देश में 21 जून को एक दिन में 91 लाख कोरोना टीके लग गए थे, लेकिन 13 जुलाई को क़रीब 37 लाख टीके ही लगाए जा सके हैं। 11 जुलाई को तो 13 लाख से भी कम टीके लगाए जा सके थे। पिछले सात दिन का औसत निकाला जाए तो हर रोज़ 35 लाख से भी कम टीके लगाए जा रहे हैं। एक दिन पहले ही मंगलवार को दिल्ली सरकार ने कहा था कि कोविशील्ड के टीके ख़त्म होने के कारण उसे कुछ टीकाकरण केंद्र बंद करने पड़े हैं। समय-समय पर अलग-अलग राज्य टीके कम पड़ने की शिकायतें करते रहे हैं। टीकाकरण के मामले में भी उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे राज्य हैं जो फिसड्डी हैं। ऐसा तब है जब इन दोनों राज्यों में ही गंगा में तैरती हुई लाशें मिली थीं और अब देश में कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका है।
कोरोना संकट से निपटने के लिए अभी कोरोना वैक्सीन पर ही निर्भर रहा जा सकता है। जब तक टीका नहीं आया था तो लॉकडाउन ही एकमात्र उपाय था। लेकिन क़रीब डेढ़ साल से कोरोना और लॉकडाउन की मार झेल रही अर्थव्यवस्था भी लॉकडाउन को ज़्यादा झेलने की स्थिति में नहीं है। यानी संक्रमण के तेज़ी से फैलने या संभावित तीसरी लहर से लड़ने का एकमात्र उपाय टीकाकरण ही नज़र आता है।
इस टीकाकरण में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य बेहद पिछड़े हैं। उत्तर प्रदेश में टीकाकरण के लिए योग्य जनसंख्या की सिर्फ़ 4 फ़ीसदी और बिहार में 3.7 फ़ीसदी आबादी को कोरोना की दोनों खुराकें लग पाई हैं। जबकि हिमाचल प्रदेश, केरल जैसे राज्यों में 16 फ़ीसदी और दिल्ली व गुजरात में 13 फ़ीसदी आबादी को वैक्सीन लगाई जा सकी है। वैक्सीन की एक ख़ुराक के मामले में भी उत्तर प्रदेश और बिहार पिछड़े हैं। बिहार में वैक्सीन लेने के लिए योग्य कुल जनसंख्या की 22 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश में 21.5 फ़ीसदी आबादी ही कम से कम एक भी खुराक ले पाई है। जबकि हिमाचल में 62, दिल्ली में 45, गुजरात में 44, केरल में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा ऐसी जनसंख्या ने कम से कम एक खुराक ली है।
उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे राज्य हैं जो कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में रहे थे। इन दोनों ही राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई थी। अस्पतालों में बेड, दवाइयाँ और ऑक्सीजन जैसी सुविधाएँ भी कम पड़ गई थीं। ऑक्सीजन समय पर नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई थीं। अस्पतालों में तो लाइनें लगी ही थीं, श्मशानों में भी ऐसे ही हालात थे। इस बीच गंगा नदी में तैरते सैकड़ों शव मिलने की ख़बरें आईं और रेत में दफनाए गए शवों की तसवीरें भी आईं।
इसीलिए अब जब तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है तो बाज़ारों या पर्यटन स्थलों पर भीड़ देखकर ही चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुद इस पर चिंता जताई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस चिंता को दूर करने के लिए कोरोना प्रोटोकॉल के पालन के साथ ही वैक्सीन लगवाने पर जोर दिया। लेकिन क्या वैक्सीन लोगों को उपलब्ध है?
केंद्र सरकार ने तय कर रखा है कि वह इस साल के आख़िर तक वैक्सीन के लिए योग्य पूरी आबादी को टीका लगवा देगी। लेकिन इसके लिए हर रोज़ औसत रूप से 80-90 लाख टीके लगाए जाने की ज़रूरत है। पर सरकार इतनी संख्या में टीके नहीं लगवा पा रही है। अब तो औसत रूप से क़रीब 33 लाख ही हर रोज़ टीके लगा जा रहे हैं। सरकार की ओर से कहा गया था कि जुलाई से टीके की उपलब्धता और बढ़ जाएगी। इस मामले में सरकार ने पहले तो कहा था कि अगस्त से लेकर दिसंबर तक पाँच महीने में 216 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध करा देगी, लेकिन बाद में उसने इस आँकड़े को संशोधित किया था। सरकार ने कहा था कि वह 135 करोड़ वैक्सीन ही उपलब्ध करा पाएगी। हालाँकि, मौजूदा हालात में तो यह लक्ष्य भी काफ़ी दूर नज़र आ रहा है।
देश में फ़िलहाल 38 करोड़ 27 लाख लोगों को ही टीका लगाया जा सका है जिसमें से 30 करोड़ 79 लाख को एक खुराक लगी है और 7 करोड़ 47 लाख को दोनों खुराक लग गई है। जबकि दुनिया के विकसित देशों में टीकाकरण काफ़ी तेज़ी से हुआ है। 'ब्लूमबर्ग' के वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार, यूरोपीय संघ की आबादी के 46% और अमेरिका में 52% की तुलना में भारत में आबादी के 14% को ही कम से कम एक टीका भी लगाया गया है। पर्याप्त टीकाकरण की कमी के कारण विकासशील देशों के सामने संक्रमण का ख़तरा ज़्यादा है।