तीन विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए सरकार ने एक विधेयक तैयार करना शुरू कर दिया है। अलग-अलग तीन विधेयकों के बदले एक ही विधेयक से तीनों क़ानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा। इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से मंजूरी मिलने का इंतजार किया जा रहा है। समझा जाता है कि इस विधेयक को शीतकालीन सत्र की शुरुआत में ही पेश किया जा सकता है।
इस विधेयक में यह प्रावधान किया जाएगा कि तीन कृषि क़ानूनों की वजह से जो बोर्ड वगैरह बनाए गए, वे बंद कर दिए जाएं। उनके द्वारा लिए गए सभी निर्णय अपने आप निरस्त हो जाएंगे।
इसके अलावा इन कृषि क़ानूनों की वजह से यदि किसी पद का सृजन किया गया होगा तो वह भी ख़त्म हो जाएगा। कुछ राज्य सरकारों ने कहा था कि वे छह महीने की इस अवधि में कुछ फैसले कर रहे थे, वे अब ऐसा नहीं कर पाएंगी।
एमएसपी पर क्या होगा?
कृषि मंत्रालय इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक अलग विधेयक बना सकता है, लेकिन इस पर अभी स्थिति साफ नहीं है।
किसान एमएसपी पर कानूनी गारंटी की भी मांग रहे हैं। अब कृषि मंत्रालय को देखना है कि क्या दिशानिर्देशों या सांविधिक तौर पर यह गारंटी दी जा सकती है या उसके लिए अलग विधेयक लाना होगा।
प्रधानमंत्री का एलान
याद दिला दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र को टेलीविज़न पर संबोधित करते हुए एलान किया कि तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने का फ़ैसला लिया जा चुका है और इससे जुड़ी कानूनी कार्रवाई संसद के शीतकालीन सत्र में पूरी कर ली जाएगी।
नरेंद्र मोदी ने कहा था, "सरकार इन क़ानूनों के फ़ायदे किसानों के समझाने में नाकाम रही है। यह वक्त किसी को दोष देने का नहीं है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि हम इन कृषि कानूनों को वापस लेने जा रहे हैं।"
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान आन्दोलन चलाने वाले संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री के इस एलान का स्वागत किया था, लेकिन यह भी कहा था कि जब तक ये तीनों कृषि क़ानून रद्द नहीं हो जाते, आन्दोलन जारी रहेगाा।
किसान मोर्चा ने यह माँग भी की कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी गारंटी मिलनी चाहिए और किसानों पर लगे मुक़दमे वापस लिए जाने चाहिए। इसके अलावा बिजली क़ानून में भी संशोधन की माँग की गई थी।
किसानों ने आन्दोलन के एक साल पूरे होने पर 26 नवंबर को दिल्ली में एक ट्रैक्टर रैली रखी है। इसके अलावा शीतकालीन सत्र शुरू होने के दिन 29 नवंबर को संसद की ओर कूच करने का कार्यक्रम भी तय है।
कृषि क़ानून वापस लेने के प्रधानमंत्री के फ़ैसले पर क्या कहना है वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी का, देखें यह वीडियो।