पेगासस स्पाइवेयर मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर सीपीएम के एक सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इससे पहले एक वकील ने भी अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी। प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठन भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराए जाने की मांग कर चुके हैं। विपक्षी दल के नेता भी संयुक्त संसदीय कमेटी यानी जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग लगातार कर रहे हैं।
ऐसी मांग तब से उठ रही है जब इजराइली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाइवेयर का विवाद आया है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके माध्यम से दुनिया भर में लोगों पर जासूसी कराई गई। 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'द वायर' सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है। एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। द वायर के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। ये नंबर विपक्ष के नेता, मंत्री, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।
केरल के सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने द वायर की इसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। ब्रिटास ने कहा है कि उन नंबरों में से एक नंबर सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम पर पंजीकृत है और यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के बराबर है और यह अभूतपूर्व व चौंकाने वाला है।
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
हालाँकि, याचिकाकर्ता ने कहा है कि अगर भारत सरकार द्वारा अनधिकृत तरीक़े से निगरानी की गई तो करदाताओं का पैसा सत्ताधारी पार्टी ने अपने निजी और राजनीतिक हितों के लिए ख़र्च किया और इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
दो दिन पहले ही एक वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कथित पेगासस जासूसी मामले की जाँच के लिए याचिका दायर की है।
मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, 'पेगासस घोटाला गंभीर चिंता का विषय है और भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। निगरानी का व्यापक और ग़ैर-जवाबदेह उपयोग नैतिक रूप से भ्रष्ट है।'
याचिका में यह आरोप भी लगाया गया कि विवादित जासूसी कांड व्यक्तिगत राजनीतिक निहित स्वार्थ के लिए भारत गणराज्य में किया गया सबसे बड़ा अपराध है और क़ानून के अनुसार जाँच और मुक़दमा चलाया जाना चाहिए।
वीडियो चर्चा में सुनिए, पेगासस स्पाइवेयर का क्या होगा मोदी सरकार पर असर?
इससे पहले गुरुवार को प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया यानी पीसीआई के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड, दिल्ली पत्रकार संघ, इंडियन वीमेंस प्रेस कोर, वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन, आईजेयू और विभिन्न मीडिया संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग की थी। पत्रकारों के संगठनों ने चेताया है कि भारतीय नागरिकों की पेगासस स्पाइवेयर से जासूसी कराना भारतीय संप्रभुता को ख़तरे में डालेगा और इसलिए यह ज़रूरी है कि भारत सरकार इसमें दखल दे और साफ़ करे कि यह कैसे और क्यों हुआ। बयान में साफ़ तौर पर कहा कहा गया है, 'हम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जासूसी की जाँच किए जाने की मांग करते हैं। मीडिया संस्थान लोकतंत्र और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए संवैधानिक विकल्प का उपाए भी तलाशेंगे।'
बयान में कहा गया है कि पत्रकारों के संगठन मानते हैं कि पत्रकारों, नागरिक समाज, मंत्रियों, सांसदों और न्यायपालिका पर ऐसी निगरानी सत्ता का पूरी तरह दुरुपयोग है और इसे तुरत रोका जाना चाहिए। इसने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में ऐसी नियंत्रित निगरानी नहीं की जा सकती है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट से देश की मदद के लिए आने की अपील करते हुए उन्होंने कहा था, 'देश और लोकतंत्र बचाएइ। क्या आप स्वत: संज्ञान नहीं ले सकते क्योंकि सभी फोन टैप किए जा रहे हैं? जाँच के लिए एक पैनल गठित करें... केवल न्यायपालिका ही बचा सकती है देश को।'