लगातार दो लोकसभा और कई राज्यों में चुनाव हारने के बाद पस्त पड़ी कांग्रेस पार्टी के लिए आगे का रास्ता क्या होगा, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर पार्टी नेताओं तक के मन में कई सवाल हैं। ऐसे समय में पार्टी नेताओं को रास्ता दिखाने और पार्टी में जान फूंकने के लिए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी आगे आई हैं।
सोनिया ने बृहस्पतिवार को पार्टी के सभी प्रदेश अध्यक्षों, वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में बैठक बुलाई और पार्टी नेताओं से केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ संघर्ष का रास्ता अपनाने को कहा। सोनिया ने पार्टी नेताओं से कहा कि लोकतंत्र ख़तरे में है और जनादेश का दुरुपयोग किया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानियों तथा गाँधी, पटेल, अंबेडकर जैसे नेताओं के संदेशों का ग़लत इस्तेमाल कर वे अपने नापाक एजेंडे को पूरा करना चाहते हैं।'
सोनिया ने पार्टी नेताओं से कहा कि कांग्रेस पार्टी को आंदोलन का रास्ता अपनाना चाहिए और सिर्फ़ सोशल मीडिया पर ही एक्टिव रहना काफ़ी नहीं है।
बैठक में देश के आर्थिक हालात को लेकर भी चिंता जताई गई। सोनिया ने बैठक में कहा, ‘आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है और नुक़सान बढ़ता जा रहा है। सामान्य भरोसा हिल गया है और सरकार बढ़ रहे नुक़सान से ध्यान हटाने के लिए बदले की भावना से राजनीति करने में जुटी है।’
बैठक में सोनिया गाँधी ने पार्टी नेताओं से महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती को जोर-शोर से मनाने के लिए कहा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारकों की तरह प्रेरक तैयार करने के लिए कहा। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया ने यह पहली बैठक बुलाई थी। बताया जाता है कि बैठक में कहा गया कि कांग्रेस महात्मा गाँधी की जयंती को केंद्र सरकार से भी बड़े पैमाने पर मनाएगी। इस मौक़े पर कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता गाँधी टोपी पहनकर और सेमिनार का आयोजन कर पूरे देश भर में पदयात्रा निकालेंगे।
कांग्रेस की कोशिश है कि देश भर में लोगों के बीच संपर्क मजबूत करने के लिए हर जिले में प्रेरक तैनात किये जाएँ। बताया जाता है कि कांग्रेस की राज्य इकाइयों के नेताओं को ऐसे नेताओं की पहचान करने के निर्देश दे दिए गए हैं जिन्हें पार्टी की ओर से इस बारे में ट्रेनिंग दी जाएगी।
सूत्रों के मुताबिक़, सोनिया गाँधी ने बैठक में जो नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं उनके बारे में भी बात की। लोकसभा चुनाव 2014 हारने के बाद से ही कई ऐसे वरिष्ठ नेता जो वर्षों तक पार्टी में बने रहे, जब तक सरकार रही ऊँचे पदों पर रहे, उन्होंने पार्टी का साथ छोड़ दिया। इनमें विदेश मंत्री रहे एसएम कृष्णा, चौ. बीरेंद्र सिंह से लेकर सोनिया के क़रीबी रहे टॉम वडक्कन और ढेरों कांग्रेस नेता शामिल हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 हारने के बाद राहुल गाँधी ने जब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था तो दो महीने तक पार्टी नए अध्यक्ष का चुनाव ही नहीं कर पाई थी। कई नामों पर चर्चा हुआ लेकिन बाद में सोनिया गाँधी को ही अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया।
यहाँ इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि सोनिया गाँधी की अगुवाई में ही कांग्रेस ने 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को उखाड़ फ़ेंका था और उनके यूपीए अध्यक्ष रहते हुए ही 10 साल तक सफलतापूर्वक सरकार चलाई थी।
यह तय है कि कांग्रेस को अगर सत्ता में वापसी करनी है तो उसे बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरह ही मजबूत संगठन तैयार करना होगा। लेकिन देश के ख़राब आर्थिक हालात को लेकर जिस तरह की आवाज़ विपक्ष की ओर से उठनी चाहिए, वह कहीं नहीं दिखती। शायद सोनिया ने इसीलिए ही पार्टी नेताओं से सड़कों पर उतरने के लिए कहा है। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियाँ लगातार कार्रवाई कर रही हैं। यूपीए सरकार में मंत्री रहे पी. चिदंबरम इन दिनों सीबीआई की हिरासत में हैं और वह ईडी का भी सामना कर रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हरीश रावत, अहमद पटेल, वीरभद्र सिंह जैसे कई नेता निशाने पर हैं।
कर्नाटक कांग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार ईडी की हिरासत में हैं। ऐसे समय में पार्टी के सामने संकट खड़ा है क्योंकि ऐसे नेता जिनके पास अनुभव है और जो पार्टी का मार्गदर्शन कर सकते हैं, उन पर जाँच एजेंसी की तलवार लटक रही है। लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस को संघ और बीजेपी की ही तर्ज पर आक्रामक ढंग से प्रचार करना होगा। साथ ही बीजेपी द्वारा उसके ख़िलाफ़ किये जा रहे प्रचार का भी मुँहतोड़ जवाब देना होगा।