क्या आप इस पर यक़ीन करेंगे कि भारत में कोरोना काल में जब करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई, खुद सरकार ने माना कि सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर शून्य से 10 प्रतिशत नीचे चली गई, देश के चुनिंदा अरबपतियों की संपत्ति में 35 प्रतिशत की बढोतरी हुई और उनकी कुल जायदाद बढ़ कर 423 अरब डॉलर हो गई
इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि इसका सबसे अधिक फ़ायदा मुकेश अंबानी और गौतम अडानी को मिला, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीक समझा जाता है।
पीडब्लूसी की रिपोर्ट
यूबीएस और प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स (पीडबलूसी) ने बिलियनेअर्स इनसाइट रिपोर्ट 2020 हाल में ही प्रकाशित की है, जिसमें इन बातों का खुलासा होता है।इस रिपोर्ट के मुताबिक़, भारतीय अरबपतियों ने इस मामले में रूसी अरबपतियों को भी पीछे छोड़ दिया और उनसे बेहतर कारोबारी नतीजा निकाल कर उनकी तुलना में अपनी जायदाद में बहुत अधिक बढ़ोतरी कर ली है।
प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स की इस रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से 31 जुलाई, 2020 तक भारतीय अरबपतियों की जायदाद में 90 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ। दूसरी ओर रूसी अरबपतियों की जायदाद 80 प्रतिशत बढ़ी।
अब भारतीय अरबपति अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के अरबपतियों के बाद छठे नंबर पर हैं। यानी इनकी कुल जायदाद पूरी दुनिया के अरबपतियों की जायदाद में छठे नंबर पर है।
फ़ोर्ब्स इंडिया सूची
अरबपतियों की जायदाद पर तैयार दूसरी रिपोर्टों में भी इसकी पुष्टि होती है। फ़ोर्ब्स इंडिया रिच लिस्ट 2020 पर भरोसा किया जाए तो रिलायंस समूह के मालिक मुकेश अंबानी की कुल जायदाद में इस दौरान 73 प्रतिशत की बढोतरी हुई, उसमें 89 अरब डॉलर यानी 6.52 लाख करोड़ रुपए का इज़ाफ़ा हुआ।भारत में सबसे अधिक फ़ायदे में रिलायंस समूह के मालिक मुकेश अंबानी रहे।
मशहूर अर्थशास्त्री जयति घोष ने अपने अध्ययन में पाया है कि इस साल रिलायंस समूह की जायदाद में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वह 64.5 अरब डॉलर पर पहुँच गई।
मुकेश अंबानी ओरैकल कॉरपोरेशन के लैरी एलिसन और फ्रांसीसी अरबपति फ्रांस्वा बेटनकोर्ट मेयर से भी ऊपर निकल चुके हैं, वे चोटी के 10 अरबपतियों में जगह बना चुके हैं।
मुकेश अंबानी, प्रमुख, रिलायंस समूहfacebook/relianceindsutries
जियो में निवेश
इस कोरोना काल में ही रिलायंस समूह के जियो में 117,588.45 करोड़ रुपए का निवेश विदेशी कंपनियों ने किया। ये निवेश उसके डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म के कारोबार में हुए।
जियो में निवेश करने वाली बड़ी कंपनियों में प्रमुख हैं, सऊदी अरब का मुबादला समूह, अबू धाबी इनवेस्टमेंट, क्वॉलकॉम, जनरल अटलांटिक, केकेआर, विस्टा इक्विटी, टीपीजी, फ़ेसबुक। अकेले फ़ेसबुक ने ही 5.70 अरब डॉलर का निवेश किया है।
लेकिन यह गौतम अडानी की आय से तीन गुणी अधिक है। अडानी समूह के मालिक की जायदाद में 25.2 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई।
फ़ोर्ब्स की सूची में एचसीएल के शिव नाडर, सीरम इंस्टीच्यूट के साइरस पूनावाला, बायोकॉन प्रमुख किरण मज़ुमदार शॉ के नाम भी हैं।
बात यहीं ख़त्म नहीं होती है।
ब्लूमबर्ग इनडेक्स
ब्लूमबर्ग बिलियनेअर्स इनडेक्स ने जो सूची तैयार की है, उसमें भी इसकी पुष्टि होती है। इस सूची के अनुसार, मुकेश अंबानी पूरी दुनिया के 10 सबसे बड़े अरबपतियों में शामिल होने वाले अकेले एशियाई हैं। यानी उन्होंने चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के अरबपतियों को भी पीछे छोड़ दिया है।क्या यही असली भारत है, यह सवाल तो उठता ही है। फ़ोर्ब्स का कहना है कि भारत के सबसे धनी एक प्रतिशत लोगों के पास देश की कुल 42.5 प्रतिशत धन है।
दूसरी ओर ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट बताती है कि भारत के 50 प्रतिशत लोगों के पास देश का सिर्फ 2.8 प्रतिशत धन है।
ऑक्सफ़ैम का यह भी कहना है कि भारत के सबसे संपन्न 10 प्रतिशत लोगों के पास देश का 74.3 प्रतिशत धन है, जबकि सबसे ग़रीब 90 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 25.7 प्रतिशत धन है।
स्विस बैंक की रिपोर्ट
स्विस बैंक ने पूरी दुनिया के अरबपतियों की जायदाद का अध्ययन किया। उसका कहना है जुलाई, 2020 में उनके पास 10.2 खरब डॉलर की संपत्ति थी। इसके पहले 2017 में इन लोगों की कुल जायदाद 8.9 खरब डॉलर की थी।ब्रिटिश अखबार गॉर्जियन का कहना है कि दुनिया के इन अरबपतियों ने कोरोना काल में मौके का भरपूर फ़ायदा उठाया और बदली हुई स्थितियों में अपने कारोबार में ज़रूरी बदलाव किए, जिससे उनका कारोबार और मुनाफ़ा बढ़ता ही चला गया और नतीजा सबके सामने है। उसका कहना है कि भारतीय अरबपति भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं रहे और उनका कारोबार भी खूब फला-फूला।
बदहाल अर्थव्यवस्था, बेहाल जनता
लेकिन यह सब उस समय हो रहा है जब कोरोना काल में ही एक तिमाही में भारत की जीडीपी दर शून्य से 24 प्रतिशत नीचे चली गई, खुद सरकारी एजंसियों और भारतीय रिज़र्व बैंक ने मान लिया है कि जीडीपी दर पूरे साल के लिए शून्य से 10 प्रतिशत नीचे चली जाएगी, सरकार ने औपचारिक तौर पर मान लिया है कि अर्थव्यवस्था तकनीकी रूप से भी मंदी की चपेट में आ चुकी है, क्योंकि लगातार दो तिमाही में जीडीपी दर शून्य से नीचे रही।
कोरोना काल में जिस समय भारतीय अरबपतियों की जायदाद में अरबों डॉलर की बढ़ोतरी हुई, ठीक उसी समय आम जनता का क्या हाल हुआ, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई ने बताया है कि मई से अगस्त के बीच 66 लाख प्रोफ़ेशनल्स को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। इनमें इंजीनियर, फ़िजिशियन, टीचर्स शामिल हैं। सीएमआईई ने कहा है कि 2016 के बाद से रोज़गार की दर सबसे निचले स्तर तक पहुंच गई है।
सीएमआईई का कहना है कि मई से अगस्त, 2019 के बीच देश में 1.88 करोड़ प्रोफ़ेशनल्स काम कर रहे थे, लेकिन मई से अगस्त, 2020 के बीच यह संख्या 1.22 करोड़ रह गयी।
संस्था का यह भी कहना है कि मई से अगस्त के दौरान ही पचास लाख औद्योगिक श्रमिकों की भी रोजी-रोटी चली गई। नौकरियों से जुड़े आंकड़ों का हिसाब रखने वाली इस संस्था के मुताबिक़, औद्योगिक श्रमिकों की संख्या में 26% की गिरावट आई है और ऐसा ज़्यादातर छोटी औद्योगिक इकाइयों में हुआ है।