केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित की है जो नगालैंड से आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल पॉवर्स एक्ट (1958) यानी आफ़्सपा हटाने की माँग पर सिफ़ारिशें देगी। यह कमेटी 45 दिनों में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी। नगालैंड सरकार ने एक बयान में यह कहा है।
नगालैंड सरकार के बयान में यह भी कहा गया है कि कमेटी इस पर भी विचार करेगी कि राज्य को 'डिस्टर्ब्ड एरिया' श्रेणी में रखा जाए या नहीं।
याद दिला दें कि इसी महीने नगालैंड के मोन ज़िले के ओटिंग गाँव में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 निहत्थे नागरिक मारे गए थे। उसके बाद वहाँ आफ़्सपा को हटाने की व्यापक पैमाने पर माँग हुई। राज्य विधानसभा ने आम राय से एक प्रस्ताव पारित कर आफ़्सपा हटाने की माँग केंद्र से की थी।
नगालैंड में आफ़्सपा
इसके बाद मुख्यमंत्री निफ़्यू रियो ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात कर इस क़ानून को नगालैंड से हटाने पर बात की थी।
नगालैंड से आफ़्सपा हटाने की माँग पर विचार करने के लिए बनी कमेटी की अध्यक्षता गृह मंत्रालय में पूर्वोत्तर विभाग के अतिरिक्त सचिव करेंगे। नगालैंड के पुलिस महानिदेशक, असम राइफ़ल्स के आईजी और सेंट्रल रिज़र्व पुलिस बल के प्रतिनिधि भी इस कमेटी में होंगे।
नगालैंड सरकार के बयान में कहा गया है कि जिस व्यक्ति को जाँच का सामना करना होगा, पहले उसे तुरन्त प्रभाव से निलंबित कर दिया जाएगा।
16 साल की भूख हड़ताल!
याद दिला दें कि मणिपुर की मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला मणिपुर में लागू सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम, 1958 को हटाने के लिए लगभग 16 वर्षों (4 नवंबर 2000 से 9 अगस्त 2016) तक भूख हड़ताल पर रहीं। इरोम के इस संघर्ष के पीछे 2 नवंबर, 2000 की वह घटना थी, जिसने उन्हें अंदर से झकझोर कर रख दिया था।
इरोम शर्मिला कहीं जाने के लिए बस के इंतज़ार में खड़ी थीं, असम राइफ़ल्स के जवानों की एक टुकड़ी ने बस स्टॉप के पास अंधाधुंध गोलियाँ चलाकर 10 लोगों को मार डाला था।
आफ़्सपा का विरोध
दिन दहाड़े हुई इस हत्या के ख़िलाफ़ जब कोई आवाज़ नहीं उठी तब उस 27 वर्षीया लड़की ने महात्मा गांधी के नक्शेक़दम पर चलते हुए सेना को मिले असीमित अधिकारों वाले क़ानून आफ़्सपा के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी। इरोम शर्मिला के इस संघर्ष को शांति बहाली और मूलभूत मानवाधिकारों के लिए एक बड़ा क़दम माना गया था।
वे इम्फाल के जस्ट पीस फ़ाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन से जुड़कर भूख हड़ताल करती रहीं। वे शांति के लिए जीवन देने को तैयार थीं, तब सरकार ने उन्हें आत्महत्या के प्रयास के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया और उनकी नाक में नली डालकर उन्हें तरल खाना दिया जाता रहा।
इरोम शर्मिला 16 वर्षों तक भूख हड़ताल पर बैठी रहीं, 9 अगस्त 2016 को अपना अनशन ख़त्म करने का फ़ैसला किया।