दिल्ली दंगा: जान पर खेलकर हिंदू-मुसलिमों ने बचाई एक-दूसरे की जान

12:33 pm Feb 27, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त

मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी

मैं उठा लूँगा बड़े शौक़ से उस को सिर पर

ख़िदमत-ए-क़ौम-ओ-वतन में जो बला आएगी।

रचनाकार अली जवाद ज़ैदी की ये लाइनें दिल्ली दंगों में सब कुछ फूंकने को आमादा दंगाइयों को जवाब है कि भारत का एक और विभाजन करने में जुटे लोगों के नापाक मंसूबों को किसी क़ीमत पर पूरा नहीं होने दिया जायेगा। 

दिल्ली में तीन दिन तक चले दंगों में दंगाइयों ने कुछ नहीं छोड़ा। जो मिला जला दिया। मज़हब के आधार पर लोगों की पहचान की और उनके परिजनों, घर के सामान को फूंक दिया। इन दंगाइयों ने आज की पीढ़ी को यह बताया है कि 1947 में हिंदू-मुसलिम धार्मिक विद्वेष के कारण हुए भारत के विभाजन के वक्त़ कैसा माहौल रहा होगा। दिल्ली के दंगों में नफ़रतों, लोगों को जिंदा जलाने की घटनाओं के बीच ऐसा लगता है कि भारत ख़त्म हो चुका है लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अभी भी भारत की आत्मा और इसके विचार को जिंदा रखे हुए हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि वे इस विचार को अपने जीते-जी ख़त्म नहीं होने देंगे। 

मुसलिमों को बचाया, ख़ुद झुलसे

राजधानी के माथे पर कलंक बन चुके इन दंगों के बीच ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने हिंदू या मुसलमान न बनकर, इंसानियत का धर्म अपनाया और अपनी जान पर खेलकर लोगों को बचाया। ऐसी ही कुछ ख़बरें आज दिल्ली के अख़बारों में छपी हैं। हिंदी अख़बार नवभारत टाइम्स ने लिखा है कि हिंसा वाले दिन शिव विहार में दंगाइयों से अपने मुसलिम पड़ोसियों को बचाने के लिये प्रेमकांत बघेल ने अपनी जान की परवाह तक नहीं की। 

बघेल ने अख़बार को बताया कि दंगे वाले दिन पेट्रोल बम से लोगों के घर जलाए जा रहे थे। इसी बीच उनके एक मुसलिम पड़ोसी के घर में दंगाइयों ने आग लगा दी। पता चलते ही वह घर में फंसे लोगों को निकालने पहुंचे और छह लोगों को निकाल चुके थे लेकिन उनके दोस्त की बुजुर्ग मां अभी भी घर में फंसी थीं और आग बढ़ती जा रही थी। बघेल बताते हैं कि उन्हें बचाने के दौरान वह झुलस गए। अगले वाक्य में कही प्रेमकांत की बात अगर आपका दिल न जीत ले तो कहियेगा। बघेल ने कहा कि भले ही वह जल गए, लेकिन वह अपने दोस्त की मां को बचाने में सफल रहे, इसकी उन्हें बहुत खुशी है।

दंगों के बीच एंबुलेंस बघेल के घर नहीं पहुंच पाई और वह रात भर घर में ही तड़पते रहे। बघेल अभी जीटीबी अस्पताल के बर्न वॉर्ड में हैं और यहां उनकी हालत नाजुक बनी हुई है।

‘मुसलिमों की वजह से बचे जिंदा’

इंसानियत को अपना धर्म मानने वालों ने क्या किया इसकी एक और मिसाल पढ़िये। यह घटना भी नवभारत टाइम्स में छपी है। हिंसाग्रस्त भागीरथी विहार में रहने वाले सुनील जैन कहते हैं कि भीड़ तो उनकी जान लेना चाहती थी लेकिन अगर वह जिंदा बच पाये तो अपने मुसलिम पड़ोसियों की वजह से। मुस्तफाबाद रोड पर बसे इस इलाक़े में मुसलिम आबादी ज़्यादा है और कुछ हिंदू परिवार भी रहते हैं। सुनील जैन ने अख़बार को बताया, ‘जब दंगाई गली में घुसे तो हम ख़ौफ़ खौफ में थे। तभी गली में रहने वाले हासिम, डॉक्टर फरीद और इरफ़ान सहित कई और मुसलिम उनकी ढाल बनकर गली के मुख्य गेट पर खड़े हो गए।’ 

इसके बाद जो इन मुसलिम भाइयों ने दंगाइयों से कहा वह पढ़कर आपको हिंदुस्तान की मिट्वी से मुहब्बत हो जाएगी। मुसलिमों ने दंगाइयों से कहा - हिंदुओं तक पहुंचने के लिए उन्हें उनकी लाश से गुजरना होगा। हिंदू परिवारों को बचाने के लिए वे लोग रात भर कॉलोनी के गेट पर डटे रहे।

नईम के लिये आगे आये अजय 

इंसानियत को जिंदा रखने वाली ऐसी ही सच्ची घटना हिंदी अख़बार अमर उजाला में छपी है। हिंसाग्रस्त इलाक़े चमनपुरी में किडनी के मरीज नईम अहमद को डायलिसिस की ज़रूरत थी लेकिन दंगों के कारण वह तीन दिन से घर से बाहर नहीं जा पा रहे थे। परिवार ने कई लोगों से मदद मांगी लेकिन दंगाइयों के डर से कोई उनकी मदद के लिये आगे नहीं आया। नईम के पड़ोसी अजय शर्मा को इस बात का पता चला तो उन्होंने निजी एंबुलेंस कराई और अस्पताल ले जाकर भर्ती कराया। 

घनश्याम ने बचाया इरफ़ान के परिवार को

एक दूसरी घटना में सबसे ज़्यादा हिंसाग्रस्त इलाक़े ब्रह्मपुरी में मंगलवार रात को इरफ़ान का पूरा परिवार दंगाइयों से घिर गया था। यह देखकर उनके पड़ोस में रहने वाले घनश्याम मिश्रा इरफ़ान  के परिवार को बचाने के लिए दंगाइयों के सामने छाती अड़ाकर खड़े हो गए। उन्होंने दंगाइयों का सामना किया और पुलिस को बुलाकर इरफ़ान के परिवार की जान बचाई। अख़बार के मुताबिक़, इलाके के लोगों का कहना है कि इस घटना के बाद शायद इलाक़े में एक बार फिर माहौल सामान्य हो जाये। 

ऐसी ही ढेरों घटनाएं दिल्ली दंगों के दौरान हुई हैं। अमन-चैन के दुश्मनों, आम आदमी को सुख से रोटी न खाने देने में जुटे दंगाइयों को इंसानियत के ऐसे ही फरिश्ते जवाब दे सकते हैं। इस सबके बीच दंगों के लिये जिम्मेदार लोगों की नकेल कस पाने में फ़ेल रही सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह उस पर सवाल उठाने वाले जजों का ट्रांसफ़र कराने पर आमादा है। दिल्ली के दंगों के कारण इस मुल्क़ की जो फजीहत हुई है, इससे उबरने में शायद कई साल लग जायेंगे।