दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी को भी उसकी जाँच के दायरे को लेकर हिदायत दी है। अदालत ने बुधवार को कहा कि ईडी को अन्य एजेंसियों द्वारा दिए गए सबूतों पर भरोसा करना होता है और वह प्रेडिकेट ओफेंस के मामले में की गई जाँच से परे नहीं जा सकती है। प्रेडिकेट यानी अनुसूचित अपराध उन अपराधों को बताता है जो कुल मिलाकर 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक से जुड़ा हो।
हाई कोर्ट ने माना कि ईडी के पास केवल धन शोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध की जाँच और पूछताछ करने की शक्ति है और उसमें नहीं जिसमें एक प्रेडिकेट ओफेंस की कल्पना की गई हो। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा कि प्रेडिकेट ओफेंस की आवश्यक रूप से जाँच की जानी चाहिए और उस संबंध में क़ानून द्वारा सशक्त अधिकारियों द्वारा यह की जानी चाहिए। इसने कहा कि ईडी उन अपराधों के कथित कमीशन की जांच करने की शक्ति को अपने आप में नहीं ले सकता।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने कहा, '... धन शोधन निवारण अधिनियम ईडी को केवल धारा 3 के अपराधों की जांच करने का अधिकार देता है। इसकी जांच और पूछताछ करने की शक्ति धन शोधन के अपराध तक ही सीमित है...।' अदालत ने यह भी कहा कि कल्पना के आधार पर यह नहीं करने दिया जा सकता है कि जांच के दौरान जुटाई गई सामग्री से यह मान लेना कि एक प्रेडिकेट ओफेंस हुआ। इसने कहा कि प्रेडिकेट ओफेंस की आवश्यक रूप से जाँच की जानी चाहिए और उस संबंध में क़ानूनन अधिकृत अधिकारियों द्वारा ही ऐसा किया जाना चाहिए।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फ़ैसला दो याचिकाओं पर सुनवाई पर आया है। प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड और प्रकाश थर्मल पावर लिमिटेड ने अलग-अलग याचिकाओं में ईडी द्वारा 29 नवंबर, 2018 को जारी अनंतिम अटैचमेंट ऑर्डर यानी पीएओ को चुनौती दी थी।
छत्तीसगढ़ के फतेहपुर में प्रकाश इंडस्ट्रीज द्वारा किए गए कोयला ब्लॉक आवंटन में कथित शेयर आवंटन से यह मामला जुड़ा है। ईडी ने एक जाँच शुरू की थी और शेयरों के आवंटन से कथित मुनाफे के लिए प्रकाश इंडस्ट्रीज के ख़िलाफ़ एक अनंतिम कुर्की आदेश जारी किया था। हालांकि, अदालत ने कहा कि ऐसे शेयरों के मुद्दे का सीबीआई की प्राथमिकी या चार्जशीट में उल्लेख नहीं किया गया था, और यह कभी भी एजेंसी द्वारा जांच के दायरे में नहीं था।
तो क्या कोर्ट का यह फ़ैसला ईडी के पावर को सीमित करता है? इस सवाल का जवाब याचिकाकर्ता कंपनी के वकील अंकुर चावला ने दिया है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि "यह एजेंसी की शक्ति पर अंकुश नहीं है... यह ईडी के दायरे और अधिकार क्षेत्र की व्याख्या करता है। ईडी के छल-कपट ने लोगों की उन तथ्यों के संबंध में प्रेडिकेट ओफ़ेंस में जांच और मुकदमा चलाना शुरू कर दिया था जो जांच का विषय भी नहीं थे। यह कानून के तहत ईडी के दायरे से बाहर था।'