भाजपा ने मोदी की छवि चमकाने पर 30 करोड़ खर्च किएः गूगल डेटा रिपोर्ट

05:23 pm Mar 05, 2024 | सत्य ब्यूरो

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने ऑनलाइन विज्ञापन पर पूरी ताकत लगा दी है। ऑनलाइन विज्ञापन के लिए बहुत अच्छा खासा पैसा चाहिए होता है। Google Ads Transparency Centre के आंकड़ों के अनुसार मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों को टारगेट करते हुए, पिछले 30 दिनों में 29.7 करोड़ रुपये भाजपा ने खर्च किए हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के पिछले चुनाव और उसके बाद हुए राज्यों के चुनाव के मुकाबले यह दोगुना से ज्यादा है। इन विज्ञापनों के केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का प्रचार है। कई भाषाओं में वीडियो बनाए गए हैं। जिन्हें उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा है। 

गूगल डेटा रिपोर्ट कह रही है कि 2023 में कुछ राज्यों के चुनाव पर ही भाजपा ने 19 करोड़ रुपये खर्च किए थे। Google विज्ञापन से पता चलता है कि भाजपा ने 2023 में लगभग ₹19 करोड़ खर्च किए। इसमें विधानसभा चुनावों के दौरान विज्ञापन और पूरे वर्ष के दौरान मोदी सरकार की उपलब्धि को उजागर करने वाले विज्ञापन भी शामिल थे। काफी विज्ञापन यूट्यूब पर दिए गए थे।

पिछले साल का खर्च मुख्य रूप से विधानसभा चुनावों के लिए था। कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी ने Google विज्ञापनों पर ₹7.2 करोड़ खर्च किए। लेकिन भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने गूगल ऐड पर 7.71 करोड़ रुपये खर्च किए। तेलंगाना भाजपा को कुछ भी हासिल नहीं हुआ लेकिन विज्ञापनों पर उसने बहुत खर्च किया। केसीआर के नेतृत्व वाली बीआरएस ₹12.1 करोड़ के विज्ञापन खर्च के साथ दूसरे स्थान पर रही। कांग्रेस ने Google Ads पर 4.59 करोड़ रुपये खर्च किए। हालांकि इसमें कर्नाटक में खर्च किया गया पैसा भी शामिल है।


Google की विज्ञापन लाइब्रेरी में 20 फरवरी, 2019 से डेटा है। तब से, ₹206.2 करोड़ के 73,246 विज्ञापन डाले जा चुके हैं। इस विज्ञापन खर्च में भाजपा का लगभग 24% हिस्सा है, जो करीब 50 करोड़ है, जबकि डीएमके का हिस्सा  21.3 करोड़, या 10.38%। कांग्रेस ने 2019 से Google विज्ञापनों पर ₹14.6 करोड़ खर्च किए हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि भाजपा और अन्य पार्टियों ने मेटा के प्लैटफॉर्मों यानी फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाट्सऐप पर जो विज्ञापन किए, उसका खर्च अलग है।

मेटा की विज्ञापन लाइब्रेरी मई 2018 में लॉन्च की गई थी और यह सात साल तक डेटा बरकरार रखती है। ट्विटर, जिसे अब एक्स कहा जाता है, ने जून 2018 में एक समान ट्रांसपिरेंसी केंद्र लॉन्च किया था, लेकिन जनवरी 2021 में इसे बंद कर दिया। क्योंकि इसने नवंबर 2019 से मंच पर किसी भी राजनीतिक विज्ञापन की सेवा बंद कर दी थी। लेकिन एक्स प्लेटफ़ॉर्म को अपने विज्ञापन ट्रांसपिरेंसी केंद्र को फिर से लॉन्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्योंकि यूरोपीय संघ ने डिजिटल सेवा अधिनियम का पालन करना जरूरी कर दिया है। जिसके तहत तथ्यों को बताना पड़ता है।

Google किसी राजनीतिक दल, राजनीतिक उम्मीदवार या लोकसभा या विधानसभा के वर्तमान सदस्य द्वारा प्रदर्शित या चलाए जाने वाले किसी भी विज्ञापन को राजनीतिक विज्ञापन मानता है। चुनावी विज्ञापन चलाने की अनुमति देने से पहले विज्ञापनदाताओं को भारत चुनाव विज्ञापन का सत्यापन पूरा करना होता है। यही वजह है कि सारा डेटा सामने आ जाता है।

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी मंगलवार को गूगल विज्ञापन का मुद्दा प्रेस कॉन्फ्रेंस में उठाया। सुप्रिया ने कहा-  इंटरनेट पर जहां देखो वहां PM मोदी नज़र आ रहे हैं। ये BJP के विज्ञापनों का ही कमाल है, क्योंकि वह पैसा पानी की तरह बहा रही है। पिछले महीने BJP ने Google वीडियो विज्ञापनों पर 22 करोड़ रुपये खर्च किए, जो पूरे देश में करोड़ों मतदाताओं ने देखे। 

बहरहाल, ऑनलाइन राजनीतिक विज्ञापन के प्रति भाजपा की वित्तीय प्रतिबद्धता सार्वजनिक चर्चा को आकार देने में डिजिटल प्लेटफार्मों के बढ़ते महत्व को उजागर करती है। 2019 के बाद से, पार्टी ने फेसबुक सहित हजारों विज्ञापनों के माध्यम से अपने संदेशों को प्रसारित करने के लिए पर्याप्त बजट खर्च किया है। विपक्ष इसी वजह से भाजपा को विज्ञापन आधारित पार्टी कहता है।

उत्तर भारत में हालांकि भाजपा मजबूत स्थिति में है। कई राज्यों में उसकी सरकार है। हाल ही में उसने बिहार में नीतीश कुमार को अपने पाले में शामिल कर लिया है। लेकिन इसके बावजूद विज्ञापनों का फोकस उत्तर भारत पर है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा उत्तर भारत को लेकर आश्वस्त नहीं है।