केंद्र सरकार ने तीन पड़ोसी देशों अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए ग़ैर-मुसलिम शरणार्थियों से कहा है कि वे भारत की नागरिकता लेने के लिए आवेदन दें। ये शरणार्थी गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब के 13 जिलों में रह रहे हैं।
गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि शरणार्थियों से यह आवेदन नागरिकता क़ानून 1955 के तहत मांगे गए हैं और सरकार की ओर से नागरिकता संशोधन क़ानून, (सीएए) जिसे 2019 में लागू किया गया था, उसके नियम तय नहीं किए गए हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में जोरदार प्रदर्शन हुए थे।
डीएम, मुख्य सचिव को दिए अधिकार
गृह मंत्रालय ने इसके लिए पंजाब और हरियाणा के मुख्य सचिवों और इन 13 जिलों के जिलाधिकारियों को अधिकार दे दिए हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि गुजरात के मोर्बी, राजकोट, पाटन और वडोदरा, छत्तीसगढ़ के दुर्ग बालोदाबाज़ार, राजस्थान के जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही, हरियाणा के फ़रीदाबाद और पंजाब के जालंधर जिले के जिलाधिकारियों को नागरिकता क़ानून, 1955 के तहत यह अधिकार हैं कि वे पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों और जो इन जिलों में रह रहे हैं उन्हें भारत की नागरिकता दे सकते हैं।
ऐसे शरणार्थियों को इसके लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इसके बाद जिलाधिकारी या अन्य कोई अफ़सर उनके इस आवेदन का जिला और राज्य के स्तर पर वैरिफ़िकेशन करेगा और फिर इसे केंद्र सरकार के ऑनलाइन पोर्टल पर भेज दिया जाएगा। जिलाधिकारी या अन्य अफ़सरों को इस तरह का वैरिफ़ेकेशन करना ही होगा और अगर वे इससे संतुष्ट होते हैं तो शरणार्थियों को नागरिकता का प्रमाण पत्र जारी कर सकते हैं।
सीएए को लेकर विवाद
सीएए पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने की बात करता है। इसमें मुसलिमों को शामिल नहीं किया गया है।
इसका विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि यह क़ानून धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है और यह संविधान में उल्लेखित धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है। इसके अलावा जब गृह मंत्री अमित शाह ने पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात की थी तो भी देश में ख़ासा विवाद हुआ था। हालांकि अभी तक मोदी सरकार सीएए के ही नियम तय नहीं कर पाई है।