बीजेपी शासित गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मांसाहारी भोजन की रेहड़ियों को हटाने के आदेश पर सफाई देते हुए जब कहा कि जिसको जो खाना हो खाए, पर वह खाना स्वास्थ्यवर्द्धक हो और रेहड़ियों की वजह से यातायात में रुकावट न हो, तो उन्होंने एक नई बहस छेड़ दी।
क्या वाकई ट्राफिक जाम दूर करने के लिए ही इन रेहड़ियों को हटाया जा रहा है या इसके पीछे दूसकी वजहें हैं? क्या ऐसा सिर्फ गुजरात में हो रहा है या दूसरी जगहों पर ऐसा किया जा चुका है? क्या सदियों से मांसाहार करने वाले देश पर शाकाहार थोपना बीजेपी-आरएसएस का हिन्दुत्ववादी एजेंडा है?
अहमदाबाद के पहले वडोदरा, राजकोट और भावनगर में इस तरह का फ़ैसला लिया जा चुका है और लागू किया जा चुका है।
क्या कहना है कॉरपोरेशन?
अहमदाबाद म्युनिसपल कॉरपोरेशन के टाऊन प्लानिंग एंट एस्टेट मैनेजमेंट कमिटी का कहना है कि कुछ नागरिकों ने मांसाहारी भोजन पकाए जाते समय निकलने वाले दुर्गन्ध की शिकायत की, इससे बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है, यह गुजरात की पहचान और परंपरा के ख़िलाफ़ है। इसके साथ कॉरपोरेशन ने यह कारण भी बताया कि रेहड़ी वालों और पटरियों पर सामान बेचने वालों ने सड़क पर अवैध कब्जा कर लिया है और इससे यातायात भी बुरी तरह प्रभावित होता है।
अहमदाबाद म्युनिसपल कॉरपोरेशन के अनुसार, मांसाहार वाले रेहड़ियों को हटाने की एक मात्र वजह सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जा और यातायात अवरुद्ध होना नहीं है। इसके कई कारणों में गुजरात की परंपरा व पहचान भी है और बच्चों पर पड़ने वाला बुरा असर भी।
मांसाहार पर रोक लगाने की माँग
लेकिन मांसाहार पर रोक लगाने की माँग गुजरात के बाहर भी हो चुकी है और कई जगहों पर उसे अलग अलग समयों में लागू भी किया जा चुका है।
इस साल मार्च में बीजेपी-शासित राज्य हरियाणा के गुड़गाँव नगर निगम की बैठक के दौरान दो पार्षदों ने धार्मिक भावनाओं का हवाला देते हुए प्रस्ताव रखा था कि मंगलवार को मांस की दुकानों को बंद रखा जाए।
इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई थी और नगर निगम के इलाक़े में आने वाली दुकानों पर इसे लागू किया गया है। ऐसा न करने वालों पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल अगस्त में एक आदेश जारी कर मथुरा में मांसाहार पर शराब की बिक्री पर रोक लगा दी। इस तरह का आदेश हरिद्वार, ऋषिकेश, वृंदावन, बरसाना, अयोध्या, चित्रकूट, देवबंद, देवा शरीफ़ और मिसरिख-नैमिषारण्य में पहले से ही लागू है।
फ़ायर ब्रांड हिन्दुत्व के प्रतीक योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल सितंबर में मथुरा के वृंदावन में कृष्ण जन्मभूमि के 10 किलोमीटर के दायरे में शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।
असम
बीजेपी के ही शासन वाले राज्य असम में इस साल जुलाई में विधानसभा में एक बिल लाया गया था। इसमें कहा गया था कि राज्य के जिस इलाक़े में हिंदू, जैन, सिख और बीफ़ नहीं खाने वाले दूसरे समुदाय के लोग रहते हैं, वहाँ पर इसकी और इससे बने उत्पादों की बिक्री और ख़रीद पर रोक लगाई जाएगी। इसके अलावा किसी मंदिर के 5 किमी. के दायरे में भी बीफ़ की बिक्री नहीं की जा सकेगी।
बिल में गाय के अलावा साँड, बैल, बछिया, बछड़ा, भैंस और भैंस के बछड़ों की हत्या पर भी रोक का प्रावधान था। विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद इस बिल को विधानसभा से पास कर दिया गया था।
ओडिशा
ओडिशा में विपक्ष के नेता प्रदीप्त कुमार नायक ने जुलाई 2020 में मुख्यमंत्री से माँग की थी कि पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के सामने की सड़क पर मांसाहारी भोजन व शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। वह भी बीजेपी के ही विधायक हैं।
यह माँग उस ओडिशा में उठी, जहाँ के भोजन का अहम हिस्सा मछली है और जहाँ ब्राह्मण समेत तमाम जातियों के लोग मांस-मछली खाते हैं।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश सरकार ने सितंबर 2020 में मिड डे मील के तहत अंडा देने पर रोक लगा दी।
बीजेपी ने इस तरह की कोशिश इसके पहले भी की है और राष्ट्रीय स्तर पर मांसाहार को रोकने की इच्छा जताई है। पश्चिमी दिल्ली से चुने गए बीजेपी सांसद परवेश साहिब सिंह ने 2018 में संसद में एक निजी विधेयक पेश किया था। उन्होंने उसमें माँग की थी कि सरकार के किसी भी कार्यक्रम, बैठक या इवेंट में मांसाहारी भोजन न परोसा जाए।
यह महत्वपूर्ण बात है ये सभी लोग बीजेपी से जुड़े हुए हैं।
क़ानूनी स्थिति क्या है?
क़ानूनन किसी को कुछ भी खाने से नहीं रोका जा सकता है और इस पर भारतीय संविधान बिल्कुल साफ है।
मद्रास हाई कोर्ट ने मार्च 2016 में उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि चेन्नई के पलानी टेंपल हिल्स पर मुसलमान विक्रेताओं को बीफ़ बेचने और खाने से रोक दिया जाए क्योंकि इससे हिन्दुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचती है। याचिका में कहा गया था कि भगवान मुरुगन का मंदिर उस सड़क पर है।
एस. मणिकुमार और सी. टी. सेलवम की बेंच ने याचिका को स्वीकार तक नहीं किया था और उसे खारिज करते हुए कहा था कि भारत का कोई नियम किसी धर्म के लोगों को उसके खानपान की आदतों को छूता तक नहीं है।
खंडपीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता यह बताने में नाकाम रहे कि आखिर मुसलमानों के बीफ़ खाने से हिन्दुओं की धार्मिक आस्था पर चोट कैसे पहुँची। मद्रास हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि भारतीय दंड संहिता में ऐसा कोई नियम नहीं है जो किसी को मांस खाने से रोकता हो।
मीट शॉप लाइसेंसिंग एक्ट
लेकिन मीट शॉप लाइसेंसिंग एक्ट के तहत कई राज्यों में यह प्रावधान है कि मंदिर परिसर से 50 मीटर के दायरे में मांस न बेचा जाए। वाराणसी के मंदिर के 250 के दायरे में मांसाहार वर्जित है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में ओम प्रकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के मामले में एक अहम फ़ैसला दिया था। याचिकाकर्ता की दलील थी कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत उसे यह अधिकार है कि वह अपनी मर्जी का पेशा चुने या व्यवसाय करे और इसलिए ऋषिकेश म्यनिपल क्षेत्र में अंडा बेचने पर लगी रोक को हटा दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि ऋषिकेश, हरिद्वार और मुनि की रेती में धार्मिक पर्यटन होता है और यह सरकार की आय का मुख्य स्रोत है। लिहाज़ा, यह रोक वैध है।
सवाल यह है कि बीजेपी की असली मंशा क्या है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी और विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ख़ास किस्म का शुद्धतावादी और एक्सक्लूसिव हिन्दुत्व देश में स्थापित करने की रणनीति पर चल रहा है।
आरएसएस का एजेंडा
यह संयोग नहीं है कि आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व पर शुरू से ही ब्राह्मणों का कब्जा रहा है। राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया अकेले ग़ैर -ब्राह्मण संघ प्रमुख रहे हैं। वह 1994-2000 तक आरएसएस के सरसंघचालक थे।
आरएसएस की रणनीति हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद उसे शुद्ध राष्ट्र बनाने की भी है, एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें रक्त की शुद्धता हो। रक्त की शुद्धता से गोलवलकर का तात्पर्य हिन्दुओं से तो था ही, बाद में यह सोच भी आई कि हिन्दुओं के बीच भी शुद्धता हो।
यह एक ऐसी शुद्धता है, जिसके लिए मांसाहार, शराब पूरी तरह वर्जित है। इतना ही नहीं, इसमें लड़कियों के लिए जीन्स जैसे पश्चिमी पोशाक या महिलाओं के पुरुषों की तरह कामकाज तक त्याज्य है। इसे मौजूदा आरएसएस सरसंघचालक के उस बयान से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि महिलाओं का मुख्य घर संभालना है।
निशाने पर मुसलमान?
एक दूसरी वजह मुसलमानों के आर्थिक हितों पर चोट करना भी है। बीफ़ ही नहीं, बकरा वगैरह के मांस के व्यापार में भी मुसलमानों की तादाद मोटे तौर पर ज़्यादा है। मांसाहार पर रोक लगने से मुसलमानों के कामकाज और आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा।
आरएसएस की यह मुहिम मुसलमानों के लिए ही नहीं, हिन्दुओं के लिए भी घातक है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक लगभग 70 प्रतिशत हिन्दू मांसाहारी हैं, पश्चिम बंगाल जैसी जगहों पर तो शाकाहारी की कल्पना मुश्किल है।
ऐसे में हिन्दुओं का एक बड़ा तबका वही खाने पर मजबूर होगा जो बीजेपी चाहेगी या उसकी सरकार कहेंगे। यह आने वाले हिन्दुस्तान के लिए निश्चित रूप से चिंता की बात है।