कोरोना से निपटने में क्यों फ़ेल रहीं केंद्र व राज्य सरकारें?

08:27 am Jul 29, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी को आया था। तब से लेकर अब तक छह महीने हो चुके हैं लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बदतर ही है। 

जबरदस्त लापरवाही

छह महीने का समय कम नहीं होता, अगर सरकारें चाहतीं तो इस दौरान बेहतर रणनीति बनाकर कोरोना संक्रमण को क़ाबू कर सकती थीं। लेकिन आज जब संक्रमण के मामले 14 लाख से ज़्यादा हो चुके हैं और 33 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तो ऐसा लगता है कि केंद्र व राज्य सरकारों ने कोरोना से निपटने में जबरदस्त लापरवाही की। 

कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आने के बाद सरकारों को तीन बिंदुओं पर काम करना चाहिए था। पहला- फैलाव को रोकना, दूसरा- कोरोना संक्रमितों का बेहतर इलाज और तीसरा बाक़ी लोगों को इससे बचाना। 

लेकिन संक्रमण के धुआंधार बढ़ते मामले बताते हैं कि केंद्र व राज्य सरकारें इसके फैलाव को रोकने मे नाकामयाब रहीं। इलाज की क्या स्थिति है, इसके लिए आप छह महीने बाद भी मरीज़ों को अस्पतालों के बाहर इंतजार करते और अंदर दाखिल कई मरीज़ों को तिल-तिल करके मरते देखकर, इसका अंदाजा लगा सकते हैं। 

तीसरा बिंदु है कि बाक़ी लोगों को इससे बचाने के लिए सरकारों ने क्या किया। इसके लिए सख़्त लॉकडाउन जैसा क़दम उठाया गया लेकिन यह नाकाफ़ी इसलिए साबित हुआ क्योंकि यह संक्रमण को फैलने से नहीं रोक सका। इसके साथ ही हमने यह भी देखा कि नॉन कोविड मरीज यानी जो कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं थे, उन्हें अस्पतालों में भर्ती होने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियोज़ में आपने देखा होगा कि अभी भी कई जगहों पर कोरोना संक्रमितों के परिजन उन्हें भर्ती कराने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भटकने को मजबूर हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं के बदतर हालात किसी एक राज्य की बात नहीं है बल्कि देश के कमोबेश सभी राज्यों में ऐसे ही हाल हैं। मौजूदा सूरत-ए-हाल पर कई सवाल खड़े होते हैं और ऐसे हालात क्यों हैं, इसका जवाब केंद्र और राज्य सरकारों से मांगने की कोशिश करते हैं। कुछ राज्यों की स्वास्थ्य सुविधाओं का कोरोना काल में वहां हुई घटनाओं को लेकर भी जिक्र करते हैं। 

शुरुआत करते हैं सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार से। इनमें भी बिहार के हालात बदतर हैं। राज्य के एकमात्र कोविड डेडिकेटेड अस्पताल पटना एनएमसीएच की स्थिति कितनी बदतर है, इस वीडियो में देखिए। 

वीडियो देखने के बाद आपको पता चला होगा कि लोगों पर क्या गुजर रही है। यह ऐसा ख़ौफ़नाक वीडियो है, जिसमें आदमी कोरोना संक्रमित होने के बाद भी कभी इस अस्पताल में इलाज कराने न जाए। इससे पहले बिहार में कोरोना सेंटर्स की बदहाली और लोगों के सेंटर्स से भाग जाने की ख़ूब ख़बरें आईं। 

नीतीश सरकार ने प्रवासियों के बड़ी संख्या में राज्य में आने के चलते यह घोषणा कर दी थी कि अब कोई क्वारेंटीन नहीं होगा। बिहार में टेस्टिंग को लेकर हालात बदतर हैं और दम तोड़ चुकी स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते लोग बेमौत मरने को मजबूर हैं।

अब बात उत्तर प्रदेश की। आबादी को देखते हुए, यहां कितने लोगों का टेस्ट हो सकेगा, कहना मुश्किल है। झांसी से एक शख़्स का आया यह वीडियो देखिए, जो उसने अपनी मौत से पहले बनाया था। 

वीडियो में मरीज कहता है कि यहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं है, मैं बहुत परेशान हूं और मुझे दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर दो। वीडियो बेहद विचलित करने वाला है और ऐसे में हम इसे आपको  नहीं दिखा सकते। 

झाड़ियों में मिली लाश 

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के स्वरूप रानी मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने के 24 घंटे बाद ही एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति की लाश अस्पताल से 500 मीटर दूर झाड़ियों में मिली। अस्पताल का कहना है कि मरीज बिना बताए बाहर चला गया जबकि मरीज की बेटी को अगर आप सुन लेंगे तो आपको पता चलेगा कि शायद नर्क से भी बदतर हालात उत्तर प्रदेश के इस सरकारी अस्पताल में हैं। 

बेटी कहती है, ‘स्वरूप रानी अस्पताल की लापरवाही से मेरे पापा नहीं रहे। उन्हें कोई खाना भी नहीं देता था।’ बेटी रोती है और कहती है कि उसके आगे-पीछे कोई नहीं है। 

महाराष्ट्र: वार्ड में ही लाशें 

यह देश का ऐसा राज्य है, जहां कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 4 लाख पहुंचने वाला है और 13 हज़ार से ज़्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। महाराष्ट्र की राजधानी और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के सायन अस्पताल का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें एक रोगी बिस्तर पर लेटा हुआ था और उसके बगल के बिस्तर पर लाश पड़ी हुई थी। वीडियो में दिखा था कि उस वार्ड में ऐसी सात लाशें थीं। ऐसा ही वीडियो मुंबई के ही केईएम अस्पताल का सामने आया था, जिसमें दिखाई दिया था कि कोरोना संक्रमितों के वार्ड में ही लाशों को रखा हुआ है।

तेलगांना

रसातल में जा चुकी स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलने वाला एक वीडियो पिछले महीने तेलंगाना से सामने आया था। इस वीडियो में अस्पताल में भर्ती कोरोना संक्रमित शख़्स सांस नहीं ले पा रहा था और कथित तौर पर उससे वेंटिलेटर सपोर्ट हटा दिया गया था। कुछ देर में ही मरीज़ की मौत हो गई थी। शख़्स ने मरने से पहले अपना वीडियो बनाया था और पिता को भेजा था जिसमें वह कह रहा था कि वह सांस नहीं ले पा रहा है। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। 

झारखंड: तुगलक़ी फरमान सुना दिया 

हाल में झारखंड की सरकार के एक तुगलक़ी फरमान ने पहले से कराह रहे आम आदमी की कमर पर एक और जोरदार वार किया। राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने एक अध्यादेश पास किया, जिसके तहत सार्वजनिक स्थानों पर मास्क न पहनने का दोषी पाए जाने पर 1 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा और लॉकडाउन का उल्लंघन करने पर 2 साल की जेल होने की बात कही गई है।  

झारखंड सरकार इलाज देने में फिसड्डी है, टेस्टिंग मे बहुत पीछे है लेकिन इस तरह का फरमान उसने तुरंत सुना दिया। 

क्या झारखंड सरकार ने सोचा कि एक ग़रीब प्रदेश में लॉकडाउन के कारण पहले से ही बेरोज़गार बैठे लोग मास्क न पहनने का दोषी पाए जाने पर कहां से 1 लाख रुपये का जुर्माना चुकाएंगे।

कर्नाटक: डॉक्टर तक को इलाज नहीं 

कर्नाटक में भी स्वास्थ्य सुविधाएं किस कदर चरमराई हुई हैं, इसका पता कोरोना काल में चला। बेंगलुरू जैसे एंडवास्ड शहर और राज्य की राजधानी में बीते दिनों समय पर इलाज ना मिलने के कारण कोरोना से संक्रमित एक डॉक्टर की मौत हो गई। डॉक्टर का नाम मंजूनाथ था, आप जानकर परेशान हो जाएंगे कि तीन अस्पतालों ने उन्हें भर्ती करने से इनकार कर दिया था। जब राजधानी में ये हाल हैं तो राज्य के बाक़ी हिस्सों में हालात बेहतर होंगे, यह नहीं कहा जा सकता। 

दक्षिण भारत को स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में उत्तर भारत से बेहतर माना जाता है, लेकिन कोरोना काल में क्या आंध्र से लेकर कर्नाटक और क्या तमिलनाडु से लेकर तेलंगाना, मरीज़ों को दुश्वारियां ही झेलनी पड़ीं।

कमोबेश ऐसे ही हाल पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, असम के भी हैं। 

अदालतों ने दिया दख़ल, फटकारा

हालात को देखते हुए अदालतों को सरकारों को फटकार लगानी पड़ी। गुजरात हाई कोर्ट को यह कहना पड़ा कि अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल की तुलना ‘काल कोठरी’ से की जा सकती है बल्कि यह उससे भी बदतर है। यह उस अहमदाबाद शहर की कहानी है जो गुजरात मॉडल का सबसे बड़ा और अमीरों का शहर माना जाता है। 

इसी तरह जून के महीने में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जोरदार फटकार लगाते हुए कहा था  कि राजधानी में कोरोना के मरीजों का इलाज जानवरों से भी बदतर ढंग से हो रहा है। हालांकि उसके बाद दिल्ली सरकार ने इस दिशा में बेहतर काम किया है और आज राष्ट्रीय राजधानी में एक्टिव मरीज़ों की संख्या बहुत कम रह गई है। 

मध्य प्रदेश में तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक कोरोना की चपेट में आ गए हैं।

नॉन कोविड मरीज़ों के संग बर्बरता

पिछले चार महीनों में कोरोना संक्रमितों से ज़्यादा परेशानी ऐसे लोगों को उठानी पड़ी, जिन्हें कोरोना का संक्रमण नहीं था लेकिन अस्पताल में भर्ती होना ज़रूरी था। ऐसे मरीज़ों से प्राइवेट अस्पतालों की ओर से कहा गया कि पहले वे अपना कोरोना टेस्ट कराएं, रिपोर्ट नेगेटिव होगी तो ही उन्हें भर्ती किया जाएगा। 

अब आप सोचिए, लॉकडाउन का दौर, कामकाज ठप, पास में पैसा नहीं, पैसा हो तो अस्पताल भर्ती करने को तैयार नहीं। अब जब तक कोई शख़्स अपना कोरोना टेस्ट करवाए, उसकी रिपोर्ट आने तक अगर उसकी मौत हो गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा, इस बेहद गंभीर सवाल पर केंद्र और राज्य सरकारें मुंह सिल कर बैठी रहीं और आज भी बैठी हैं। 

क़ानून के अनुसार, कोई भी अस्पताल मरीज को भर्ती करने से इनकार नहीं कर सकता लेकिन कोरोना काल में ऐसा ख़ूब हुआ। सरकार को इसे जुर्म घोषित करना चाहिए और ऐसा करने वालों की जगह सलाखों के पीछे होनी चाहिए।

राजनेताओं पर सवाल

कोरोना के इस बेहद ख़राब दौर में भी राजनेताओं को सियासत करने से फुर्सत नहीं मिली। मार्च में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को महामारी घोषित कर चुका था, उसके बाद भी हमने मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बनाने का खेल देखा। राज्यसभा चुनाव से पहले गुजरात में विधायकों की भगदड़ देखी और इन दिनों राजस्थान का संकट देख रहे हैं। इससे साफ होता है कि नेताओं को जनता की परेशानियों से कोई वास्ता नहीं है, उन्हें चिंता है तो सिर्फ़ अपनी कुर्सी को सुरक्षित रखने की। 

हल क्या है

ये तो हुई मुसीबतों की बात, अब इनका हल क्या है। जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आ जाती, अस्पतालों की इन बदतर हालत के बीच ही संक्रमितों को अपना इलाज कराना होगा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार सुनती क्यों नहीं। चाहे वह किसी राज्य की हो या केंद्र की। 

आए दिन लोग सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर गुहार लगा रहे हैं कि उनकी जान बचाई जाए। वे अस्पतालों में जहन्नुम जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं, इन हालात को सुधारा जाए लेकिन शायद सरकारों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।

सरकारों के लिए सबक

कोरोना काल केंद्र व राज्य सरकारों को इस बात का सबक दे चुका है कि अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहद दुरुस्त करने की ज़रूरत है क्योंकि प्लेग से लेकर सार्स और इबोला तक महामारियां और वायरस आते रहते हैं। भविष्य में कोई ऐसा वायरस आए, तब तक अपनी स्वास्थ्य सुविधाएं इतनी दुरुस्त हों कि हर एक शख़्स की जान बिना किसी परेशानी के बचाई जा सके।