जिन लोगों ने पार्टी अध्यक्ष पद के मुद्दे पर कोई एक फ़ैसला लेने की मांग करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी, वे बिल्कुल अलग-थलग पड़ चुके हैं। उनकी संख्या बहुत ही कम है, उनका विरोध करने वाली लॉबी बहुत ही मजबूत है और बड़ी है, ऐसा मान कर उन्होंने फ़िलहाल चुप बैठे रहना ही बेहतर समझा है।
एनडीटीवी ने एक ख़बर में कहा है कि 'वफ़ादारों' का पलटवार बहुत ही तेज़ था, तीखा था और 'असंतुष्टों' के पास चुप रहने के अलावा कोई उपाय नहीं है। इसकी वजह यह है कि उनकी संख्या बेहद कम है और उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है।
सोमवार को हुई कांग्रेस कार्यकारिणी बैठक में इन लोगों की नहीं सुनी गई, उनकी कोई मांग पूरी नहीं हुई। उन्होंने वह चिट्ठी 7 अगस्त को ही लिखी थी, तब से लेकर अब तक के समय का इस्तेमाल वफादार गुट ने उनके ख़िलाफ़ माहौल बनाने में किया। इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी की बैठक में दूसरे मुद्दों पर बात हुई, पर जो मुद्दे उन्होंने उठाए थे, उन पर तो कोई चर्चा ही नहीं हुई।
पूर्व मंत्री और राज्यसभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने एनडीटीवी से कहा कि यह कहना पूरी तरह ग़लत है कि उन्होंने चिट्ठी लिखते समय सोनिया गांधी की ख़राब सेहत का ख्याल नहीं रखा। आज़ाद ने कहा,
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'मुझे बताया गया कि वह रूटीन चेक अप के लिए अस्पताल गई हैं, हमने इंतजार किया। मैंने सोनिया जी से कहा, आपका स्वास्थ्य सर्वोपरि है, दूसरी बातें बाद में।'
ग़ुलाम नबी आज़ाद, नेता प्रतिपक्ष, राज्यसभा
आज़ाद ने यह भी कहा कि 'इसके बाद राहुल गांधी से बात हुई और उन्होंने उस पर संतोष जताया था।' एनडीटीवी ने यह भी कहा कि सोनिया गांधी ने कहा है कि उनके मन में इन लोगों के ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं हैं। उन्होंने कहा,
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'मैं आहत ज़रूर हुई, पर उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है। जो बीत गई, वह बात गई, वे हमारे सहकर्मी हैं, हमें मिल जुल कर काम करना चाहिए।'
सोनिया गांधी, कार्यकारी अध्यक्ष, कांग्रेस
लेकिन सवाल यह है कि जिस तरह चिट्ठी लिखने वालों पर ज़ोरदार हमला हुआ और स्वयं राहुल गांधी ने बीजेपी के साथ सांठगांठ करने का आरोप मढ़ दिया, उससे कई सवाल खड़े होते हैं। इनका जवाब जल्द ही मिलेगा जब कांग्रेस अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू होगी।