जिन अफ़सरों को चिदंबरम कभी 'आदेश' देते थे और जो बिना उनके आदेश के शायद क़रीब भी पहुँचने की सोच नहीं सकते थे आज उन्हीं अफ़सरों की हिरासत में उन्हें रात गुज़ारनी पड़ी। हमेशा शान-शौकत और राजनीति की चमक-दमक में रहने वाले चिदंबरम के लिए यह पहली बार है कि रात उन्हें जेल की सलाखों के पीछे गुज़ारनी पड़ी हो। बुधवार देर रात को जब सीबीआई ने उन्हें हिरासत में लिया था तो उन्हें शायद अगले दिन कोर्ट से राहत मिलने की उम्मीद थी। लेकिन गुरुवार को कोर्ट ने उन्हें चार दिन की सीबीआई हिरासत में भेजकर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
सीबीआई अदालत ने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को 26 अगस्त तक हिरासत में रखने का आदेश दे दिया है। सीबीआई ने 5 दिन की हिरासत माँगी थी लेकिन उसे 4 दिन की हिरासत मिली है। इस स्थिति में उन्हें हिरासत की स्थितियों की पीड़ा से गुज़रना पड़ेगा। सीबीआई पूछताछ में सख्ती भी बरतेगी ही। कोर्ट में रखी गई सीबीआई की दलीलों से भी यह ज़ाहिर होता है। सीबीआई ने चिदंबरम को 5 दिनों की पुलिस हिरासत में भेजने की माँग करते हुए तर्क दिया था कि चिदंबरम उनसे पूछताछ में सहयोग नहीं कर रहे हैं। जाँच एजेंसी ने यह भी कहा था कि वह पूछे गए सवालों के जवाब नहीं दे रहे हैं, उन्होंने ज़रूरी काग़जात भी पेश नहीं किए हैं। सीबीआई की ये दलीलें चिदंबरम जैसे कद्दावर नेता के ख़िलाफ़ सामान्य बात नहीं है।
चिदंबरम की शख्शियत कैसी थी उसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह कांग्रेस के सबसे ताक़तवर नेताओं में से एक हैं। जब सीबीआई-ईडी उनके पीछे पड़ी तो पूरी कांग्रेस उनके पक्ष में खड़ी हो गई। वह कांग्रेस के नीति निर्धारण करने वाले नेताओं में शुमार रहे हैं। वह मई 2004 से नवंबर 2008 तक भारत के वित्त मंत्री रह चुके हैं। नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए आतंकी हमलों के बाद विवादों में घिरे शिवराज पाटिल के इस्तीफ़े के बाद चिदंबरम भारत के गृह मंत्री भी बने थे। गृह मंत्री के रूप में साढ़े तीन साल के कार्यकाल के बाद इन्हें मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में फिर से वित्त मंत्री बनाया गया।
चिदंबरम की जगह अब शाह
जब चिदंबरम गृह मंत्री थे तो इनके हाथ ही देश की आंतरिक सुरक्षा से लेकर पुलिस और क़ानून-व्यवस्था की बागडोर थी। इसकी व्यवस्था संभालने के लिए वह पुलिस से लेकर तमाम जाँच एजेंसियों से रिपोर्ट भी माँगते थे। यही गृह मंत्रालय अब अमित शाह के पास है। ये वही अमित शाह हैं जिन्हें 2010 में शोहराबुद्दीन एन्काउंटर केस में जेल जाना पड़ा था। सीबीआई ने उन्हें गिरफ़्तार किया था। तब चिदंबरम ही देश के गृह मंत्री थे। हालाँकि बाद में अमित शाह को उन आरोपों से बरी कर दिया गया। अब अमित शाह गृह मंत्री हैं और चिदंबरम गिरफ़्तार हैं। गिरफ़्तार भी उसी सीबीआई ने किया है जिसने अमित शाह को गिरफ़्तार किया था। इन्हीं परिस्थितियों की वजह से सीबीआई पर आरोप लगते रहे हैं कि जो भी सत्ता में रहता है वह सीबीआई का दुरुपयोग करता है।
ऐसे ही आरोपों के मद्देनज़र तो एक बार सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की तुलना पिंजरे में बंद एक तोते से की थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा था कि राजनीतिक मामलों में सीबीआई बढ़िया काम नहीं कर पाती है।
इस स्थिति में कैसे पहुँच गए चिदंबरम
चिदंबरम के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया है कि सीबीआई और ईडी की यह कार्रवाई राजनीतिक बदले की कार्रवाई है। कई विपक्षी नेताओं पर भी कार्रवाई हुई तो ऐसे ही आरोप लगाए गए। इऩ आरोपों में कितना दम है आरोप है कि 2007 में कार्ति चिदंबरम ने अपने पिता पी. चिदंबरम के ज़रिए आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश प्रमोशन बोर्ड से विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाई थी जबकि विदेशी निवेश के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की सलाहकार समिति की इजाज़त लेना ज़रूरी है। इस मामले में सीबीआई ने 15 मई, 2017 को एफ़आईआर दर्ज की थी।
आरोप है कि कार्ति ने ही आईएनएक्स मीडिया की प्रमोटर इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी को पी. चिदंबरम से मिलवाया था। यह भी आरोप है कि आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंज़ूरी दिलाने में कार्ति चिदंबरम ने घूस के तौर पर मोटी रकम ली थी। इस मामले में कार्ति चिदंबरम को गिरफ़्तार भी किया गया था। हालाँकि बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई थी। फिर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर जाँच शुरू कर दी थी।
अब चिदंबरम का दावा है कि न तो सीबीआई और न ही प्रवर्तन निदेशालय यानी एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट ने उनके ख़िलाफ़ कोई चार्जशीट दाखिल की है। उन्होंने साफ़ तौर पर कहा कि उन्हें फँसाया जा रहा है। सवाल तो गिरफ़्तारी करने की प्रक्रिया पर भी उठाए जा रहे हैं। लेकिन क्या उनके ये दावे कोर्ट में टिक पाएँगे
कांग्रेस के सबसे ताक़तवर नेताओं में शुमार चिदंबरम के आने वाले दिन अब इस बात पर निर्भर करते हैं कि हिरासत का समय ख़त्म होने पर कोर्ट क्या फ़ैसला देता है और कोर्ट में चिदंबरम के वकील कितनी मज़बूती से दलीलें रख पाते हैं