयान

मोनू ने कहा, 'पिछले कुछ दिनों में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे; मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि जिनके पास सबूत नहीं है (नागरिकता साबित करने के लिए) उनको देश से निकाल दिया जाएगा। इसके आधार पर 24 फ़रवरी को सीलमपुर में दंगे शुरू हो गए थे; और धीरे-धीरे यह जमनापार तक फैल गया। लगभग 2-3 बजे शिव विहार तिराहा पर कई लोग इकट्ठा होने लगे और हिंदू घरों पर पथराव शुरू कर दिया। हिंदुओं ने भी हम पर पथराव शुरू कर दिया; यह काफ़ी लंबे समय तक चला।'

  • '…तब मुस्तफाबाद में बहुत से लोग इकट्ठा हुए थे और कहा गया था कि मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा और आज हमें उन्हें मुसलमानों की ताक़त दिखानी होगी। पूरी भीड़ के साथ-साथ मैं भी चला गया, जो भीड़ कह रही थी... शिव विहार में भीड़ जमा हो गई, जहाँ हिंदूओं ने हम पर पथराव किया, हमने उन पर पत्थर फेंके। हमारी तरफ़ से, भीड़ नारे लगा रही थी: उन्हें मार डालो, हम आज काफिरों को नहीं छोड़ेंगे। मैं उनकी बातों में आ गया और मैंने पथराव शुरू कर दिया। मैं बहुत देर तक पथराव करता रहा।'

'... इसके बाद, भीड़ ने अनिल स्वीट शॉप और राजधानी स्कूल के गोदाम पर चढ़ना शुरू कर दिया और पथराव कर दिया। मैं रात में अपने घर लौट आया और वहीं रहा। मुझसे ग़लती हो गई, कृपया मुझे माफ़ कर दें।'

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, अशरफ अली और मोहम्मद फैसल के बयानों में भी इन सभी वाक्यों को दोहराया गया है।जफ़राबाद दंगों से संबंधित मोहम्मद शोएब (22) और शाहरुख (24) के बयानों में भी ऐसी ही समानता है।

शोयब का बयान

शोयब ने कहा, ‘सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे; मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि जिनके पास सबूत नहीं है (नागरिकता साबित करने के लिए) उनको देश से निकाल दिया जाएगा। इसके आधार पर 24 फ़रवरी को जाफराबाद में दंगे शुरू हो गए थे; और धीरे-धीरे यह जमनापार तक फैल गया।’

  • ‘...लगभग 2-3 बजे शिव विहार तिराहा पर कई लोग इकट्ठा होने लगे और हिंदू घरों पर पथराव शुरू कर दिया।'

‘...मुस्तफाबाद में बहुत से लोग इकट्ठा हुए और कहने लगे कि मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा, और आज हमें उन्हें मुसलमानों की ताक़त दिखानी होगी। मैंने भी नारेबाज़ी शुरू कर दी और जो मेरे साथ थे उन्होंने भी हिंदुओं के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी शुरू कर दी। इसके बाद पूरी भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए- आग लगा दो, काफिरों को बाहर भगाओ और नारे तकबीर, अल्लाह हू अकबर; और हिंदू घरों में गुलेल का उपयोग करके मार्बल और पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।'

शाहरुख का बयान

शाहरुख ने कहा, ‘सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे; मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि जिनके पास सबूत नहीं है (नागरिकता साबित करने के लिए) उनको देश से निकाल दिया जाएगा। इसके आधार पर 24 फ़रवरी को जाफराबाद में दंगे शुरू हो गए थे; और धीरे-धीरे यह जमनापार तक फैल गया।’

  • ‘...लगभग 2-3 बजे शिव विहार तिराहा पर कई लोग इकट्ठा होने लगे और हिंदू घरों पर पथराव शुरू कर दिया।'

‘...मुस्तफाबाद में बहुत से लोग इकट्ठा हुए और कहने लगे कि मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा, और आज हमें उन्हें मुसलमानों की ताक़त दिखानी होगी। मैंने भी नारेबाज़ी शुरू कर दी और जो मेरे साथ थे उन्होंने भी हिंदुओं के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी शुरू कर दी। इसके बाद पूरी भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए- आग लगा दो, काफिरों को बाहर भगाओ और नारे तकबीर, अल्लाह हू अकबर; और हिंदू घरों में गुलेल का उपयोग करके मार्बल और पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।'

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, ताहिर (38), परवेज (34) और रशीद (22) के एक समान बयान हैं। बाक़ी जो आरोपी हैं बिल्कुल उनसे मिलता-जुलता ही।

ताहिर का बयान

ताहिर ने कहा, ‘पिछले कुछ दिनों में सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे; मेरे दोस्तों और विशेषज्ञों ने मुझे बताया कि जिन लोगों के पास सबूत नहीं है (नागरिकता साबित करने के लिए) उन्हें देश से निकाल दिया जाएगा। इसके आधार पर 24 फ़रवरी को जाफराबाद में दंगे शुरू हो गए थे; और धीरे-धीरे यह जमनापार में फैल गया...।'

  • ‘…लगभग 3 बजे, शिव विहार तिराहा पर कई लोग इकट्ठा होने लगे और हिंदू घरों पर पथराव शुरू कर दिया।’

‘…मुस्तफाबाद में बहुत से लोग इकट्ठे हुए और बताने लगे कि मुसलमानों को देश से निकाल दिया जाएगा और आज हमें उन्हें मुसलमानों की ताक़त दिखानी होगी। इसके बाद, पूरी भीड़ ने नारे लगाने शुरू कर दिए- आग लगा दो, काफिरों को बाहर भगाओ और नारे तकबीर, अल्लाह हू अकबर; और हिंदू घरों में गुलेल का उपयोग करके मार्बल और पत्थर फेंकना शुरू कर दिया।’

ताहिर के बयान के ये पैराग्राफ़ परवेज और राशिद दोनों के स्वीकारोक्ति बयानों में दोहराए गए हैं।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, हालाँकि इस्तेमाल किए गए हथियारों पर इन आरोपियों के बयान अलग-अलग हैं। आजाद और अशरफ अली ने कहा कि उनके पास ‘लकड़ी का बल्ला’ था; मोनू ने कहा कि उसके पास ‘लोहे की छड़’ थी। फैजल ने दावा किया कि उसके पास ‘छड़ी’ थी। शोएब, शाहरुख, ताहिर, परवेज़ और रशीद ने दावा किया कि उन्होंने अपने घरों पर लाठियाँ इकट्ठी की थीं।

रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी

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