श्मसान घाटों और क़ब्रिस्तानों पर अंत्येष्टि के लिए लगी लंबी लाइनों, गंगा में लगातार दिख रही लाशों और कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आँकड़ों के बीच बड़ी खाई को देख कर यह अंदेशा होना स्वाभाविक है कि क्या सरकारें जितनी मौतें बता रही हैं, उससे ज़्यादा मौते हो रही हैं? स्थानीय प्रशासन और छोटे अफ़सरों की चूक या लापरवाही से ऐसा हो रहा है या सरकारें जानबूझ कर और सोची समझी नीति के तहत मौतें छिपा रही हैं?
ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय और देशी विशेषज्ञों ने कोरोना से मौतों का जो अनुमान लगाया था, उससे काफी कम मौतों का आँकड़ा सामने आ रहा है जबकि कोई सरकार यह दावा नहीं कर सकती कि उसने कोरोना पर काबू कर लिया है, इसलिए कम लोग मर रहे हैं।
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
ब्रिटेन से छपने वाली मशहूर स्वास्थ्य पत्रिका 'द लांसेट' ने कहा है कि मैथेमैटिकल मॉडलिंग के आधार पर उसने अनुमान लगाया है कि 1 अगस्त तक भारत में लगभग 10 लाख लोगों की मौत कोरोना से हो जाएगी।
अमेरिक संस्थान हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन ने अनुमान लगाया है कि भारत में कोरोना से जुलाई तक 10,18,879 लोग मारे जा सकते हैं जबकि सितंबर तक 14 लाख लोगों के मारे जाने की आशंका है।
मैथेमैटिकल मॉडेलिंग पर काम करने वाले मुराद बानाजी ने 'द वायर' के लिए दिए गए इंटरव्यू में मशहूर पत्रकार करण थापर से कहा कि शायद अब तक 10 लाख लोगों की मौत कोरोना से हो चुकी होगी।
लेकिन सरकारी इससे बिल्कुल मेल नहीं खाते। शनिवार की सुबह स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आँकड़ों के अनुसार, शुक्रवार तक भारत में 2,66,207 लोगों की मौत हुई है।
ये आकँड़े तो यही इशारा करते हैं कि कही कुछ गड़बड़ है, अलग-अलग राज्य सरकारें अपने यहाँ कोरोना से मौतों की संख्या कम कर दिखा रही है, यानी आँकड़े छिपा रही हैं।
गुजरात
इसे इससे समझा जा सकता है कि गुजरात से छपने वाले अख़बार 'दिव्य भास्कर' ने अपनी एक ख़बर में कहा है कि 1 मार्च से 10 के बीच 1.23 लाख मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जबकि सरकार का कहना है कि कोरोना से 4,218 लोगों की मौत हुई है। तो बाकी लगभग 1.18 लाख लोगो की मौत कैसे हुई?
पिछले साल गुजरात में इसी दौरान 58 हज़ार मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए थे। यानी, पिछले साल की तुलना में इसी अवधि में 65 हज़ार अधिक लोगों की मौत हुई है। लेकिन सरकार पर भरोसा करें तो कोरोना से सिर्फ़ 4,218 लोगों की ही मौत हुई है, बाकी मौतें कैसे हुई हैं?
आँकड़ों की हेराफेरी
आँकड़ों की इस हेराफेरी को थोड़ा और बेहतर ढंग से समझते हैं। राजधानी अहमदाबाद में इस दौरान 13,593 मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए, जबकि इसमें से 2,126 लोगों की मौत का कारण कोरोना बताया गया।
एक दूसरे बड़े शहर राजकोट में 10,878 मृत्यु सर्टिफिकेट दिए गए, जबकि इसमें कोरोना से मरे लोगों की तादाद 288 थी।
सूरत में 8,851 मृत्यु प्रमाण पत्र दिए गए, इसमें से कोरोना से मरने वालों की तादाद 1,074 थी। वडोडरा में 7,722 लोगो को मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया, इसमें सो कोरोना से मरने वाली की तादाद 189 है।
दूसरा कोई कारण तो दिख नहीं रहा है कि इतनी बड़ी तादाद में लोग कोरोना से मर रहे हैं, जाहिर है सरकार झूठ बोल रही है, ग़लत आँकड़े दे रही है ताकि कोरोना से होने वाली मौतों की वास्तविक संख्या कभी सामने न आए।
मध्य प्रदेश
कोरोना से मौतें छिपाने का आरोप मध्य प्रदेश पर भी लग रहा है। सरकार का झूठ इससे पकड़ में आसानी से आता है कि कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किए गए लोगों और कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आँकड़ों के बीच बड़ा अंतर है। इसे 16 अप्रैल से 1 मई के बीच मध्य प्रदेश के बड़े सात शहरों के आँकड़ों से समझा जा सकता है।
भोपाल में कोरोना प्रोटोकॉल के तहत 1663 लोगों की अंत्येष्टि की गई जबकि सरकार कोरोना से मरने वालों की तादाद 67 बता रही है। जबलपुर में ये आँकड़े क्रमश: 969 और 99 हैं। छिंदवाड़ा में कोरोना प्रोटोकॉल से 635 लोगों का अंतिम संस्कार हुआ जबकि सरकार कोरोना से मरने वालों की संख्या 19 बता रही है। इंदौर में ये आँकड़े 511 और 105 हैं।
इसी तरह रतलाम में कोरोना प्रोटोकॉल से 288 लोगों की अंत्येष्टि हुई, जबकि कोरोना से मरने वालों की तादाद 56 बताई जा रही है। ग्वालिय में ये आँकड़े 247 और 86 हैं तो सागर में क्रमश: 200 और 12 हैं।
लेकिन मध्य प्रदेश सरकार आँकड़ों के साथ छेड़छाड़ करने से इनकार कर रही है। राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने दावा किया है, 'कोरोना से मौत के आँकड़ों को सरकार ने बिलकुल नहीं छिपाया है।'
सारंग की दलील है, 'कोरोना को लेकर जो प्रोटोकॉल बना हुआ है, उसके अंतर्गत कोरोना से मिलते-जुलते लक्षण वाले संदिग्ध की मौत के बाद अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत करने का प्रावधान है। इसी वजह से सरकारी और विश्राम घाटों के आँकड़ों में अंतर नज़र आ रहा है।'
महाराष्ट्र
कोरोना से मौत के मामले में आँकड़ा छिपाने और झूठ बोलने के आरोप महाराष्ट्र सरकार पर भी लगे हैं। यह आरोप किसी और ने नही, गुजरात और मध्य प्रदेश में जिस बीजेपी की सरकार है, महाराष्ट्र में उसी बीजेपी ने यह आरोप शिवसेना नेतृत्व वाले गठबंधन सरकार पर लगाए हैं।
महाराष्ट्र बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने मौजूदा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बाकयदा चिट्ठी लिख कर ये आरोप लगाए हैं।
फडनवीस ने अपने ख़त में लिखा है कि मार्च 2020 से 30 अप्रैल 2021 तक पूरे महाराष्ट्र में 68,813 लोगों की कोरोना से मौत हुई है। उनका दावा है कि अकेले मुंबई शहर में इस दौरान से कोरोना से मौत की संख्या 13,125 है।
फडनवीस ने कोरोना की दूसरी लहर के आँकड़े अलग से दिए हैं। उन्होंने कहा है कि दूसरी लहर यानी 1 फरवरी 201 से 30 अप्रैल 2021 की बीच महाराष्ट्र में कोरोना से मौतों की संख्या 17,731 है, जिसमें सिर्फ मुंबई में 1,773 लोग कोरोना से मरे हैं।
फडनवीस ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर कहा है कि पूरे देश में कोरोना से मौतों में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 31 प्रतिशत हैं, यानी कोरोना से पूरे देश में जितने लोग मरे हैं, उनका 31 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में हैं। महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस शामिल है।
दिल्ली
आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार पर भी ये आरोप लगे हैं। बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा है कि 27 अप्रैल, 2021 को दिल्ली में कोरोना से मौतों की संख्या 15,009 थी तो इसके अगले दिन यानी 28 अप्रैल को 14,616 कैसे हो गई। यानी एक दिन में कोरोना से मरने वालों की संख्या कम कैसे हो गई?
'एनडीटीवी' की एक ख़बर से दिल्ली सरकार का झूठ एकदम उजागर हो जाता है। दिल्ली म्युनिसपल कॉरपोरेशन के 26 श्मसान घाटों पर 18 अप्रैल 2021 से 24 अप्रैल 2021 के बीच 3,096 कोरोना से मरे लोगों का अंतिम संस्कार हुआ।
लेकिन दिल्ली सरकार ने इसी दौरान 1,938 लोगों के मरने की बात कही, जिसमें उसके अनुसार 1,158 कोरोना से मौत हुई थी। साफ है, अरविंद केजरीवाल सरकार कोरोना से होने वाली लगभग 1,500 मौतों को छिपा रही है।
भारत में कोरोना से मौतों के आँकड़े छिपाने पर लोग चिंता जता रहे हैं और कह रहे हैं कि इससे भविष्य में भारत को कोरोना से लड़ने में और दिक्क़त होगी, क्योंकि उसके पास विश्वसनीय आँकड़े नहीं होंगे।
मिशिगन विश्वविद्यालय के महामारी विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा,
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भारत में आँकड़ों का क़त्लेआम मचा हुआ है। हमने जितने मॉडल बनाए हैं, उनसे हमारा मानना है कि कोरोना से होने वाली वास्तविक मौतों की संख्या सरकार के आँकडों से दो से पाँच गुणे ज़्यादा है।
भ्रमर मुखर्जी, महामारी विशेषज्ञ, मिशिगन विश्वविद्यालय
इसके पहले 'द लांसेट' ने अपने संपादकीय में लिखा था कि 'अपनाए गए मॉडल से लगता है कि ग़लती से यह मान बैठा गया कि भारत हर्ड इम्युनिटी के स्तर पर पहुँच गया है और इसलिए कोरोना के ख़िलाफ़ तैयारी नहीं की गई। जबकि हालात ये थे कि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने सीरो सर्वे से जनवरी में बताया था कि सिर्फ़ 21 फ़ीसदी जनसंख्या कोरोना के ख़िलाफ़ एंटी बॉडी विकसित कर पाई थी।'