वाराणसी की एक अदालत द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के आदेश का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। सीनियर एडवोकेट हुजैफा अहमदी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से निचली अदालत के आदेश के बाद यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की।
अहमदी ने अदालत से कहा कि वाराणसी की एक प्रॉपर्टी के संबंध में निचली अदालत के द्वारा सर्वे का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह प्रॉपर्टी पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत संरक्षित है लेकिन इसके बाद भी अदालत ने सर्वे करने का आदेश दे दिया है।
इस पर सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि उन्हें मामले को देख लेने दिया जाए। इसके बाद अहमदी ने फिर से यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की।
इस पर सीजेआई ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि आखिर मुद्दा क्या है और उन्होंने अभी तक इससे जुड़े कागज भी नहीं देखे हैं। सीजेआई ने कहा कि वह इस बारे में कुछ नहीं जानते तो कैसे कोई आदेश दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि पहले वह कागज पढ़ेंगे और उसके बाद आदेश पास करेंगे।
बता दें कि वाराणसी की निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे होगा और 17 मई से पहले सर्वे टीम को अदालत को इसकी रिपोर्ट देनी होगी।
अदालत ने कहा कि उसके द्वारा नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नर को नहीं हटाया जाएगा। अदालत ने कहा है कि सर्वे में बाधा डालने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
और मस्जिद नहीं खोना चाहते: ओवैसी
इस मामले में वाराणसी की अदालत के फैसले पर एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने नाराजगी जताई है। ओवैसी ने एबीपी न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा कि जिस तरह बाबरी मस्जिद को छीना गया उसी तरह से इतिहास को दोहराया जा रहा है।
ओवैसी ने कहा कि 1991 में भी जब कुछ लोग ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में हाई कोर्ट गए थे तो अदालत ने स्टे लगा दिया था।
उन्होंने एबीपी न्यूज़ के साथ बातचीत में कहा कि बाबरी मस्जिद अयोध्या विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 के लिए कहा था कि यह अधिनियम सेक्युलरिज्म और भारत के बेसिक स्ट्रक्चर से जुड़ा है।