फैबइंडिया विज्ञापन विवाद के बाद अब डाबर ने भी विरोध के बाद अपना विज्ञापन वापस ले लिया है। विरोध सोशल मीडिया पर हुआ और बीजेपी के एक मंत्री ने भी आपत्ति जताई। उन्होंने तो क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी दे दी थी। पिछले साल से अब तक कई ऐसे विज्ञापन वापस लेने पड़े हैं जिस पर दक्षिणपंथियों ने आपत्ति जताई और उन ब्रांडों के बहिष्कार का अभियान चलाया। तो क्या अब विज्ञापन भी कंपनियाँ अपनी मर्जी से नहीं बना सकतीं?
यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि एक के बाद एक विज्ञापन पर आपत्ति किए जाने और फिर इन्हें हटाए जाने के मामले भी आ रहे हैं। सबसे ताज़ा मामला डाबर इंडिया का है। इसने ट्वीट किया है कि, 'फेम का करवाचौथ अभियान सभी सोशल मीडिया हैंडल से वापस ले लिया गया है और हम अनजाने में लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगते हैं।'
डाबर की तरफ़ से यह सफ़ाई इसलिए आई कि उसके विज्ञापन पर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने आपत्ति की। बता दें कि डाबर के विज्ञापन में दो युवतियों को करवा चौथ की तैयारी के दौरान इसे मनाने के कारणों और महत्व पर चर्चा करते हुए दिखाया गया है। विज्ञापन के आख़िर में दोनों महिलाएँ तब एक-दूसरे के आमने-सामने दिखती हैं और दोनों के हाथों में एक-एक छलनी और एक सजी हुई प्लेट होती है। दोनों छलनी के आरपार एक दूसरे को देखती हैं और इससे संकेत जाता है कि वे जोड़े हैं। इसके बाद फेम लोगो दिखाई देता है और एक वॉयसओवर कहता है: 'गर्व के साथ निखरें'।
इस विज्ञापन की कई लोगों ने तारीफ़ की तो कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति भी जताई। आपत्ति करने वालों में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी थे। उन्होंने क़ानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी। मिश्रा ने 'करवा चौथ मनाने वाले समलैंगिकों' के विज्ञापन के लिए डाबर को फटकार लगाई और कहा, 'भविष्य में वे दो पुरुषों को फेरा लेते हुए दिखाएंगे।' उन्होंने कहा कि पुलिस को कंपनी को विज्ञापन वापस लेने का आदेश देने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा था कि यदि कंपनी ऐसा करने में विफल रहती है तो विज्ञापन की जांच करने के बाद क़ानूनी क़दम उठाएँ। मिश्रा बजरंग दल द्वारा कथित तौर पर प्रकाश झा की वेब सीरीज आश्रम-3 के क्रू पर हमले को लेकर बयान दे रहे थे।
हाल में कपड़ा का ब्रांड फैबइंडिया के विज्ञापन पर भी विवाद हुआ था। आपत्ति फैबइंडिया के उस कलेक्शन के विज्ञापन से था जिसका नाम 'जश्न-ए-रिवाज़' दिया गया था। इस पर कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इसके बहिष्कार का अभियान चलाया। बीजेपी नेताओं ने भी ट्वीट किया था। बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने ट्वीट किया था, 'दीपावली जश्न-ए-रिवाज़ नहीं है। पारंपरिक हिंदू परिधानों के बिना मॉडल का चित्रण करने वाले हिंदू त्योहारों के इब्राहिमीकरण के इस जानबूझकर प्रयास को बंद किया जाना चाहिए। और फैबइंडिया जैसे ब्रांडों को इस तरह के जानबूझकर किए गए दुस्साहस के लिए आर्थिक नुक़सान का सामना करना पड़ेगा।' यह विवाद इतना बढ़ा कि इसको हटाना पड़ा।
पिछले साल दिवाली से पहले तनिष्क के विज्ञापन पर भी ऐसा ही विवाद हुआ था। टाटा ग्रुप के ज्वैलरी ब्रांड तनिष्क के उस विज्ञापन का नाम 'एकत्वम' था। 45 सेकंड की वह विज्ञापन फ़िल्म दो अलग-अलग धर्मावलंबियों के बीच शादी पर आधारित थी। 'एकत्वम' विज्ञापन को हिंदू-मुसलिम वाला और 'लव जिहाद' को बढ़ावा देने वाला कहकर निशाना बनाया गया था। बाद में उस विज्ञापन को हटाना पड़ा था।
पिछले साल तनिष्क का ही एक और विज्ञापन विवादों में आ गया था। उस वीडियो विज्ञापन में पटाखे नहीं जलाने और प्यार और पॉजिटिविटी से इस त्योहार को मनाने की बात कही गई थी। यही बात कुछ लोगों को चुभ गई और सोशल मीडिया पर पटाखे नहीं जलाने की बात का बतंगड़ बना दिया गया। यह दावा किया गया कि कोई यह कैसे बताएगा कि हिंदू उत्सव कैसे मनाएँ। तनिष्क को ट्विटर से उस विज्ञापन को हटाना पड़ा था।
वैसे, पटाखे से जुड़ा एक विज्ञापन इस साल भी आया है जिस पर आपत्ति की गई है। वह विज्ञापन सीएट टायर से जुड़ा है जिसमें आमिर ख़ान कहते हैं कि पटाखे जलाने हैं तो सड़क पर नहीं, सोसाइटी में जलाओ। पिछले कुछ हफ़्तों से सोशल मीडिया पर इसके बहिष्कार किए जाने की पोस्टें की जा रही थीं, लेकिन फिर बीजेपी सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने भी इसको लेकर आपत्ति जताई। उन्होंने सीएट कंपनी से कहा कि कंपनी 'नमाज के नाम पर सड़कों को अवरुद्ध करने और अज़ान के दौरान मसजिदों से निकलने वाले शोर की समस्या' को भी संबोधित करे।
सीएट कंपनी के एमडी और सीईओ अनंत वर्धन गोयनका को ख़त लिखकर हेगड़े ने कहा, "आजकल 'हिंदू विरोधी अभिनेताओं' का एक समूह हमेशा हिंदू भावनाओं को आहत करता है, जबकि वे कभी भी अपने समुदाय के ग़लत कामों को उजागर करने की कोशिश नहीं करते हैं।"