बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों में से पांच ने सरेंडर के लिए और समय मांगा है। इन पांच लोगों को समय से पहले रिहा कर दिया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वापस जेल भेजने का आदेश दिया था। मुजरिमों ने पारिवार में शादी, खराब मौसम, आश्रित माता-पिता से लेकर फसल काटने जैसे कारणों का हवाला देकर समय मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट तीन दोषियों की याचिकाओं को शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमत हुआ है। वरिष्ठ वकील वी चितांबरेश ने इन लोगों के आत्मसमर्पण करने के लिए 21 जनवरी की समय सीमा बताते हुए याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई की मांग की थी। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह शुक्रवार को याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जस्टिस उज्ज्वल भुइयां के साथ पीठ गठित करने के लिए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ से आदेश मांगे। बाद में दो अन्य दोषियों प्रदीप रमन लाल मोदिया और विपिन चंद्र जोशी ने भी आत्मसमर्पण के लिए और समय देने का अनुरोध किया।
8 जनवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने और उसकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने वाले 11 लोगों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। जजों ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस पर रिहा किए गए दोषियों को 22 जनवरी से पहले आत्मसमर्पण करने का भी निर्देश दिया।
दोषी गोविंदभाई नाई ने चार और सप्ताह मांगे हैं और रमेश चंदना और मितेश भट्ट ने खुद को पेश करने के लिए छह और सप्ताह मांगे हैं। सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में नाई का दावा है कि वह अपने 88 वर्षीय बिस्तर पर पड़े पिता और 75 वर्षीय मां की देखभाल करने वाला एकमात्र व्यक्ति है, जो उसके साथ-साथ पूरी तरह से उस पर निर्भर हैं। उसे दो बच्चों की भी देखभाल करना पड़ रही है। 55 वर्षीय ने अपने स्वास्थ्य का भी हवाला देते हुए कहा कि उन्हें अस्थमा है और हाल ही में उनकी सर्जरी हुई है। नाई का यह भी दावा है कि जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया था और रिहाई आदेश के नियमों और शर्तों का पालन किया था।
रमेश चंदना ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उन्हें अपने बेटे की शादी के लिए समय चाहिए, जबकि दोषी मितेश भट्ट ने फसल काटने और खराब मौसम का हवाला दिया है।
21 वर्षीय बिलकिस बानो गर्भवती थीं, जब 2002 के दंगों के दौरान उन पर और उनके परिवार पर भीड़ ने हमला किया था। वह और उनके दो बच्चे उस हमले में जीवित बचे एकमात्र व्यक्ति थे। जिन लोगों ने उनके साथ गैंगरेप किया और परिवार को मार डाला, उनकी रिहाई को गुजरात सरकार ने आसान बना दिया। जब वो जेल से बाहर आए तो उनका हीरो की तरह स्वागत हुआ। इस मौके पर मिठाइयां तक बांटी गईं।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा था कि गुजरात सरकार इन लोगों को रिहा करने में सक्षम नहीं थी। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और उज्जल भुइयां ने अपने आदेश में कहा, "गुजरात राज्य द्वारा सत्ता का इस्तेमाल सत्ता पर कब्ज़ा करने और सत्ता के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। परिणामों की परवाह किए बिना कानून के शासन को संरक्षित किया जाना चाहिए।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "उन्हें बाहर रखना कानून के शासन के अनुरूप नहीं होगा।" कोर्ट ने कहा कि "भावनात्मक अपील वाले तर्क मामले के तथ्यों के साथ रखे जाने पर खोखले हो जाते हैं।"
जिन 11 दोषियों को जल्दी रिहा किया गया, वे हैं-जसवंत नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेश भट्ट, राध्येशम शाह, विपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहनिया, प्रदीप मोडिया, बकाभाई वोहनिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना।