केंद्र के कृषि क़ानूनों को रद्द करने के लिए कांग्रेस की राज्य सरकारें क़ानून बनाएं: सोनिया

09:15 am Sep 30, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों के विरोध में कांग्रेस अब सड़क पर आंदोलन के साथ ही क़ानूनी विकल्पों पर भी विचार कर रही है। पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को कांग्रेस शासित राज्यों से कहा है कि वे केंद्र के कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने के लिए नये क़ानून लाने पर विचार करें। 

बता दें कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ देश के कई राज्यों में किसान सड़क पर हैं और भारत के अन्न के कटोरे कहे जाने वाले हरियाणा और पंजाब में तो आंदोलन चरम पर है और इन राज्यों की सियासत भी किसान आंदोलन पर आकर टिक गई है। 

कांग्रेस ने सोमवार को बयान जारी कर कहा, ‘सोनिया गांधी ने कांग्रेस के शासन वाले राज्यों को सलाह दी है कि वे अपने राज्यों में संविधान के अनुच्छेद 254(2) के तहत क़ानून बनाने की संभावनाओं को तलाशें। यह अनुच्छेद राज्य की विधानसभाओं को इस बात की इजाजत देता है कि वे केंद्र सरकार के कृषि विरोधी क़ानूनों को रद्द करने या नकारने के लिए क़ानून बना सकते हैं।’ 

पार्टी ने आगे कहा है कि इससे राज्यों को केंद्र के कृषि क़ानूनों को बाइपास करने में मदद मिलेगी। 

2015 में मोदी सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री अरूण जेटली ने राज्यों को पूर्ववर्ती यूपीए सरकार द्वारा लाग गए ज़मीन अधिग्रहण क़ानून के ख़िलाफ़ ऐसा ही रास्ता सुझाया था, जिससे इस क़ानून को बाइपास किया जा सके। 

किसान आंदोलन को समझिए इस चर्चा के जरिये- 

‘भारत में लोकतंत्र मर चुका है’

कांग्रेस इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन कर रही है और उसका कहना है कि इन क़ानूनों को लेकर मोदी सरकार पूरी तरह किसानों से झूठ बोल रही है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को ट्वीट कर कहा, ‘कृषि क़ानून हमारे किसानों के लिए मौत की सज़ा हैं। उनकी आवाज़ संसद के अंदर और बाहर कुचल दी गयी है। ये इस बात का प्रमाण है कि भारत में लोकतंत्र मर चुका है।’

अमरिंदर सिंह धरने पर बैठे

कांग्रेस ने किसानों के पक्ष में #SpeakUpForFarmers campaign चलाया हुआ है। राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस इन क़ानूनों के विरोध में लगातार आंदोलन करती रहेगी और सरकार को इन्हें तुरंत वापस लेना चाहिए। कर्नाटक में भी इस क़ानून के विरोध में सोमवार को पार्टी ने जोरदार प्रदर्शन किया और पंजाब में तो ख़ुद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह धरने पर बैठे। 

केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों को लेकर आशंका जताई जा रही है कि इनके लागू होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी ख़त्म हो जाएगा और निजी कंपनियों व कॉर्पोरेट कंपनियों के आने से छोटे किसान तबाह हो जाएंगे। इसके अलावा मौजूदा मंडी व्यवस्था भी ख़त्म हो जाएगी। 

किसानों का कहना है कि मंडी समिति के जरिये संचालित अनाज मंडियां उनके लिए यह आश्वासन थीं कि उन्हें अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल जाएगा। मंडियों की बाध्यता खत्म होने से अब यह आश्वासन भी खत्म हो जाएगा। किसानों के मुताबिक़, मंडियों के बाहर जो लोग उनसे उनकी उपज खरीदेंगे वे बाजार भाव के हिसाब से खरीदेंगे और यह उन्हें परेशानी में डाल सकता है। 

आढ़ती भी विरोध में उतरे

अभी तक देश में कृषि मंडियों की जो व्यवस्था है, उसमें अनाज की खरीद के लिए केंद्र सरकार बड़े पैमाने पर निवेश करती है। इसी के साथ किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का आश्वासन मिल जाता है और करों के रूप में राज्य सरकार की आमदनी हो जाती है। ऐसी बिक्री पर आढ़तियों को जहां 2.5 फीसदी का कमीशन मिलता है तो वहीं मार्केट फीस और ग्रामीण विकास के नाम पर छह फीसदी राज्य सरकारों की जेब में चला जाता है। यही वजह है कि किसानों के अलावा स्थानीय स्तर पर आढ़तिये और राज्य सरकारें भी इसका विरोध कर रही हैं। यह बात अलग है कि जिन राज्यों में बीजेपी या एनडीए की सरकारें हैं वे विरोध की स्थिति में नहीं हैं।

मोदी सरकार की अपील 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इन विधेयकों ने हमारे अन्नदाता किसानों को अनेक बंधनों से मुक्ति दिलाई है, उन्हें आज़ाद किया है। प्रधानमंत्री ने किसानों के नुक़सान होने के सवालों को लेकर कहा है कि इन सुधारों से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए और ज़्यादा विकल्प मिलेंगे और ज़्यादा अवसर मिलेंगे। केंद्र सरकार का कहना है कि इन विधेयकों को लेकर ग़लत सूचना फैलाई जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इन विधेयकों से किसानों को फ़ायदा होगा और जो इसका विरोध कर रहे हैं वे असल में बिचौलियों के पक्षधर हैं और 'किसानों को धोखा' दे रहे हैं।

बता दें कि कृषि विधेयकों के मुद्दे पर ही बीजेपी का सबसे पुराना साथी रहे शिरोमणि अकाली दल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए का साथ छोड़ दिया है।  विवादास्पद तीन कृषि विधेयकों पर असहमति व्यक्त करते हुए अकाली दल ने शनिवार देर शाम को एनडीए से अलग होने की घोषणा की। दस दिन पहले ही अकाली दल ने मोदी मंत्रिमंडल से अलग होने का फ़ैसला लिया था और तब हरसिमरत कौर ने इस्तीफ़ा दे दिया था।